कर्नाटका जैसा लोभ प्रदर्शित करके भाजपा अपने पुण्य के बैंक बैलेंस को कम कर रही है

कर्नाटका के राज्यपाल उच्चस्तरीय दबाव में आकर अनुचित निर्णय कर सकते हैं। उन्होंने किया भी।

New Delhi, May 21 : गत 18 मई को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘राज्यपाल के दलों को सरकार बनाने के लिए बुलाने के विवेकाधिकार की न्यायिक समीक्षा की जाएगी।’ सुप्रीम कोर्ट का यह कदम उचित है। पर उसे इसके साथ ही राष्ट्रपति के विवेकाधिकार की भी समीक्षा करनी चाहिए। याद रहे कि बहुमत की किसी गुंजाइश के बिना ही 1996 में तत्कालीन राष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा ने अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधान मंत्री पद की शपथ दिला दी थी।

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यदि डा. शर्मा कांग्रेसी पृष्ठभूमि के नहीं होते तो संजय निरूपम जैसा कोई नेता उन्हें भी कुत्ता कह देता।
गत 16 मई को मैंने अपने फेसबुक वाॅल पर लिखा था किKarnataka1 ‘कर्नाटका के राज्यपाल को उसी दल या दल समूह के नेता को मुख्य मंत्री पद की शपथ दिलानी चाहिए जो विधान सभा में अपना बहुमत साबित कर सके।

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देश के अनेक लोग बड़े गौर से यह देख रहे हैं कि लोकतंत्र की इस कसौटी पर राज्यपाल महोदय खरा उतरते हैं या नहीं। Governer1मौजूदा राजनीतिक स्थिति को देखते हुए यह काम तो जरा कठिन लगता है,पर यह कठिन काम भी लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए करना ही चाहिए।’

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मैंने यह इसलिए लिखा था क्योंकि मुझे आशंका थी कि कर्नाटका के राज्यपाल उच्चस्तरीय दबाव में आकर अनुचित निर्णय कर सकते हैं। उन्होंने किया भी। MOdi shah2येदियुरप्पा के शपथ ग्रहण समारोह में न तो प्रधान मंत्री उपस्थित थे और न ही अमित शाह। इससे उनका अपराध बोध परिलक्षित होता है। एक हाल के एक सर्वे के अनुसार नरेंद्र मोदी सरकार के काम काज को देश के अधिकतर लोगों ने सराहा है। कर्नाटका जैसा लोभ प्रदर्शित करके भाजपा अपने पुण्य के बैंक बैलेंस को कम कर रही है।

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)