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किसानों का प्रदर्शन और महाराष्ट्र सरकार का रवैया दोनों अनुकरण योग्य है

किसानों का यह प्रदर्शन और महाराष्ट्र सरकार का यह सहानुभूतिपूर्ण रवैया देश की सभी सरकारों के लिए अनुकरण करने योग्य है।

New Delhi, Mar 14 : देश में Farmers के कई आंदोलन पहले भी हो चुके हैं लेकिन जैसी सफलता महाराष्ट्र के किसानों को मिली है, वैसी, याद नहीं पड़ता कि भारत के किसानों को कभी मिली है। महाराष्ट्र की भाजपा सरकार ने Farmers की लगभग सभी मांगें मंजूर कर ली हैं। किसानों को दिए गए डेढ़ लाख रु. तक के सभी कर्जे माफ किए जाएंगे, उनकी फसलों की लागत से डेढ़ी राशि उन्हें न्यूनतम मूल्य के रुप में मिलेगी।

जंगलों में पीढ़ियों से खेती कर रहे आदिवासियों को उन जमीनों की मिल्कियत मिलेगी, खेतों में सिंचाई के लिए विशेष निर्माण कार्य होंगे, आदिवासी किसानों के इलाज की व्यवस्था भी करेगी। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने छह महिने की अवधि में इन मांगों को पूरा करने का भरोसा दिलाया है। महाराष्ट्र के मंत्रियों ने खुद जाकर किसान नेताओं से बात की और स्वयं मुख्यमंत्री ने तीन घंटे किसानों से बात करके उन्हें संतुष्ट किया। किसानों का यह प्रदर्शन और महाराष्ट्र सरकार का यह सहानुभूतिपूर्ण रवैया देश की सभी सरकारों के लिए अनुकरण करने योग्य है।

नाशिक से मुंबई तक की लगभग 180 किमी की पैदल-यात्रा करने वाले इन किसानों ने कोई तोड़-फोड़ नहीं की, कोई फूहड़ नारे नहीं लगाए, कोई गदंगी नहीं फैलाई। बल्कि उन्होंने रात में भी 25 किमी का पैदल-मार्च इसलिए किया कि सबेरे-सबेरे बोर्ड की परीक्षा देनेवाले हजारों छात्रों को असुविधा न हो। ये किसान मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की किसान सभा द्वारा लाए गए थे। इन भारतीय किसानों ने दुनिया के सारे मार्क्सवादियों को अहिंसा और अनुशासन का पाठ पढ़ा दिया है। 40 हजार किसानों का यह प्रदर्शन सचमुच ऐसे किसानों का था, जिन्हें कार्ल मार्क्स ने सर्वहारा कहा है।

यह किसान-यात्रा आयोजित करके माकपा ने यह सिद्ध कर दिया है कि वह देश की सभी पार्टियों के मुकाबले बेहतर काम कर रही है। खेतों में मजदूरी करने वाले किसानों को आप सर्वहारा या वंचित या दलित नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे ? टीवी चैनलों और अखबारों में उनके सूजे हुए और छालों से छिले हुए पैर देखकर दिल दहल उठता है। कुछ संपन्न इलाकों के समृद्ध किसानों को छोड़ दें तो देश के ज्यादातर किसानों का यही हाल है। बैंकों के अरबों-खरबों के घोटालों के सामने उनकी कर्ज-माफी क्या है ? कुछ नहीं। ज्यादा जरुरी यह है कि उनके लिए उचित बीज, सिंचाई, खाद, प्रशिक्षण और बिक्री की ठीक-ठाक व्यवस्था की जाए। आदमी को जिंदा रखनेवाली सबसे जरुरी चीज पैदा करनेवालों (किसानों) की दशा आखिर कब सुधरेगी ?

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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