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कुम्भकर्णी नींद से जागो न्याय मूर्तियों , जागो!

सेना युद्ध ही नहीं , लोक कल्याण भी जानती है। बखूबी जानती है। कई बार साबित किया है। फिर साबित करेगी। कुछ करो न्याय मूर्तियों , कुछ करो।

New Delhi, Apr 16 : आतंकियों के लिए , बलात्कारियों के लिए , आधी रात भी खुल जाने वाली , दंगाइयों के पोस्टर पर स्वत: संज्ञान लेने वाली , अदालतें प्रवासी मज़दूरों की भूख नहीं देख रहीं , उन की छटपटाहट नहीं देख रहीं। कि तबलीगी जमात की नंगई नहीं देख रहीं , कि विभिन्न सरकारों की हिप्पोक्रेसी नहीं देख रहीं , शहर-दर-शहर बसे मिनी पाकिस्तान में पत्थरबाजी से घायल , अस्पतालों में पिटते डाक्टरों को नहीं देख रहीं। कि डाक्टरों पर थूकते हुए इन देशद्रोहियों को नहीं देख रहीं , नर्सों के आगे नंगे नाचते हुए की खबर भी नहीं देख रहीं। कि जगह-जगह पुलिस को पिटते नहीं देख रहीं , पत्थरबाजों से। क्यों नहीं देख रहीं ?

तो क्या मान लिया जाए कि बाकी सब देखने के लिए , आधी रात जागने के लिए , स्वत: संज्ञान के लिए , कुछ अतिरिक्त मिलता है , तब यह अदालतें देखती हैं। और जब कुछ अतिरिक्त नहीं मिलता तो नहीं देखतीं। आंखें मूंद लेती हैं। आखिर किस रात , किस दिन जागेंगी हमारी सर्वोच्च अदालतों की न्याय मूर्तियां जब आज के हमारे भगवान कहे जाने वाले , डाक्टरों की यह कमीने लाशें बिछा देंगे। भूख से बिलबिलाते मज़दूर घर जाने की आस में दम तोड़ने लगेंगे। बेशर्म मुख्य मंत्रियों से क्यों नहीं पूछतीं यह न्याय मूर्तियां कि कैसे लोक कल्याणकारी राज्य के मुख्य मंत्री हो कि तुम्हारे अन्न भंडार भरे पड़े हैं और आख़िरी कतार का व्यक्ति भूखों मर रहा है। तुम्हारे विशाल हरामखोरी के दावों में दम क्यों नहीं है।

क्यों नहीं पूछ पातीं प्रधान मंत्री से भी कि देश के हर एक नागरिक के भूख , प्यास और सम्मान की ज़िम्मेदारी तुम्हारी है। और कि कोरोना फ़ैलाने के अपराधी तबलीग जमात के लोगों को फौरन से फौरन देशद्रोह के आरोप में जेल क्यों नहीं भेजते। क्यों उन्हें दामाद बना कर उन की ज़्यादतियां देश के निर्दोष लोगों पर थोप कर , मौत के मुंह में ढकेल रहे हो। क्यों मुस्लिम तुष्टिकरण का रिकार्ड बना कर नोबल प्राइज पाने की लालच में , वैश्विक छवि चमकाने के मोह में , देश के लोगों की ज़िंदगी दांव पर लगाए बैठे हो। मीठी-मीठी होमियोपैथी की गोलियां देश को देना बंद करो। नहीं संभलता देश तो सेना के हवाले करो।

सेना युद्ध ही नहीं , लोक कल्याण भी जानती है। बखूबी जानती है। कई बार साबित किया है। फिर साबित करेगी। कुछ करो न्याय मूर्तियों , कुछ करो। मत जागो आधी रात , दिन में ही जागो। देश ज्वालामुखी के ढेर पर बैठ गया है। कुम्भकर्णी नींद से जागो न्याय मूर्तियों , जागो ! अपनी मृत आत्मा को जगाओ न्याय मूर्तियों जगाओ। देश को अमरीका , इटली , स्पेन बनने से बचाओ। हरामखोरी बंद करो न्याय मूर्तियों। बहुत हो गया। बर्दाश्त भी अब पनाह मांग गई है। कमीनी सरकारों को एक बार तबीयत से लतियाओ। लतियाओ कि रास्ते पर आएं। जागो कि जनता बगावत पर न आ जाए !

(दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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