New Delhi, Jun 25 : कहते हैं कि परायों से जूझना-लड़ना हो तो ये संभव है, लेकिन सामने जब अपने हों, तो किसी का भी हौसला टूट सकता है, इसके उदाहरण हमने महाभारत युद्ध में कौरवों तथा पांडवों के बीच लड़ाई के दौरान के उद्धरणों में सुने हैं, भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि धर्म युद्ध में अपने पराये का भेद नहीं किया जाता, अधर्म के नाश के लिये युद्ध किया जाता है, बिहार की सियासत में भी चिराग पासवान अपनी लड़ाई को धर्म-अधर्म से जोड़कर देख रहे हैं, दरअसल लोजपा में अपनों के बीच सियासी जंग छिड़ी हुई है, और टूट हो गई है, एक गुट के पशुपति पारस हैं, तो एक के चिराग पासवान, चिराग इसे धर्म और अधर्म के बीच सियासी युद्ध घोषित कर चुके हैं, और अपनी लड़ाई आगामी 5 जुलाई से पूरे बिहार में संघर्ष यात्रा शुरु कर आगे बढाने जा रहे हैं, हालांकि वो अपनों द्वारा छले जाने से बेहद आहत हैं, भावुक हैं, लेकिन मोदी पर उनका भरोसा अब भी कायम हैं।
अपने हाथ खींच लिये
एक मीडिया हाउस से बात करते हुए लोजपा में जारी सियासी संकट पर चिराग पासवान ने कहा कि जिनकी गोद में मैं खेला, उन्होने अपने हाथ खींच लिये, अब बात करने तक को तैयार नहीं, पहले मैं बीमारी से लडा, फिर परिवार से लड़ना पड़ा,
चाचा के व्यवहार से छलका दर्द
चिराग पासवान ने कहा कि पहले छोटे चाचा का निधन और पिता जी के निधन के बाद मैं हर चीज के लिये उन पर ही निर्भर था, पिताजी के निधन के बाद चाचा जी में बहुत परिवर्तन देखा है, उन्होने मुझसे बात करनी बंद कर दी,
पिता की पार्टी बचाने को करते रहेंगे संघर्ष
चाचा पशुपति पारस और चचेरे भाई प्रिंस राज की खुली बगावत पर चिराग पासवान ने कहा कि मुझे तो विश्वास नहीं हो रहा कि मेरे अपनों ने ऐसा धोखा दिया है, अगर इन लोगों को मेरे व्यवहार से कोई शिकायत थी, तो मेरी मां से बात कर सकते थे,
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