New Delhi, Oct 23 : मैं पिछले दो दिन से बुंदेलखंड के ग्रामीण क्षेत्र के भ्रमण पर हूँ। कल दिनांक २१ अक्टूबर, २०१७ को निर्मम साहूकार के क़र्ज़े में डूबा किसान ‘मट्टू’(४० वर्ष), निवासी ग्राम-पिपराया, उरई फाँसी के फंदे पर झूल गया। उसने एक suicide नोट में लिखा कि वह साहूकार के १.०० लाख रु. से अधिक के क़र्ज़े से परेशान था, ब्याज दर २४% मासिक से बढ़ कर ४०% तक हो गयी थी। ज्ञात हो कि बुंदेलखंड में किसान साहूकारों द्वारा ऊँची दरों पर ब्याज पर पैसा देने का धंधा बहुत पुराना व दरिंदगी भरा है।
निर्दयी साहूकार/बड़े ज़मींदार द्वारा दिए गए क़र्ज़ का कुचक्र इतना भयाभय होता है कि उसके जाल से बाहर निकलना बड़ा मुश्किल होता है। किसान को अक्सर अपनी गिरवी रखी ज़मीन से हाथ धोना पड़ता है और कंगाल किसान के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचता है। वर्तमान सरकार द्वारा क़र्ज़ माफ़ी के बावजूद बुंदेलखंड के किसान की हालत जस-की-तस है। एक अनुमान के अनुसार बैंक़ों, किसान क्रेडिट कार्ड, व साहूकारी ऋण को मिलाकर बुंदेलखंड के किसान/मज़दूरों के पास लगभग रु. ८०० करोड़ का क़र्ज़ है, जिसमें ब्याज सहित रु. ५०० करोड़ का क़र्ज़ा अकेले साहूकारों का है।
सरकार द्वारा क़र्ज़माफ़ी में केवल फ़सली ऋण का लगभग रु. ८० करोड़ ही माफ़ किया है। अतः किसानों का अधिकांश ऋण अभी भी उनके सिर पर बोझ के रूप में मौजूद है। बुंदेलखंड में या तो बहुत बड़े किसान/ज़मींदार है या फिर क़र्ज़ में डूबे अधिकांशतः ९०% लघु-सीमांत कृषक ही हैं। बुंदेलखंड में पिछले वर्ष क़र्ज़ में डूबे लगभग १५०० किसानों ने आत्महत्या की थी। पिछले तीन सालों में लगातार सूखे की मार थी, इस वर्ष कुछ वर्षा ज़रूर हुई है लेकिन गर्मियाँ आने तक सब जमा पानी सुख जाएगा। किसानों के सिर पर क़र्ज़े का बोझ तक़रीबन पहले जैसा ही है। अतः इस वर्ष यदि समय रहते कोई उपाय नहीं करे गए …
… तो बुंदेलखंड में साहूकारों के क़र्ज़े की मार किसानों पर फिर भारी पड़ेगी और वह आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाएगा….. सिलसिला जारी हो चुका है। सरकार को साहूकारी (प्रतिबंधन) अधिनियम के तहत लालची, शोषक साहूकारों के विरुद्ध कड़ी करवाई करनी चाहिए या फिर कोई नया अधिनियम लाकर बुंदेलखंड में व्याप्त draconian साहूकारी प्रथा का उन्मूलन करना चाहिए। बुंदेलखंड में लगभग २०,००० साहूकार हैं, जिनमें कई विधायक/सांसद/ब्लाक प्रमुख/प्रधान/स्टोन क्रैशेर मालिक स्वयं भी ये काम करते हैं। कैसे बचाया जाए …. बुंदेलखंड में क़र्ज़ में आत्महत्या कर रहे किसान को, कुछ समझ नहीं आता…. भला सरकारें तो सरकार ही जो ठहरीं, ज़रा देर में जागती हैं और वह भी ख़ाली fire fighting भर ही !!!!
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