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नेहरू की नज़र में चीन के लोग ख़ुद ही अपने चीनी नेताओं के शिकार हैं

भारत-चीन के मुद्दे पर चीन के लोगों की भावना के बारे में नेहरू ने कभी कहा था, “वे यह नहीं कह सकते हैं कि चीन के लोग भारत को लेकर कैसा महसूस करते हैं।

New Delhi, May 17 : नेहरू ही वो शख़्स थे,जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में चीन की स्थायी सदस्यता की वक़ालत की थी। अमेरिका ने इस सदस्यता की पेशकश जब भारत के लिए की थी, तो नेहरू ने इसके लिए चीन को हक़दार बता दिया था। चीन को स्थायी सदस्यता भी मिली और चीन ने 1962 में भारत पर हमला भी कर दिया। भारत पर चीनी हमले के बाद टूटे-बिखरे नेहरू की चीन को लेकर इतिहास बोध से बनी समझ ने यू टर्न ले लिया था।

हिन्दी-चीनी भाई-भाई के नारों की गूंज जब पराजय के क्रन्दन में बदल गयी, तो नेहरू चीनी कूटनीति और उसकी भाषा पर पैनी और गहरी नज़र रखने लगे। चीन की भाषा जिस तरह की थी, उस तरीक़े के बारे में नेहरू की धारणा बदल चुकी थी। नेहरू लगभग हर मंच से यह बताना नहीं भूलते कि चीन सच्चाई कभी नहीं बताता है। झूठ के रूप में सत्य और सच्चाई के रूप में झूठ को चिन्हित करने के चीनी प्रयासों पर नेहरू चकित थे। चीन ग़लत स्पष्टीकरण देता है और उसमें मज़बूत भाषा को फेंकने की आदत भी है। नेहरू ने यह भी कहा था कि वो गर्व का पदर्शन करता है और ताक़त का अहंकार दिखाता है। चीन एक ऐसा विस्तारवादी देश है, जो मुद्दों को हल करने के एक तरीक़े के रूप में युद्धों में विश्वास करता है। चीन के लिए शांति सबसे खतरनाक शब्द है। चीन की सीमा एक बदलते रहने वाला क्षेत्र है, जो कुछ भी वह हड़प सकता है, और आख़िरकार वह उसका एक सीमावर्ती क्षेत्र बन जाता है। चीन असभ्य देश है, क्योंकि उसके व्यवहार का अंतरराष्ट्रीय स्तर बेहद अस्त-व्यस्त है और जिससे पूरी दुनिया प्रभावित है।

नेहरू को इस बात का बहुत खेद था कि एक महान सांस्कृतिक परंपरा वाली ऐसी किसी प्राचीन सभ्यता को ऐसे मामलों में बदल जाना चाहिए था। वह चीनी लोगों के खिलाफ़ तब भी नहीं थे। उन्हें एकमात्र अफ़सोस इस बात का था कि उनकी सरकार भारत को ध्यान में रखते हुए काम करती है-लेकिन चीन भारत के ख़िलाफ़ कार्य करने के लिए कुख्यात है। उन्होंने भारत के लोगों से चीनी लोगों के ख़िलाफ़ कुछ भी नहीं करने के लिए आह्वान किया था, क्योंकि नेहरू की नज़र में चीन के लोग ख़ुद ही अपने चीनी नेताओं के शिकार हैं।

भारत-चीन के मुद्दे पर चीन के लोगों की भावना के बारे में नेहरू ने कभी कहा था, “वे यह नहीं कह सकते हैं कि चीन के लोग भारत को लेकर कैसा महसूस करते हैं, क्योंकि उन्हें अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का कोई मौका ही नहीं है। और अगर उनके पास किसी तरह के मौके का कोई विकल्प होता भी, तो लगातार प्रचार-प्रसार से उनके दिमाग़ को ऐसा बना दिया जाता है कि वो किसी दूसरे तरीक़े से सोच ही नहीं पायेंगे।
इस आख़िरी पंक्ति में चीन को लेकर नेहरू 60 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में जो कुछ कह रहे थे,आज वो भारत के लोगों को लेकर सटीक बैठता है।

(वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र चौधरी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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