New Delhi, Sep 18 : यह तो भेड़िया धसान टाइम है जहां तर्क और सवाल गायब हो गये हैं नहीं तो पे-टीएम के मालिक से ऐसे सवाल होने चाहिए थे कि या तो उन्हें कंपनी बंद करनी होती या सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी होती। किसी भी तार्किक जगह में, जो हरकत उन्होंने की है,उसके बाद उनके लिए बचना बहुत ही कठिन होता।
मामला यह है। उन्होंने अपनी ही कंपनी की वाइस प्रेसीडेंट पर संगीन आरोप लगाए। कहा कि वह उन्हें ब्लैकमेल करती थी। करोड़ों की रंगदारी मांगती थी।
पुलिस केस हुआ। वीपी जेल गयी। उन्हें कंपनी से निकाल दिया गया।
अब अचानक खबर आयी कि उसी वीपी को अब फिर कंपनी ने उसी पद पर रख लिया। अब दो ही स्थिति है-अगर उसके खिलाफ आरोप गलत लगाए गए थे तो पेटीएम मालिक केस वापस कर सार्वजनिक माफी मांगे।
और अगर केस सही है और उसे वापस नहीं लिया है तो क्या वह ऐसे अधिकारी को टॉप मैनेजमेंट में रखती है जो लोगों के डेटा बेचने की साजिश करती है? क्या लोगों से साजिश को बढ़ावा दे रही कंपनी?
पेटीएम का केस एक अद्भुद केस है जिसमें कितने झोल है। लेकिन झोल के बीच कंपनी को लाखों लोगों की प्राइवेसी से खेलने का कोई हक नहीं है।
(वरिष्ठ पत्रकार नरेन्द्र नाथ मिश्रा के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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