New Delhi, Jan 14 : ओडिशा के राउरकेला के कादोबहाल गांव के रहने वाली 24 वर्षीय नीलम खेस जबरदस्त चर्चा में हैं, दरअसल राउरकेला के बिरसा मुंडा स्टेडियम में जितने लोगों के बैठने की क्षमता है, उससे भी कम नीलम के गांव की आबादी है, खेल से लगाव था, तो बगैर घास के मैदान में ही हॉकी लड़ानी शुरु कर दी, स्कूल से आने के बाद माता-पिता के साथ आलू और गोभी के खेत में काम करते, शाम को अपना शौक पूरा करते।
हॉकी के हीरो
आदिवासी इलाकों ने देश को हॉकी के कई हीरो दिये हैं, नीलम खेस, माइकल काइंडो, दिलीप टिर्की, लजारा बारला और प्रबोध टिर्की की अगली कड़ी है, नीलम ने जब पहली बार हॉकी पकड़ी,
शौक से पहले थी रोजी-रोटी
नीलम खेस पढाई पूरी कर नौकरी करना चाहते थे, ताकि घर का गुजारा हो सके, इत्तेफाक से 2010 में उनका चयन सुंदरगढ के स्पोर्ट्स हॉस्टल में हो गया, वहां जाकर नीलम को अंदाजा हुआ कि
आज भी नहीं बदले हालात
नीलम को पहली बार 2016 में भारतीय हॉकी टीम में जगह मिली,
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