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Opinion – हरियाणा- बीजेपी को इस बार विधानसभा में दो विपक्ष का सामना करना पड़ सकता है

बीजेपी को सत्ता से मात्र छह सीट दूर रह जाने की कसक पर ये गूंज कैसे काम कर रही होगी ये समझा जा सकता है।

New Delhi, Oct 30 : बहुत सी बातें ऐसी होती हैं कि उन्हें सिर्फ भविष्य के लिए छोड़ देना बेहतर होता है। स्थिरता के नाम पर एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़कर आई दो पार्टियों ने मिलकर सरकार बनाई है। सवाल ये नहीं है कि सरकार कितने दिन चलेगी, बल्कि अब मसला ये है कि दो अलग-अलग विचारधाराओं को मिलकर एक साथ काम करना होगा। हम मानकर चलते हैं कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी, लेकिन तालमेल की स्थिति कैसी रहने वाली ये देखना दिलचस्प होगा।

दीपावली वाले दिन प्रदेश को मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री मिले। उस दिन राजभवन चौधरी देवीलाल जिंदाबाद के नारे भी गूंजा। बीजेपी को सत्ता से मात्र छह सीट दूर रह जाने की कसक पर ये गूंज कैसे काम कर रही होगी ये समझा जा सकता है। हालांकि चौधरी देवीलाल ने किसान और कमेरे वर्ग के लिए हमेशा काम किया और उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है लेकिन जिन लोगों को अभी के उप मुख्यमंत्री में चौधरी देवीलाल की छवि दिखती है उनकी आकांक्षाओं पर खरा उतरना बड़ी जिम्मेदारी होगी। जेजेपी ने अपने घोषणा पत्र में वादा किया है कि सत्ता में आने पर फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 10 फीसदी की बढ़ौतरी की जाएगी या फिर 100 रुपये क्विंटल के हिसाब से खरीद पर बोनस मिलेगा, पार्टी अब सरकार का हिस्सा है। उधर बीजेपी ने 2022 तक किसानों की आमदनी दुगनी करने का भरोसा दिलवा रखा है, इस अवधी में मोटा-मोटा मानकर चले तो दो साल का वक्त है, ऐसे में न्यूनतम सांझा कार्यक्रम कैसा रहेगा इसपर निगाहें रखना किसानों का काम है।

प्रदेश के युवाओं को रोजगार में 75 फीसदी हिस्सेदारी और बुजुर्गों को 5100 रुपये पेंशन की उम्मीद ये सब कुछ तो करना होगा पांच साल में। मतलब क्या ये मान लिया जाए कि सूबे में दबाव की राजनीति का एक नया अध्याय लिखा जाना बाकी है, क्योंकि बीजेपी ने इनमें कोई वादा अपने संकल्प पत्र में कम से कम नहीं किया है।
यहां बात घोषणा पत्रों में किए गए वादों की भी नहीं है, क्योंकि इनमें से ज्यादातर तो जनता को पहले दिन से ही पता नहीं होते लेकिन बड़ी-बड़ी बाते मतदाता भूलते भी नहीं है ये भी नेताओं को याद रखना चाहिए। सत्ता में बने रहने के लिए सरकार के पास इस वक्त 57 विधायकों का आंकड़ा है। संख्या को देखकर माना जा सकता है कि सरकार को पांच साल पूरे करने में कहीं कोई दिक्कत होने वाली नहीं है, लेकिन उम्मीदें मनोहरलाल से भी काफी ज्यादा बढ़ गई हैं।

वर्तमान में विधानसभा में बीजेपी की स्थिति को समझने की कोशिश करें तो मुख्यमंत्री के साथ इस बार हर नेता की नब्ज को समझने वाले राबिलास शर्मा, कैप्टन अभिमन्यु जैसे तर्कशील और विपक्ष के हमलों को रोकने वाले ओम प्रकाश धनखड़ जैसे मंत्री नहीं होंगे। एक अनिल विज का नाम लिया जा सकता है उनके अलावा बीजेपी को अपने विधायकों को उस तरीके से तैयार करने की जरूरत पड़ती दिख रही है, क्योंकि माना ये जा सकता है कि बीजेपी को इस बार विधानसभा में दो विपक्ष का सामना करना पड़ सकता है, एक कांग्रेस जो सामने बैठी होगी और दूसरे वे जो सरकार के सांझीदार तो हैं लेकिन जनता के सामने अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए कम से कम वो पार्टी भी ज्यादा दिन तक यस बॉस वाली स्थिति में रहना नहीं चाहेगी।

(चर्चित वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप डबास के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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