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दूसरे धर्मों के लोग हिंदुओं के बीच सबसे अधिक और मुसलमानों के बीच सबसे कम सुरक्षित होते हैं!

साथ ही, इससे भारत में तुष्टीकरण आधारित धर्मनिरपेक्षता, जो कि अपने आप में साम्प्रदायिकता से भी अधिक खतरनाक है, क्योंकि वास्तव में साम्प्रदायिकता की जननी ही यही है, उसका ज़ोर और बढ़ जाएगा।

New Delhi, Dec 13: भाजपा भारत को कथित रूप से हिंदू राष्ट्र बनाने के एजेंडे पर काम कर रही है (ऐसा कांग्रेस कह रही है) और कांग्रेस भारत को कथित रूप से मुस्लिम राष्ट्र बनाने के एजेंडे पर काम कर रही है (ऐसा हम कह रहे हैं)। लेकिन हमारी ख्वाहिश बिल्कुल अलग है। हम चाहते हैं कि भारत में “तुष्टीकरण आधारित धर्मनिरपेक्षता” की जगह “पुष्टीकरण आधारित धर्मनिरपेक्षता” आए और सदियों तक कायम रहे। इसके लिए ज़रूरी है कि सभी समुदायों के बीच संतुलन कायम रहे। संतुलन बिगड़ेगा तो एक दूसरे के प्रति अविश्वास और असुरक्षा की भावना बढ़ेगी, जिससे अशांति पैदा होने की आशंका रहेगी।

अगर पीओके हमारा है और वहां के मुस्लिम भाई-बहन हमारे हैं तो उन्हें स्वीकार करने से भारत में आज तक किसी ने इनकार नहीं किया। लेकिन पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान हमसे अलग मुस्लिम देश हैं, इसलिए वहां के मुसलमानों की ज़िम्मेदारी भी उन्हीं की है। वहाँ के मुसलमानों के प्रति भारत तभी ज़िम्मेदार हो सकता है, जब ये देश कबूल कर लें कि धर्म के आधार पर देश चलाकर वे सिर्फ कट्टरपंथ और आतंकवाद के उत्पादक बन सकते हैं और नागरिकों की बुनियादी ज़रूरतें और अधिकार सुरक्षित नहीं कर सकते, और इसे कबूल करते हुए वे भारत में इस शर्त पर अपना विलय करा लें कि हम भारत की पुष्टीकरण आधारित धर्मनिरपेक्षता को कबूल करेंगे।

जब तक इन तीनों देशों ने ऐसा नहीं किया है, तब तक भारत थोक में इन तीनों मुस्लिम देशों के नागरिकों को अपना नागरिक नहीं बना सकता। क्योंकि एक तो इनमें कई लोग इन देशों द्वारा भारत को नुकसान पहुंचाने की दीर्घकालिक नीति के तहत साज़िशन भेजे हुए लोग हो सकते हैं, दूसरे इससे भारत की जनसांख्यिकी बिगड़ जाएगी और कई तरह की नई समस्याएं पैदा हो जाएंगी। साथ ही, इससे भारत में तुष्टीकरण आधारित धर्मनिरपेक्षता, जो कि अपने आप में साम्प्रदायिकता से भी अधिक खतरनाक है, क्योंकि वास्तव में साम्प्रदायिकता की जननी ही यही है, उसका ज़ोर और बढ़ जाएगा। इससे गैर-मुस्लिम समुदायों में भविष्य के प्रति डर और असुरक्षा की भावना भी बढ़ेगी।

इसलिए भारत की यह मौजूदा नीति सही है कि भारत में शरण लिए या यहां की नागरिकता चाहने वाले पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश समेत अन्य सभी देशों के किसी भी धर्म के लोगों को नागरिकता दी जा सकती है, लेकिन इंडिविजुअल केस के आधार पर। इस व्यवस्था को थोक में नागरिकता देने के लिए न इस्तेमाल किया जा सकता है, न किया जाना चाहिए।
हाल फिलहाल भारत ने पाकिस्तान के मशहूर गायक अदनान सामी को नागरिकता दी थी। तस्लीमा नसरीन और तारिक फतेह को नागरिकता दिए जाने का हम पहले भी समर्थन कर चुके हैं। इसलिए मुसलमानों से नफ़रत का सवाल नहीं है, सवाल भारत के हितों का है और भारत के हितों से मतलब ही उन सभी लोगों का हित है, जिसमें आज भारत की नागरिकता प्राप्त सभी हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी आदि शामिल हैं।

भारत एक हिंदूबहुल देश है और हिंदुओं की यह बहुलता ही इसकी धर्मनिरपेक्षता की गारंटी है, क्योंकि हिंदू स्वभावतः उदार, सहिष्णु और मानवतावादी होते हैं। इसलिए भारत में शान्ति से रहने के आकांक्षी अन्य सभी धर्मों के लोगों को भी चाहिए कि वे ऐसी कोई अतार्किक ज़िद न पालें, जिससे यहां के हिंदू ही असुरक्षित महसूस करने लगें या खतरे में पड़ जाएं। ईश्वर न करे कभी वह दिन आए, लेकिन अगर आ गया, जब यहाँ के हिंदू ही खतरे में पड़ जाएं, तो कोई भी सुरक्षित नहीं रहेगा। खुद मुसलमान भी नहीं, क्योंकि सबको पता है कि दुनिया भर में सबसे ज़्यादा मुसलमान मुस्लिम देशों में ही मारे और खदेड़े जा रहे हैं। आज भी विपक्ष की रुदाली तीन मुस्लिम देशों से ही मारे और खदेड़े गए मुसलमानों के लिए है।
दुनिया में विभिन्न धर्मों का इतिहास और वर्तमान देखने के बाद ही मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि दूसरे धर्मों के लोग हिंदुओं के बीच सबसे अधिक सुरक्षित और मुसलमानों के बीच सबसे कम सुरक्षित होते हैं। बात कुछ लोगों को कड़वी लग सकती है, लेकिन इसकी सत्यता को कोई चुनौती नहीं दे सकता। सत्य नहीं होता सुपाच्य, किंतु यही वाच्य।
(वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)

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