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Opinion – ये ऐतिहासिक फांसी दरअसल सज़ा नहीं नज़ीर है

कई दशकों से ब्रिटैन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और तमाम यूरोपीय देशों में जघन्य से जघन्य काण्ड पर भी फांसी नहीं दी जाती है । वहां डेथ पेनल्टी का अब कांसेप्ट नहीं है।

New Delhi, Jan 08 : गुरुवार यानि कल दोपहर मुझे तिहाड़ जेल जाना है …और वहां जाकर, कालकोठरी में कैद, निर्भया काण्ड के चार दोषियों का हाल जानना है, उनके अधिवक्ताओं और तिहाड़ के डीजी, संदीप गोयल से भी मिलना है। कल शाम पवन से फोन पर बात हो रही थी। वो सहारनपुर से मेरठ लौट रहा था… उसके लहजे और बातों से लगा वे हल्के नशे में था। पवन से बातचीत, मेरे सहयोगी संजीव चौहान ने कराई।संजीव कई बार पवन के घर जाकर, कैमरे पर उसका बेहद डिटेल्ड इंटरव्यू कर चुके हैं।

देश में जब कभी भी, किसी को फांसी दी जाती है ..पवन को ही याद किया जाता है । वो सच में जल्लाद है और उसी ने मुझे बताया कि हर फांसी का सरकार उसे 25 हज़ार रुपये इनाम (शुल्क) देती है। वे इस बार खुश है कि वे चारों को फांसी देकर लखपति बनने जा रहा है। लेकिन उस के मन में संशय भी है…कहीं इस बार फिर अफ़ज़ल गुरु की तरह, आखिरी वक़्त पर फांसी जेल का ही कोई कर्मचारी न दे। अगर ऐसा हुआ तो एक बड़ी रकम इस तंगहाल जल्लाद परिवार के हाथ से निकल जाएगी। पर मेरठ ज़ोन के पुलिस उपमहानिदेशक प्रशांत कुमार बताते हैं कि उम्मीद तो पूरी यही है कि पवन ही 22 तारीख को चारों दोषियों को फांसी देगा।

एक अजीब सी फीलिंग है , मनोस्थिति है …क्यूंकि आने वाली निश्चित चार मौतों को लेकर आप मरने वाले और मारने वाले दोनों को जानते है , दोनों का हाल ले रहे हैं। कल रात एक जेल सुपरिंटेंडेंट ने मुझे बताया कि चारों दोषियों को एक अलग कोठरी में शिफ्ट कर दिया गया है। इन चारों में से एक विनय शर्मा (26) कल खूब रोया था और उसने भोजन लेने से मना कर दिया। पवन गुप्ता और अक्षय कुमार भी बात नहीं कर रहे हैं। इन सबकी ज़िन्दगी के अब 11 -12 दिन शेष है। सुपरिंटेंडेंट ने बताया की कल बुधवार को चारों दोषियों का मेडिकल टेस्ट, उनका वजन और गर्दन की नाप ली जाएगी। इसमें से कुछ डिटेल्स जल्लाद से शेयर किये जायेंगे जो फांसी देने के ज़रूरी हैं।

दोषियों में से एक, अक्षय कुमार, बस में हेल्पर था और औरंगाबाद, बिहार के बहुत ही गरीब परिवार से है। उसके वकील कहते हैं कि अक्षय, घुन में गेहूं की तरह पिसा और अगर ये घटना मीडिया में हाईलाइट न होती तो आज वे बेल पर होता, लेकिन अब उसे फांसी होने वाली है। बहरहाल वकील, अपने पेशे की मज़बूरी के चलते और अक्सर आदतन, ऐसी दलीलें देने से बाज़ नहीं आते। वैसे भी, इस स्टेज पर अब किसी दलील या बहस की गुंजाईश नहीं बची है।
विकसित देश इस फांसी की निंदा कर रहे हैं। इसका कारण, बलात्कार या हत्या के प्रति उनका उदारवादी नजरिया नहीं बल्कि सजाए मौत को लेकर एक अलग किस्म की सोच है।

कई दशकों से ब्रिटैन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और तमाम यूरोपीय देशों में जघन्य से जघन्य काण्ड पर भी फांसी नहीं दी जाती है । वहां डेथ पेनल्टी का अब कांसेप्ट नहीं है। इसलिए, मुंबई सीरियल बम धमाकों के दोषी अबू सलेम को सौंपते समय पुर्तगाल ने भारत से लिखित आश्वासन माँगा था कि सलेम को फांसी नहीं दी जाएगी। सलेम पर बम धमाकों में 317 लोगों की हत्या करने का संगीन इलज़ाम था ।लेकिन सजा के बावजूद अबू सलेम को फांसी नहीं दी जा सकती क्यूंकि ये अंतराष्ट्रीय संधि का उल्लंघन होगा।यूरोप जो सोचे पर भारत, अमेरिका और चीन जैसा साम्यवादी देश अब भी अपनी न्यायिक प्रक्रिया में जघन्य अपराधों के लिए सजाए मौत के पक्षधर हैं। भारत ने तो संयुक्त राष्ट्र में भी मृत्यु दंड को समाप्त करने के क़रार का खुला विरोध किया है।

बहरहाल, फांसी कोई उत्सव नहीं। पुलिस या प्रॉसिक्यूशन के लिए कोई उपलब्धि नहीं।
इसे सबक के तौर पर लिया जाना चाहिए। ये बताने के लिए कि चलती बस में जब निर्भया को चीरा जा रहा था तो विनय, पवन और अक्षय, अगर चाहते , तो राम सिंह और मुकेश को रोक सकते थे। लेकिन वे रोकने की जगह निर्भया के चीरहरण और फिर उसकी नृशन्स हत्या में शामिल हुए। राम सिंह ने जेल में ही ख़ुदकुशी कर ली, लेकिन बाकी चारों को इस जघन्य अपराध के लिए अब तख्ते पर चढ़कर, फंदे पर झूलना होगा। उनकी ये ऐतिहासिक फांसी दरअसल सज़ा नहीं नज़ीर है जिसे दीवारों पर लिखना ज़रूरी है।

(IANS के एग्जीक्यूटिव एडिटर दीपक शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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