New Delhi, Apr 18 : दुखी मत होइए। मन छोटा मत कीजिए। आसिफा नहीं लौटेगी लेकिन इस एक घटना ने तमाम नकारत्मकता के बीच छोटा सा उजास फैलाया है। किसी मुसलमान को कहने का मौका नहीं मिला कि हिंदू हमारे साथ जम्मू-कश्मीर में बुरा कर रहे हैं। बच्ची की वकील से लेकर जांच टीम तक की अधिकारी हिंदू धर्म के हैं और सभी तरह के परोक्ष-अपरोक्ष दबावों के बावजूद अपने फर्ज़ को निभा रही हैं।
मीडिया ने कठुआ को पर्याप्त कवरेज भी दी और उन्हें लताड़ा भी जो तिरंगा लेकर दोषियों की करतूत का बचाव करने की चालें चल रहे थे। बार एसोसिएशन ने उन वकीलों को जमकर डपटा जो मामले को हिंदू-मुस्लिम रंग देकर पोलराइज़ेशन की फिराक में थे । फेसबुक पर ऐसे लोगों की बाढ़ आ गई जिन्होंने दोषियों का बचाव करनेवालों को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया। महिंद्रा कोटक बैंक के एक असिस्टेंट मैनेजर ने जब आसिफा के लिए घटिया पोस्ट लिखा तो लोगों ने उसके बैंक पर दबाव बनाया और उसे सज़ा मिली। इस दौरान मैंने ऐेसे मामले भी देखे हैं जब सार्वजनिक जगहों पर बलात्कार को ज़रा भी जस्टिफाई करनेवाले को लोगों ने घेरा।
शहर-शहर सड़कों पर उतरनेवालों को तो कोई भूल ही नहीं सकता। इन्होंने दिखा दिया कि निर्भया या आसिफा दोनों हमारी बेटियां हैं।
शायद उस पिता ने हिंदुओँ के गुस्से को देखकर संतोष किया हो कि चंद घटिया लोग और मुट्ठी भर उनके समर्थक पूरे देश और धर्म को शर्मसार नहीं कर सकते।
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