क्या हम शासन से तत्काल सकारात्मक हस्तक्षेप की उम्मीद करें ?

यह महज संयोग नहीं कि प्रेस फ्रीडम के अंतर्राष्ट्रीय सूचकांक में भारत इस वक्त 180 देशों के बीच 138 वें स्थान पर है!

New Delhi, May 28 : अपने देश में स्वतंत्र, निर्भीक और वस्तुगत ढंग से पत्रकारिता करना मुश्किल होता जा रहा है! इधर ये मुश्किलें और बढ़ती जा रही हैं! ‘Cobrapost’ के मीडिया सम्बन्धी कई बड़े खुलासों से भी इस बात का सबूत मिलता है। यह महज संयोग नहीं कि प्रेस फ्रीडम के अंतर्राष्ट्रीय सूचकांक में भारत इस वक्त 180 देशों के बीच 138 वें स्थान पर है! लोकतांत्रिक देशों में हम सबसे नीचे हैं। हमसे नीचे सिर्फ वे मुल्क हैं, जहां किसी न किसी किस्म की तानाशाही है या जो नवजात लोकतंत्र हैं या फिर जिन मुल्कों में लोकतंत्र और तानाशाही का आना-जाना लगा रहता है!

NDTV के वरिष्ठ पत्रकार और मशहूर एंकर रवीश कुमार को डराने-धमकाने की कोशिशों को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। रवीश के अलावा राणा अयूब, शंभू कुमार सहित दर्जन भर से ऊपर पत्रकारों को हाल के दिनों में धमकियां मिली हैं या उनके साथ मारपीट की गई। छत्तीसगढ़ में की पत्रकारों की फर्जी मामलों में गिरफ्तारी हुई है। बीबीसी के पूर्व पत्रकार विनोद वर्मा को आनन फानन में जिस तरह गिरफ्तार किया गया था, उसे हम सब देख चुके हैं! निर्भीक और वस्तुगत ढंग से पत्रकारिता करने के लिए The Wire, The Caravan सहित कई अन्य मीडिया मंचों और वेबसाइटों पर आपराधिक अवमानना के बड़े बड़े मुकदमे ठोके गये हैं!

आज के मुश्किल दौर में बेहतर पत्रकारिता कर रहे रवीश और अन्य पत्रकारों को मिलने वाली ऐसी धमकियों को हमें गंभीरता से लेना चाहिए। पता नहीं, हमारी सरकार, पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां उसे गंभीरता से ले रही हैं या नहीं! रवीश ने बीते शुक्रवार अपने चैनल पर सबूतों के साथ उन उग्रवादी और उदंड तत्वों का पर्दाफाश किया, जो काफी समय से उन्हे जान से मारने की धमकी दे रहे हैं। विडम्बना ये है कि ऐसी धमकी देने वालों में आपराधिक मानसिकता के कई ऐसे तत्व भी शामिल हैं, जिन्होंने अपना परिचय उस ‘राजनीतिक-सांस्कृतिक परिवार’ के समर्थक, संगठक या पैरोकार के रूप में दिया, जो आज सत्ता-संरचना का प्रत्यक्ष या पर्दे के पीछे से संचालन कर रहा है! मसलन, एक ने अपने को ‘बजरंग दल’ का जिला स्तरीय पदाधिकारी बताया! इस संगठन के अनेक लोग अपने से असहमत लोगों पर बर्बर हमलों के लिए कुख्यात हैं! कई स्थानों पर हत्याएं तक की हैं।

हम कैसे भूल सकते हैं कि बीते कुछ सालों के दौरान गौरी लंकेश जैसी मशहूर पत्रकार-लेखिका और प्रो कलबुरगी, नरेंद्र दाभोलकर और गोविन्द पानसरे जैसे विद्वानों की हत्याएं हो चुकी हैं! छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, यूपी, बिहार और त्रिपुरा सहित कई राज्यों में पत्रकारों की हत्याएं हुई हैं, उन्हें जेल में डाला गया है या मारा पीटा गया है!
क्या हम शासन से तत्काल सकारात्मक हस्तक्षेप की उम्मीद करें!

(वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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