Categories: सियासत

Opinion: ‘सारे मुसलमान भी हिंदू ही हैं’

सावरकर उसी को हिंदू मानते थे, जो व्यक्ति भारत को अपनी पितृभूमि और पुण्यभूमि, दोनों मानता हो। सावरकर की पुण्यभूमि वाली शर्त का महत्व उस समय बहुत ज्यादा हो गया था …

New Delhi, Dec 27: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने आज वही बात खुले-आम कह दी है, जो मैं बरसों से कहता रहा हूं। यह वह बात है, जिस पर मैं गहन चर्चा विगत संघ-प्रमुख गुरु गोलवलकर, देवरसजी, रज्जू भय्या और सुदर्शनजी से भी करता रहा हूं। मोहनजी ने कहा है कि जिसका भी जन्म भारत में हुआ है, वह हिंदू है।

चाहे वह किसी भी उपासना पद्धति को मानता या न मानता हो याने वह मुसलमान, ईसाई, पारसी, यहूदी, बौद्ध, जैन, आर्यसमाजी, नास्तिक, कम्युनिस्ट आदि कुछ भी हो सकता है। वह व्यक्ति यदि भारत को अपनी मातृभूमि मानता है तो वह भारतमाता का पुत्र है। वह हिंदू है। दूसरे शब्दों में भागवत ने हिंदू होने की सावरकर की दूसरी शर्त को उड़ा दिया है। सावरकर उसी को हिंदू मानते थे, जो व्यक्ति भारत को अपनी पितृभूमि और पुण्यभूमि, दोनों मानता हो। सावरकर की पुण्यभूमि वाली शर्त का महत्व उस समय बहुत ज्यादा हो गया था, जब मुस्लिम लीग का असर जोरों पर था और खिलाफत का आंदोलन चल पड़ा था।

भारत के मुस्लिम लीगी नेताओं की अंतिम इच्छा होती थी कि उनके मरने पर उन्हें मक्का-मदीना में दफन किया जाए। अब तो कोई पाकिस्तानी नेता भी यह दावा नहीं करता। भारत-विभाजन के बाद दोनों देशों के मुसलमान लोगों में काफी अंतर्दष्टि पैदा हो गई है। देश-काल बदल गया है। इस दृष्टि से मोहन भागवत का यह दृष्टिकोण आधुनिक है और तर्क संगत है। संघ के प्रमुख ‘हिंदू’ शब्द को सारे 130 करोड़ भारतीयों के लिए स्वीकार कर रहे हैं, यह उनकी बड़ी उदारता है, क्योंकि यह शब्द भारत के आर्य-शास्त्रों में तो मैंने कहीं पढ़ा नहीं।

‘हिंदू’ शब्द हमें विदेशी मुसलमानों ने ही दिया है। सिंधु नदी के इस पार रहनेवाला हर इसांन हिंदू कहलाया। इस दृष्टि से पाकिस्तान और बांग्लादेश के भी सभी नगारिक हिंदू ही है। मेरे कुछ साथी पठान प्रोफेसरों ने 50 साल पहले काबुल में मुझे बताया था कि अफगान लोग भी हिंदू ही हैं, क्योंकि वे ‘हिंदूकुश’ पर्वत से फैले हैं। फारसी में कुश का अर्थ मरना या मारना ही नहीं है। इसका अर्थ फूटना भी है। आर्य लोग अफगानिस्तान (आर्याना) से फूटकर ही सारी दुनिया में फैले हैं। मोहनजी के इस बयान से उन मुसलमानों को थोड़ी सतही राहत मिलेगी, जो नए नागरिकता कानून से घायल महसूस कर रहे हैं।
(चर्चित वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)

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