New Delhi, Mar 12 : ग़लती हो गई, सच ये है कि 35 नहीं 32 साल में एमए किया साहेब ने। लेकिन फिर भी 30 साल में पीएचडी करने में क्या बुराई है, और मैं तो अपनी सारी डिग्रियाँ भी दिखाने को तैयार हूँ। असली सवाल यह नहीं है कि मैं 30 साल तक पढ़ क्यों रहा हूँ, बल्कि सवाल यह है कि आँगनबाड़ी में काम करने वाली का बेटा पढ़ कैसे सकता है, उसको तो हमारी चाकरी करनी चाहिए।
अपराध और भी बड़ा हो जाता है कि एक तो पढ़ रहा है ऊपर से अपने जैसों के हक के लिए हल्ला क्यों मचा रहा है, चुपचाप हमारी गैंग का हिस्सा हो जाए।
हमारे जैसे लोग इसीलिए संघियों के लिए आउट ऑफ़ सिलेबस हो जाते हैं। फिर सच को दबाने के लिए वे मनगढ़ंत झूठे-मूठे आरोप गढ़ते हैं ताकि हमें हमारे ही लोगों के सामने चरित्रहीन साबित कर सकें।
सच को दबाने के लिए गांधी को मारा तो सत्ता में आने में सत्तर साल लगे और मजबूरी यह है तुम्हारी कि अपनी गंदगी ढँकने के लिए तुमको आज भी गांधी के चश्मे का ही सहारा लेना पड़ा।
इंकलाब जिंदाबाद!
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