New Delhi, Apr 05 : भारत बंद की हिंसा से सुलगे लोगो को जाट, गुर्जर, पाटीदार और करनी सेना के कारनामे भी याद करना चाहिए! एक तरफ हिंसा पर खामोशी और दूसरी तरफ हंगामा नही चलेगा। जब फिल्मी पर्दे की कहानियों के लिए करनी सेना कानून हाँथ में ले सकती है, आरक्षण की आग को जलाकर जाट, गुर्जर और पाटीदार देश सुलगा सकते है तो क्या अपने हितों के लिए दलित समाज सड़कों पर उतरकर कानून और संविधान को बंधक नही बना सकता?
सत्ता का गलियारा ऐसे ही आंदोलनों से होकर निकलता है, मूद्दे सुलगाना और फिर जन आक्रोश को अपने वोट में तब्दील कर सत्ता का सफर तय करना ही तो नव औपनिवेशिक भारत की नियति बन चुका है।
याद कीजिये 2014! रामदेव का आंदोलन, अन्ना का आंदोलन! देश भरस्टाचार से आहत, त्रस्त और रोष से भरा था और इसे आंदोलन में तब्दील करने का बीड़ा एक तरफ कालेधन के नाम पर रामदेव ने उठाया तो दूसरी तरफ लोकपाल आंदोलन के जरिये सत्ता से दो दो हाँथ करने के लिए रामलीला मैदान में अन्ना अपने दल बल के साथ आ जुटे।
यकीन मानिए ये तो बस शुरुवात है। आनेवाले साल भर मोदी सरकार के विरोध में उठनेवाली हर आवाज और मूड्डे को महाभारत में तब्दील करने में विपक्ष और कांग्रेस कोई कसर नही छोड़नेवाला।
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