Categories: वायरल

पड़ोसी देशों के हिंदुओं का स्वागत

यह मामला हिंदू-मुसलमान का उतना नहीं है, जितना कुर्सी का है। पड़ौसी देशों के सभी नागरिक भी भारत मां की ही संतान हैं।

New Delhi, Jan 12 : लोकसभा ने कल एक बहुत ही विवादास्पद मुद्दे पर विधेयक पारित कर दिया। इस नागरिकता विधेयक का मूल उद्देश्य पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के गैर-मुस्लिम लोगों को भारतीय नागरिकता देना है। अर्थात इन देशों का यदि कोई भी नागरिक हिंदू, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन, यहूदी हो और वह आकर भारत में बसना चाहे तो वैसी छूट मिलेगी। उनसे कानूनी दस्तावेज वगैरह नहीं मांगे जाएंगे।

दूसरे शब्दों में भारत सरकार हर तरह से उनकी मदद करेगी। वैसे तो इस कानून का भारत में सभी को स्वागत करना चाहिए। उसके दो कारण हैं। पहला तो यह कि ये तीनों देश- अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश किसी जमाने में भारत ही थे। इन क्षेत्रों में मुसलमान और गैर-मुसलमान सदियों से साथ-साथ रहते रहे हैं लेकिन भारत-विभाजन और काबुल में तालिबान राज के बाद इन देशों में गैर-मुसलमानों का जीना आसान नहीं रहा। पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू विशेष तौर से भारत आकर रहना चाहते हैं। यदि भारत उनके लिए अपनी बांहें पसारता है तो इसमें कुछ बुराई नहीं है।

यह स्वाभाविक ही है लेकिन असम गण परिषद और प. बंगाल की तृणमूल कांग्रेस जैसी संस्थाओं ने इस विधेयक के विरुद्ध संग्राम छेड़ दिया है। अगप ने तो असम में भाजपा से अपना गठबंधन ही तोड़ दिया है। इसका कारण यह नहीं है कि ये दोनों संगठन हिंदू विरोधी हैं या ये बांग्लादेशी हिंदुओं के दुश्मन हैं। ऐसा नहीं है। सच्चाई यह है कि इन दोनों प्रदेशों में इन राजनीतिक दलों को डर है कि इस कदम से उनका हिंदू वोट बैंक अब खिसककर भाजपा के पाले में जा बैठेगा। उनका यह डर सही है लेकिन हम यह न भूलें कि ये ही संगठन मुस्लिम वोट बैंक पटाने के चक्कर में असम और प. बंगाल के नागरिकता रजिस्टर में बांग्ला मुसलमानों को धंसाने के लिए तत्पर रहे हैं।

याने यह मामला हिंदू-मुसलमान का उतना नहीं है, जितना कुर्सी का है। पड़ौसी देशों के सभी नागरिक भी भारत मां की ही संतान हैं। अभी 72 साल पहले तक पाकिस्तान और बांग्लादेश भारत के ही अंग थे। पिछले चार-पांच सौ साल पहले तक नेपाल, भूटान, बर्मा, अफगानिस्तान, श्रीलंका आदि सभी पड़ौसी देश भारत ही कहलाते थे। इसीलिए पड़ौसी देशों के दुखी नागरिकों के बारे में भारत का रवैया हमेशा जिम्मेदाराना ही होना चाहिए। जब 1971 में लाखों बांग्ला मुसलमान भारत में आ गए तो भारत ने उनका स्वागत किया या नहीं ? बेहतर यही हैं कि पड़ौसी राष्ट्रों के संकटग्रस्त लोगों को, चाहे वे किसी भी मजहब, जाति या वर्ग के हों, हम उन्हें अपने बड़े परिवार का हिस्सा ही समझें।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
Leave a Comment
Share
Published by
ISN-2

Recent Posts

इलेक्ट्रिशियन के बेटे को टीम इंडिया से बुलावा, प्रेरणादायक है इस युवा की कहानी

आईपीएल 2023 में तिलक वर्मा ने 11 मैचों में 343 रन ठोके थे, पिछले सीजन…

10 months ago

SDM ज्योति मौर्या की शादी का कार्ड हुआ वायरल, पिता ने अब तोड़ी चुप्पी

ज्योति मौर्या के पिता पारसनाथ ने कहा कि जिस शादी की बुनियाद ही झूठ पर…

10 months ago

83 के हो गये, कब रिटायर होंगे, शरद पवार को लेकर खुलकर बोले अजित, हमें आशीर्वाद दीजिए

अजित पवार ने एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार पर निशाना साधते हुए कहा आप 83 साल…

10 months ago

सावन में धतूरे का ये महाउपाय चमकाएगा किस्मत, भोलेनाथ भर देंगे झोली

धतूरा शिव जी को बेहद प्रिय है, सावन के महीने में भगवान शिव को धतूरा…

10 months ago

वेस्टइंडीज दौरे पर इन खिलाड़ियों के लिये ‘दुश्मन’ साबित होंगे रोहित शर्मा, एक भी मौका लग रहा मुश्किल

भारत तथा वेस्टइंडीज के बीच पहला टेस्ट मैच 12 जुलाई से डोमनिका में खेला जाएगा,…

10 months ago

3 राशियों पर रहेगी बजरंगबली की कृपा, जानिये 4 जुलाई का राशिफल

मेष- आज दिनभर का समय स्नेहीजनों और मित्रों के साथ आनंद-प्रमोद में बीतेगा ऐसा गणेशजी…

10 months ago