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आप जब विपक्ष में थे, तब पत्रकारिता के मानचित्र पर ये चाटुकार कहां थे?- Abhisar Sharma

मेरा एक सीधा सा सवाल है कि जब आपके हितों को कुछ पत्रकार बाकायदा प्राईम टाईम में प्रसारित कर रहे हैं, जब आपने आपसे सवाल करने वाले पत्रकारों के लिए हालात मुश्किल कर दिए हैं तो आपको ऐसे फरमानों की ज़रुरत क्या है?

New Delhi, Apr 05 : क्या ये बताने की ज़रुरत है कि देश में फर्ज़ी-न्यूज़ यानी फेक-न्यूज़ का सबसे ज्यादा फायदा किसको हुआ है? क्या ये बताने की ज़रुरत है कि कासगंज में किस दंगाई पत्रकार ने गलत बयानी और झूठ अपने शो में प्रसारित किया था…और उसके झूठ से खुद उसकी संस्था इतनी परेशान हो गई कि उन्हें मामले को संभालने के लिए एक अदद पत्रकार को जमीन पर भेजना पड़ा। मकसद था कि कासगंज के सहारे ऐसा दोहराव पैदा हो, ऐसा ध्रुवीकरण हो कि वोटर खुद हिंदू-मुसलमान के आधार पर बंट जाए। और क्या ये बताने की ज़रुरत है कि इसका फायदा सिर्फ और सिर्फ बीजेपी को होता है? दंगा हो सो हो… तनाव हो सो हो… भाड़ में जाए देश का सुख-चैन। क्या मेरी ये चिंता बेमानी है? बताइए न बिहार में क्या हो रहा है। कैसे नियम-कानून की धज्जियां उड़ा कर यात्राएं निकाली गई, माहौल को भड़काया गया और नतीजा आपके सामने है। वो बिहार जिसमें साम्प्रदायिक दंगे न के बराबर होते थे, वहां मानो दंगों की झड़ी लग गई। और क्या ये कहना गलत होगा कि बीजेपी का प्रौपगैंडा वार… या जंग जो वो इन पत्रकारों और फर्ज़ी भड़काऊ वेबसाईट्स के जरिए करती है, उसका असर सीधा सियासी तौर पर वोट के बंट जाने के तौर पर सामने आता है?

Postcard और ‘दैनिक भारत’ नाम की दो दंगा भड़काऊ ऐजेंसियां, इन्हें न सिर्फ बीजेपी की बड़े नेताओं का समर्थन हासिल है, अलबत्ता जब Postcard से जुड़े दंगाबाज विक्रम हेगड़े की गिरफ्तारी हुई, तब न सिर्फ पूरी मोदी भक्त मंडली बल्कि कई बीजेपी नेता औऱ सासंद उसके पक्ष में उतर आए। यहां तक कि बीजेपी के सांसद के पैसे से खड़े हुए चैनल ने तो हेगड़े को पत्रकार तक बता दिया। सूचना और प्रसारण मंत्री फेक न्यूज़ में जो क्रान्ति लाने वाली थीं, जिसे प्रधानमंत्री ने पत्रकारों में आक्रोश देख कर धराशाई कर दिया और स्मृति ईरानी का सपना अधूरा रह गया। पत्रकारों पर लगाम लगाने का यही प्रयास बीजेपी की राजस्थान सरकार ने किया था, वो भी चुनावी साल में। उसमें बड़े अधिकारियों पर रिपोर्ट करने पर कई बंदिशें लगाई जा रही थीं। स्मृतिजी भी यही हरकत चुनावी साल में ही कर रही थीं।

मकसद साफ है कि जो झुका नहीं है उसे बरगलाओ। एक शिकायत के आधार पर आपकी मान्यता (accredition) 15 दिन तक लटक जाए। बाद में एनबीए और प्रेस काउंसिल फैसला करती रहेगी। सवाल ये नहीं कि फैसला तो पत्रकारों की इकाई को करना है, सवाल ये कि आप संदेश क्या देना चाह रहे हैं। सवाल ये कि इन हरकतों से सत्ता के खिलाफ रिपोर्ट करने वाले, कठिन सवाल करने वालों पर इसका क्या असर पड़ेगा। आधार में कमियां बताने वाली रिपोर्ट के पत्रकार के खिलाफ आप एफआईआर दर्ज करवा देते हैं और कुछ ही दिनों में सम्पादक हरीश खरे को इस्तीफा तक देना पड़ता है।

क्या ये बताने की ज़रुरत है कि मौजूदा सरकार में पत्रकार को कैसे-कैसे दबावों से गुज़रना पड़ रहा है। और उसे कैसे कैसे फोन काल्स आते हैं? एक एक शब्द एक एक बोली पर निगाह! अगर ये सब न हो रहा होता तो स्मृतिजी की पहल पर विश्वास किया जा सकता था। क्या ये फरमान उस पत्रकार के लिया था जो टीवी पर दंगा भड़काने का काम करता है? नहीं!क्या ये फरमान उन फर्ज़ी दंगा भड़काऊ एजेंसियों के लिए है जो कथित तौर पर बीजेपी और सहयोग संस्थाओं की मदद से चल रही है, जिन्हें उनके नेता खुले आम समर्थन करते हैं? नहीं!

आप TRUEPICTURE. IN नाम की वेबसाईट को ही ले लीजिए। ये वो वेबसाईट है जिसका हवाला अखबारों और टीवी चैनल्स की खबरों को गलत साबित करने के लिए सूचना प्रसारण मंत्री देती रहती है। बड़े बड़े मंत्री मसलन पीयूष गोयल, एमजे अकबर इसका हवाला देते हैं। क्या आप जानते हैं कि जब आप कनाट प्लेस में इसके दफ्तर पहुंचते हैं तो वहां बैठे लोग कहते हैं कि ऐसी कोई वेबसाईट यहां से ऑपरेट नहीं करती। वेबसाईट के मालिक राजेश जैन जिन्होंने 2014 में मोदी के सोशल मीडिया अभियान को संभाला था, वो इस सवाल का जवाब नहीं देते? बड़ी रहस्यमयी है इनकी दुनिया। और इसी रहस्यमयी दुनिया वाले, अब मीडिया पर अंकुश लगाने का काम करेंगे।

मेरा एक सीधा सा सवाल है कि जब आपके हितों को कुछ पत्रकार बाकायदा प्राईम टाईम में प्रसारित कर रहे हैं, जब आपने आपसे सवाल करने वाले पत्रकारों के लिए हालात मुश्किल कर दिए हैं तो आपको ऐसे फरमानों की ज़रुरत क्या है? मुद्दा नीयत का है। आपकी नीयत साफ नहीं है। आप वो हैं जो सवाल करने पर शिकायत कर देते हैं, आपके जवाब पर मुस्कुराने पर शिकायत कर देते हैं, लिहाज़ा आपके हर कदम पर शक पैदा होता है। इस अविश्वास की खाई को पाटने के गम्भीर प्रयास कीजिए। जो आपके चाटुकार हैं वो आपके सत्ता से बाहर होने के बाद आपका साथ छोड़ देंगे। आप जब विपक्ष में थे… तब पत्रकारिता के मानचित्र पर ये चाटुकार कहां थे? बोलिए? पत्रकार विपक्ष होता है। और मैं आज भी विपक्ष में हूं और उस वक्त भी विपक्ष में था, जब आप विपक्ष में थे …और तब भी विपक्ष में ही रहूंगा, जब आप सत्ता से बाहर होंगे।

(ABP News से जुड़ें चर्चित वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा के ब्लॉग से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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