New Delhi, Feb 27 : जिस रात श्रीदेवी की खबर आई उस रात मैं न्यूज़रूम में ही था. सवा बजे से लेकर डेढ़ बजे का वक्त था. पहला रिएक्शन था- “क्या बकवास है? ”
कुछ देर बाद खबर कंफर्म की तो रिेएक्शन था – “मगर ऐसा कैसे हो सकता है?”
इसके बाद अचानक कौंधा कि ऐसा तो नहीं कि ये कोई हत्या हो. मैं स्वीकारूंगा कि ये कोरा तुक्का था और पत्रकारों की ये आदत होती है.
श्रीदेवी की उम्र जाने की नहीं थी. इसके बाद बेमतलब दौड़ते दिमाग को यही कह कर आराम दिया कि दिल का दौरा पड़ने की आजकल कोई उम्र नहीं होती.
फेसबुक पर चैनलों की स्क्रीन के फोटो देखकर ही अंदाज़ा लग रहा है कि क्या कहर बरपा रहे हैं. इधर कुछ लोग श्रीदेवी के पीने-पिलाने पर भी चर्चा में जुटे हैं.
श्रीदेवी के इंडस्ट्री में पचास साल की कहानी एक ही दिन में पुरानी हो गई. अब चैनल के जासूस स्टूडियो में बैठे बैठे उसकी मौत की नई कहानियां बेचेंगे.
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