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कर्नाटक का मामला न तो राज्यपाल की मनमानी है, न BJP की जबरदस्ती

कर्नाटक का मामला न तो राज्यपाल की मनमानी है, न BJP की जबरदस्ती। यह लोकतंत्र की हत्या भी नहीं है। तो फिर क्या है ? दरअसल यह हमारे संविधान की विफलता है।

New Delhi, May 19 : कर्नाटक में राज्यपाल द्वारा बीजेपी को सरकार बनाने के आमंत्रण पर राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। राज्यपाल के फैसले को लोकतंत्र की हत्या बताया जा रहा है। बीजेपी पर संविधान विरोधी होने के आरोप लग रहे हैं। बचाव में बीजेपी कांग्रेस को अतीत की याद दिला रही है। विधायकों को बंदी बनाकर रखा गया है।ताकि वे दूसरे दल के साथ न चले जाएं ?

इधर बिहार में सबसे बड़े दल होने के नाते RJD और गोवा में कांग्रेस राज्यपाल से सरकार बनाने का निमंत्रण मांग रही है।
यह विवाद नया नहीं है। किसी दल को बहुमत नहीं मिलने पर ऐसा विवाद स्वाभाविक है। राजनीतिक पार्टियां और नेता आरोप-प्रत्यारोप में उलझे हुए हैं। माहौल गर्म है। लेकिन असल मामले पर कोई नहीं बोल रहा। कर्नाटक का मामला न तो राज्यपाल की मनमानी है, न BJP की जबरदस्ती। यह लोकतंत्र की हत्या भी नहीं है। तो फिर क्या है ? दरअसल यह हमारे संविधान की विफलता है। किसी दल को बहुमत न मिलने की स्थिति में राज्यपाल को क्या करना चाहिए, इस बारे में कोई स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं है। संविधान निर्माताओं की दूरदर्शिता यहां नही दिखती। शायद वे ऐसी स्थिति की कल्पना नहीं कर सके थे। इसलिए ऐसी परिस्थिति में क्या होना चाहिए, इस पर संविधान मौन है। सब कुछ राज्यपाल की मर्जी और विवेक पर है। मर्जी का फैसला मनमर्जी वाला भी हो सकता है। और यह जरूरी नहीं की स्वविवेक से लिया गया फैसला न्यायसंगत भी हो।

पार्टियां भी इसका स्थायी समाधान नहीं चाहती। क्योंकि अनिश्चितता में सबका फायदा है। जब जिसका जोर चला अपनी सरकार बनवा ली या विपक्ष की बर्खास्त करा दी। अपराधी प्रतिनिधियों को बचाने या अपना वेतन-भत्ता बढ़ाने के लिए सांसद और विधायक जैसे एकजुट हो जाते है, इस मसले पर वैसी एकजुटता क्यों नहीं दिखती ? इसपर कभी सर्वदलीय बैठक नहीं होती। यह समस्या आजादी के बाद से ही चली आ रही है। गैर कांग्रेसी दल इस संवैधानिक त्रुटि के सबसे ज्यादा शिकार होते रहे हैं। लेकिन वे भी कांग्रेस के रंग में खुद को रंग रहे हैं।

लेकिन अब समय आ गया है कि इस मसले का स्पष्ट समाधान हो। संविधान संशोधन कर किसी दल का बहुमत न होने की स्थिति में राज्यपाल और राष्ट्रपति की भूमिका को स्पष्ट रेखांकित किया जाना चाहिये। क्या बीजेपी सरकार इसके लिए पहल करेगी ?

(वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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