New Delhi, May 21 : गत 18 मई को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘राज्यपाल के दलों को सरकार बनाने के लिए बुलाने के विवेकाधिकार की न्यायिक समीक्षा की जाएगी।’ सुप्रीम कोर्ट का यह कदम उचित है। पर उसे इसके साथ ही राष्ट्रपति के विवेकाधिकार की भी समीक्षा करनी चाहिए। याद रहे कि बहुमत की किसी गुंजाइश के बिना ही 1996 में तत्कालीन राष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा ने अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधान मंत्री पद की शपथ दिला दी थी।
यदि डा. शर्मा कांग्रेसी पृष्ठभूमि के नहीं होते तो संजय निरूपम जैसा कोई नेता उन्हें भी कुत्ता कह देता।
गत 16 मई को मैंने अपने फेसबुक वाॅल पर लिखा था कि
देश के अनेक लोग बड़े गौर से यह देख रहे हैं कि लोकतंत्र की इस कसौटी पर राज्यपाल महोदय खरा उतरते हैं या नहीं।
मैंने यह इसलिए लिखा था क्योंकि मुझे आशंका थी कि कर्नाटका के राज्यपाल उच्चस्तरीय दबाव में आकर अनुचित निर्णय कर सकते हैं। उन्होंने किया भी।
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