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भारत कराए अमेरिका व ईरान के बीच समझौता

अमेरिका में हुए राष्ट्रपति के चुनाव के वक्त से ही ट्रंप ने इस समझौते की कड़ी भर्त्सना शुरु कर दी और वादा किया था कि वे इसका बहिष्कार करेंगे।

New Delhi, May 13 : अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में तहलका मचा दिया है। उन्हेांने ईरान से हुए परमाणु-समझौते के बहिष्कार की घोषणा करके सारी दुनिया को हक्का-बक्का कर दिया है। लोगों के दिमाग में कई सवाल कौंधने लगे हैं। क्या ईरान अब दुबारा परमाणु बम बनाने में जुट जाएगा ? क्या इस्राइल और ईरान में अब खुली मुठभेड़ होगी ? क्या पश्चिम एशिया में सउदी अरब और ईरान के बीच वर्चस्व की लड़ाई छिड़ जाएगी ? क्या इस्राइल और ईरान की आड़ में अब अमेरिका और रुस एक-दूसरे के विरुद्ध जोर आजमाई करेंगे ? इस समझौते के टूटने से कहीं तीसरा विश्व-युद्ध तो नहीं भड़क उठेगा ?

यह समझौता जुलाई 2015 में हुआ था। इस पर ईरान के अलावा अमेरिका, रुस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी ने दस्तखत किए थे। इसे संपन्न करने के लिए ईरान के साथ इन देशों ने कई वर्षों तक कूटनीतिक वार्ता चलाई थी और कड़े अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध थोप दिए थे। ईरान की अर्थ-व्यवस्था लगभग चौपट हो रही थी। समझौता यह हुआ था कि ईरान परमाणु बम नहीं बनाएगा और यूरेनियम को संशोधित नहीं करेगा। इसके परिणामस्वरुप ईरान ने पिछले तीन साल में अपने 13000 सेंट्रीफ्यूजेस और 97 प्रतिशत संशोधित यूरेनियम को नष्ट कर दिया। ईरान कहीं भी चोरी-छिपे परमाणु-बम तो नहीं बना रहा है, इस संदेह को मिटाने के लिए ईरान ने वियना की अंतरराष्ट्रीय परमाणु एजेंसी की कड़ी निगरानी भी स्वीकार की है। एजेंसी का कहना है कि ईरान समझौते की सभी शर्तों का ईमानदारी से पालन कर रहा है। इस समझौते के बाद अमेरिका सहित सभी राष्ट्रों ने ईरान पर से प्रतिबंध उठा लिये थे। ईरान के अर्थ-व्यवस्था भी फिर से पनपने लगी थी।

लेकिन अमेरिका में हुए राष्ट्रपति के चुनाव के वक्त से ही ट्रंप ने इस समझौते की कड़ी भर्त्सना शुरु कर दी और वादा किया था कि वे इसका बहिष्कार करेंगे। किसी तरह लगभग डेढ़ साल तक उन्होंने इसे चलने दिया और अब उन्होंने बाकायदा इसे छोड़ने की घोषणा कर दी है। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा है कि ईरान पर सारे प्रतिबंध दुबारा लागू करेंगे और जो राष्ट्र ईरान की मदद करेंगे, उन पर भी ये प्रतिबंध लागू कर दिए जाएंगे। ट्रंप का तर्क यह है कि यह समझौता बड़ा मूर्खतापूर्ण है। इसमें भयंकर धोखाधड़ी होनेवाली है। इसमें ईरान को यह छूट दे दी गई है कि 2025 के बाद वह इस समझौते के बंधन में नहीं रहेगा याने 2025 के बाद वह परमाणु बम बना लेगा। क्या मालूम वह अभी भी परमाणु बम की तैयारी कर रहा है या नहीं ?
ट्रंप के दावों का अंध-समर्थन इस्राइल कर रहा है। इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने पिछले हफ्ते एक बड़े पत्रकार सम्मेलन में 10 हजार पेज के गुप्त ईरानी दस्तावेज पेश करके यह सिद्ध करने की कोशिश की कि ईरान परमाणु बम बनाने पर डटा हुआ है। इस्राइल और ईरान का 36 का आंकड़ा है। ईरान की मदद फलस्तीनियों, लेबनानी शियाओं और इस्राइल-विरोधी हर संगठन को मिलती रहती है। यदि ईरान के पास परमाणु बम आ जाता है तो अरब देशों पर इस्राइल की आधी दहशत अपने आप खत्म हो जाएगी। शिया-सुन्नी विवाद के कारण सउदी अरब से ईरान की पहले से ठनी हुई है। ये दोनों राष्ट्र ट्रंप के चहेते हैं। इसके अलावा ईरान के खिलाफ ट्रंप इसलिए भी है कि वह सीरिया के शासक बशर अल-असद की खुलकर मदद कर रहा है। इस काम में रुस पूरी तरह से ईरान का साथ दे रहा है। चीन का भी उसे कूटनीतिक समर्थन प्राप्त है। इनके विपरीत इस्राइल और अमेरिका सीरिया में अस्साद के खिलाफ जबर्दस्त फौजी मोर्चा लगाए हुए हैं। ट्रंप की घोषणा के बाद सीरिया में ईरानी और इस्राइली फौजों के बीच जमकर युद्ध हुआ है। डर यही है कि यह युद्ध रुस और अमेरिका के बीच न छिड़ जाए।

ट्रंप ने परमाणु-समझौते का जो बहिष्कार किया है, उसका इस्राइल के अलावा किसी भी महत्वपूर्ण राष्ट्र ने समर्थन नहीं किया है। इस समझौते पर दस्तखत करनेवाले ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस जैसे अमेरिका के परम मित्र राष्ट्रों ने भी ईरान से कहा है कि वे इस समझौते को अब भी मानते हैं और आगे भी मानते रहेंगे। लेकिन इस आश्वासन के बावजूद मुझे नहीं लगता है कि वे अमेरिकी विरोध के मुकाबले टिक पाएंगे। फ्रांस के राष्ट्रपति इम्नेउल मेकरों ने अपनी वाशिंगटन-यात्रा के दौरान बीच का रास्ता निकालने के लिए एक चार-सूत्री फार्मूला सुझाया था, जो ट्रंप के विचारों के करीब था। इसके अलावा सभी राष्ट्रों को पता है कि ट्रंप का कोई भरोसा नहीं। वे कब क्या कर बैठें ? ट्रंप पहले जलवायु और प्रशांत-क्षेत्र व्यापार समझौते को तोड़ ही चुके हैं। उत्तरी कोरिया के अदम्य तानाशाह किम को वे झुका चुके हैं। लेकिन ईरान, ईरान है, उत्तरी कोरिया नहीं। वह धौंस और धमकियों से डरने वाला नहीं है। पहले भी उसने अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की परवाह नहीं की थी। अब यदि वह दुबारा परमाणु बम बनाने पर उतर आया तो यह बड़ी खतरनाक बात हो सकती है। ईरान के नेताओं ने ट्रंप को उन्हीं के शब्दों में बुरी तरह से शर्मिंदा किया है और नहले पर दहला मारा है।

ईरान पर लगे प्रतिबंधों का असर भारत-जैसे देशों पर काफी घातक होगा। इस समय भारत को तेल भेजनेवाले देशों में ईरान का नंबर तीसरा है। भारत के लिए तेल बहुत मंहगा हो जाएगा। पहले ही वह काफी मंहगा है। मोदी सरकार का सिरदर्द तेज हो जाएगा। इसके अलावा ईरान के चाहबहार से हम जो मध्य एशिया के पांच राष्ट्रों और अफगानिस्तान तक पहुंचने के नए रास्ते बनानेवाले थे, यह योजना भी ठप्प हो जाएगी। कोई आश्चर्य नहीं कि चाहबहार योजना के ठप्प होते ही ईरान कोशिश करेगा कि वह चीन से सहयोग बढ़ाए ताकि उसे पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के इस्तेमाल की सुविधा मिल सके। चाहबहार से ग्वादर सिर्फ 80 किमी है। ऐसी स्थिति में भारत को एक तटस्थ-सा बयान देकर चुप नहीं बैठना चाहिए। भारत ने ईरान और अमेरिका से अनुरोध किया है कि वे इस मामले को शांतिपूर्ण ढंग से हल करें। यह काफी नहीं है। भारत इस समय अमेरिका और ईरान, दोनों का घनिष्ट मित्र है। किसी भी बड़े राष्ट्र की स्थिति इस मामले में आज वह नहीं है, जो भारत की है। यदि भारत पहले करे तो उक्त परमाणु-समझौते को अब इस तरह से ढाला जा सकता है कि वह सभी पक्षों को मान्य हो जाए।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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