Categories: वायरल

नेताजी के साथ ऐतिहासिक छलावा

1897 की 23 जनवरी को कटक में एक बंगाली परिवार में जन्में सुभाष चंद्र बोस को अपने घर पर अपनी माँ से देशभक्ति और राष्ट्रप्रेम के संस्कार मिले।

New Delhi, Oct 23 : भारतीय राजनय के इतिहास में नेता जी सुभाष चंद्र बोस एक ऐसा नायक है जिसके साथ न्याय कभी नहीं हुआ। एक तरफ तो अधिकांश देशवासी उन्हें देवतुल्य मानते हुए उनकी पूजा करता है तो दूसरी तरफ आजादी के बाद से सरकार में आए किसी भी राजनैतिक दल ने उनके पूरे जीवन पर कभी कोई ऐतिहासिक दृष्टि नहीं डाली। यानी नेता जी या तो भगवान मान लिए या भगोड़ा। दोनों ही स्थितियां किसी ऐतिहासिक नायक के लिए दुखद हैं। आज तक यह भी साफ नहीं हो पाया कि 18 अगस्त 1945 को नेताजी वाकई एक विमान दुर्घटना में मारे गए या रहस्यमय परिस्थितियों में गायब हुए। द्वितीय विश्वयुद्घ खत्म होने के बाद मित्र राष्ट्रों की नजर में जर्मनी व जापान को दोषी करार दिया गया और इसी नाते नेता जी भी दूसरे विश्वयुद्घ के खलनायक समझे गए। मगर नेता जी का मकसद अलग था वे कोई बाजार की होड़ में आकर इस युद्घ में जर्मनी व जापान के साथ नहीं गए वरन् उनका मकसद भारत को अंग्रेजों से आजाद करना था। यह नेता जी का ही दबाव था कि जो कांग्रेस और उसके डिक्टेटर महात्मा गांधी 1939 से 1942 के शुरुआती सात महीनों तक युद्घ को लेकर अपना स्टैंड साफ नहीं कर पा रही थी अचानक 9 अगस्त 1942 को अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा देने लगी। कांग्रेस के अंदर नेताजी के विचारों का दबाव इतना अधिक था कि गांधी जी को भी अंग्रेजों के विरुद्घ एक कड़ा रुख अपनाना पड़ा।

1897 की 23 जनवरी को कटक में एक बंगाली परिवार में जन्में सुभाष चंद्र बोस को अपने घर पर अपनी माँ से देशभक्ति और राष्ट्रप्रेम के संस्कार मिले। देश की आजादी को लेकर तमाम तरह के प्रश्न उनके मस्तिष्क में घुमड़ा करते और उनकी माँ यथासंभव उन्हें शांत करने का प्रयत्न करतीं। पहले तो उन्हें लगा कि देश की जनता की सेवा अंग्रेज सरकार में कलेक्टर बनकर की जा सकती थी इसीलिए वे लंदन जाकर सिविल सेवा की परीक्षा में बैठे और पास हुए पर फिर लगा कि यह सिर्फ मृग मरीचिका ही है। वे सरकारी सेवा में रहकर अंग्रेज स्वामियों के विरुद्घ नहीं जा सकते इसलिए उन्होंने इस नौकरी को लात मार दी और राजनीति में आ गए। उनकी मशहूर पुस्तक तरुणाई के सपने में यह सब बातें विस्तार से बताई गई हैं। देश सेवा का जज्बा सिर्फ महात्वाकांक्षा पालना ही नहीं है बल्कि उसे पूरा करने के लिए निरंतर प्रयास करना भी है। सुभाषचंद्र बोस के पिता बंगाल प्रांत के ओडीशा डिवीजन में कटक में वकालत करते थे। उनकी मां प्रभावती देवी एक सामान्य घरेलू महिला थीं। अपने चौदह भाई-बहनों में सुभाष बोस नवें नंबर के बच्चे थे। कटक के प्रोटेस्टेंट स्कूल में उनकी शुरुआती पढ़ाई हुई। 1913 में वे कोलकाता के प्रेसीडेंसी कालेज में गए और बाद में स्काटिश चर्च कालेज से दर्शन में उन्होंने बीए किया। अपने पिता की इच्छा को पूरा करते हुए वे इंग्लैंड गए और वहां के फिट्जविलियन कालेज से पढ़ाई पूरी की और इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा में बैठे और जल्द ही उन्हें लग गया कि कलेक्टर बनना और देश सेवा में फर्क है। इसलिए सिविल सर्विस की परीक्षा के 1919 बैच में चयनित होने तथा चौथे नंबर पर आने के बाद भी उन्होंने सरकारी नौकरी नहीं की। 1921 में उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे के पूर्व उन्होंने अपने बड़े भाई शरतचंद्र बोस को एक पत्र लिखा कि मात्र नौकरी करना ही जीवन का लक्ष्य नहीं हो सकता। अपनी मातृभूमि के प्रति भी उनका कोई दायित्व है।

नेता जी भारत लौट आए और राजनीति में कुछ करने के लिए वे कांग्रेस के निकट आए। उस वक्त कांग्रेस में जिन क्षत्रपों की तूती बोलती थी उनमें से एक चितरंजन दास थे। बाबू चितरंजन दास कई मायनों में गांधी जी से अलग राय रखते थे। दास बाबू ने नेताजी की प्रतिभा पहचानी और उन्हें बंगाल कांग्रेस की प्रान्तीय कमेटी का प्रभारी बना दिया। साथ में नेता जी दास बाबू का अखबार स्वराज और फारवर्ड का कामकाज भी देखने लगे। जल्दी ही नेताजी काम करने की अपनी ललक, मेहनत व जनसंपर्क के चलते बंगाल ही नहीं वरन् पूरे देश की कांग्रेस में पहचाने जाने लगे। नेता जी युवाओं के बीच इतने लोकप्रिय हो गए कि कांग्रेस की युवा ईकाई का उन्हें अध्यक्ष चुन लिया गया। तब ही दास बाबू कलकत्ता नगर निगम में मेयर चुन लिए गए तो उन्होंने नेता जी सुभाष चंद्र बोस को निगम का सीईओ बना दिया। निगम व सरकार में टकराव हुआ तो सुभाष बाबू को गिरफ्तार कर अंग्रेज सरकार ने बर्मा प्रांत की मांडला जेल में डाल दिया। वहां से नेता जी 1927 में आजाद हुए और उनके जेल से रिहा होते ही उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय सचिव बना दिया गया। इसी दौरान सुभाष बाबू की निकटता जवाहर लाल नेहरू से हुई जो उनसे महज नौ साल बड़े थे। दोनों ही प्रतिभाशाली और आजाद ख्यालों और विचारों के। जवाहर लाल जी जब कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए तो उन्होंने कांग्रेस का कामकाज देखने के लिए अपना सहायक सुभाष बोस को रखा। सुभाष बाबू एक अद्भुत स्वप्नदृष्टा थे। शायद इसीलिए उन्हीं दिनों उन्होंने कलकत्ता में कांग्रेस की अखिल भारतीय सभा उन्होंने करवाई और कांग्रेस स्वयंसेवकों की कमांडरी उन्हें सौंपी गई। बतौर कमांडर उनके काम की तारीफ खुद महात्मा गांधी ने भी की थी। उनकी इस कमांडरी के बाद ही उन्हें नेताजी का खिताब मिला।

1929 में नेता जी पुन: गिरफ्तार कर लिए गए। रिहा होने के बाद वे लंदन गए और वहां पर तमाम योरोपीय नेताओं से मिले। वे कम्युनिस्ट नेताओं के भी संपर्क में आए और फासिस्ट नेताओं के भी। अंग्रेज सरकार के एजेंट इस युवा नेता की हर गतिविधि पर नजर रखे थे। उन्हें लगा कि कांग्रेस में इसकी बढ़ती लोकप्रियता और इस नेता के विचार पूरी पार्टी को योरोप के मित्र देशों के हितों के विरुद्घ ले जाएंगे। इसलिए उन्होंने गांधी जी पर दबाव बनाया कि अगर नेता जी सुभाष चंद्र बोस की गतिविधियों पर रोक न लगाई गई तो भारत को आजाद करने के जिस प्लान पर वे सोच रहे हैं उस पर अंकुश लग जाएगा। उधर नेता जी कांग्रेस के भीतर युवाओं के हीरो बन चुके थे। यही कारण था कि 1938 में गुजरात के हरिपुरा में हुई कांग्रेस में अध्यक्ष चुन लिए गए। दूसरा विश्वयुद्घ छिडऩे पर गांधी जी पर अंग्रेजों का दबाव था कि वे उनकी फौज के लिए जवान भरती कराएं। पर कांग्रेस में इस बात का घोर विरोध हुआ। इसलिए अगले ही वर्ष जबलपुर के त्रिपुरी में जब कांग्रेस बैठी तो गांधी जी ने नेताजी की पुन: अध्यक्षी का घोर विरोध किया। सुभाष बोस को रोकने के लिए उन्होंने जवाहर लाल नेहरू से अध्यक्ष पद हेतु चुनाव लडऩे के लिए कहा। मगर जवाहर लाल नेहरू समझ रहे थे कि नेता जी के विरोध का मतलब सीधे अलोकप्रिय हो जाना है इसलिए उन्होंने गांधी जी को जवाब भेजा कि एक तो इस समय मैं लंदन में हूं आ नहीं सकता दूसरे एक बार मैं रह चुका हूं इसलिए दुसरे युवा मौलाना आजाद को आप कहें। मगर मौलाना तो सिरे से ही नहीं कर दिया क्योंकि वे ताड़ गए कि उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है। अंत में गांधी जी ने अपने विश्वस्त पट्टाभि सीतारामैया को चुनाव नेता जी के विरुद्घ चुनाव लड़वाया। मगर वे चुनाव हार गए तथा नेता जी सुभाष चंद्र बोस फिर से अध्यक्ष चुन लिए गए। पर गांधी जी ने खुलकर कहा कि यह मेरी हार है और मैं अनशन करूंगा। तब नेताजी पर दबाव बना और उन्होंने अध्यक्षी बाबू राजेंद्र प्रसाद को सौंप दी।

इसके बाद नेता जी ने कांग्रेस छोड़ दी और बंगाल आकर 22 जून 1939 को आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक के नाम से अलग पार्टी बनाई जिसका झुकाव कम्युनिज्म के प्रति अधिक था। कांग्रेस के उनके सहयोगी एमएन धेवर भी कांगेस छोड़कर नेता जी के साथ चले गए। धेवर ने तमिलनाडु के मदरास शहर में फरवर्ड ब्लाक की तरफ से नेता जी के सम्मान में एक रैली कराई। उसमें इतनी भीड़ जुटी कि कांग्रेस को एक बड़ा झटका लगा। तब तक नेता जी जापान और जर्मनी के सीधे संपर्क में आ गए और भारत को आजाद कराने की खातिर बर्मा में जाकर आजाद हिंद फौज बनाई। इस फौज में वे देसी जवान व अफसर आ गए जिन्हें अंग्रेज सरकार ने बर्मा जाकर जापानियों से मोर्चा लेने को भेजा था। यह देखकर गांधी जी ने भी अंग्रेजों के विरुद्घ सीधी लड़ाई छेड़ दी और क्विट इंडिया का नारा देकर सुभाष बाबू को करारा झटका दिया। नेता जी अकेले पड़ते गए। एक तरफ तो हार से भयभीत जापानी शासकों ने उन्हें मदद नहीं की और चूंकि तब तक सोवियत रूस भी लड़ाई में मित्र राष्ट्रों की तरफ से कूद चुका था इसलिए जर्मनी उसमें उलझ गया। उधर नेता जी मित्र राषट्रों के वार इनेमी मान लिए गए। नेता जी अकेले पड़ते गए। कांग्रेस उनके खिलाफ थी और योरोपीय देश भी। इसी हताशा में 18 अगस्त 1945 को एक विमान दुर्घटना में नेता जी के मारे जाने की खबर आई। पूरा देश स्तब्ध रह गया। पर देशवासियों को नेता जी की इस रहस्यमयी मौत पर आज तक भरोसा नहीं हुआ है।

Leave a Comment
Share
Published by
ISN-2

Recent Posts

इलेक्ट्रिशियन के बेटे को टीम इंडिया से बुलावा, प्रेरणादायक है इस युवा की कहानी

आईपीएल 2023 में तिलक वर्मा ने 11 मैचों में 343 रन ठोके थे, पिछले सीजन…

10 months ago

SDM ज्योति मौर्या की शादी का कार्ड हुआ वायरल, पिता ने अब तोड़ी चुप्पी

ज्योति मौर्या के पिता पारसनाथ ने कहा कि जिस शादी की बुनियाद ही झूठ पर…

10 months ago

83 के हो गये, कब रिटायर होंगे, शरद पवार को लेकर खुलकर बोले अजित, हमें आशीर्वाद दीजिए

अजित पवार ने एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार पर निशाना साधते हुए कहा आप 83 साल…

10 months ago

सावन में धतूरे का ये महाउपाय चमकाएगा किस्मत, भोलेनाथ भर देंगे झोली

धतूरा शिव जी को बेहद प्रिय है, सावन के महीने में भगवान शिव को धतूरा…

10 months ago

वेस्टइंडीज दौरे पर इन खिलाड़ियों के लिये ‘दुश्मन’ साबित होंगे रोहित शर्मा, एक भी मौका लग रहा मुश्किल

भारत तथा वेस्टइंडीज के बीच पहला टेस्ट मैच 12 जुलाई से डोमनिका में खेला जाएगा,…

10 months ago

3 राशियों पर रहेगी बजरंगबली की कृपा, जानिये 4 जुलाई का राशिफल

मेष- आज दिनभर का समय स्नेहीजनों और मित्रों के साथ आनंद-प्रमोद में बीतेगा ऐसा गणेशजी…

10 months ago