राहुल गांधी के सलाहकारों ने एक बार फिर उन्हें बिना तैयारी पिच पर उतार दिया

इतिहास के यह ऐसे पन्ने है जिसे कांग्रेस अध्यक्ष श्री राहुल गांधी जी को जरूर पलटना चाइये ताकि देश की सबसे पुरानी पार्टी के उठाये गए कदम शिफर साबित ना हो, बचकाना ना लगे!

New Delhi, Apr 24 : कल तालकटोरा स्टेडियम से राहुल गांधी ने “संविधान बचाओ” कम्पैन शुरू किया! रैली में उनके भाषण के मजमून से ऐसा लगा कि या तो उन्हें इतिहास में ज्यादा रुचि नही या फिर उनके सलाहकारों ने एक बार फिर उन्हें बिना हेलमेट, ग्लव्स और पैड के एक और राजनीति के पिच पर उतार दिया हो।
घटना उनके दादी यानी इंदिरा जी के कार्यकाल की है और एक ऐसा महत्वपूर्ण केस जिसका जिक्र सामान्य ज्ञान की किताबों से लेकर राजनीति शास्त्र और कानून की किताबों में सबसे महत्वपूर्ण अध्याय बन जाता है।

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यह केस “केशवानंद भारती बनाम स्टेट ऑफ केरला” का है । कॉन्स्टिट्यूशन बेंच जिसमे 13 जज शामिल थे उन्होंने 7-6 से यह फैसला सुनाया था कि संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर से कोई छेड़छाड़ नही किया का सकता। यह बेसिक स्ट्रक्चर है- रूल ऑफ लॉ, न्यायपालिका की स्वतन्त्रता, फेडरलिम्स, सेकुलरिज्म, सोवेरेनटी, पार्लियामेंट सिस्टम ऑफ गवर्नमेंट, फ्री फेयर इलेक्शन, वेलफेयर स्टेट और डॉक्ट्रिन ऑफ सेपरेशन ऑफ पॉवर।
उस दौर की सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को यह फैसला गंवारा न था. इंदिरा सरकार ने न्यापालिका की स्वायत्तता को जोर का झटका देते हुए जस्टिस ए. एन. रे को सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश घोषित कर दिया जो वरीयता के क्रम में बेहद पीछे थे लेकिन इंदिरा गांधी के गुड बुक में थे क्योंकि इन्होंने कॉन्स्टिट्यूशन बेंच में फ़ैसले का पुरजोर विरोध किया था. इस उठापटक के बाद अटॉर्नी जनरल ने बिना रिव्यु पेटिशन फ़ाइल किए कॉन्स्टिट्यूशन बेंच के फैसले के खिलाफ मूव किया।

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इसके बाद का घटनाक्रम और दिलचस्प रहा। जिस रोस्टर को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बवाल मचा है उस वक्त में भी यही रोस्टर सीजेआई के लिए हथियार बना। सोजेआई चुकी रोस्टर के मालिक होते है लिहाजा सीजेआई रे ने 13 जजों के बैंच का गठन आनन फ़ानन में कर दिया जो फैसले को रिव्यु करती। सरकार आश्वस्त थी कि पिछले कॉन्स्टिट्यूशन बैंच के फैसले में मौजूदा सीजेआई का जो विरोध फैसले में परिवर्तित नही हो पाया था वह अब हो जाएगा।
2 दिनों तक बहस चली, सरकार की तरफ से जारी दबाव बनाम जुडिशरी की तरफ से अपनी स्वयत्तता बचाये रखने के प्रेसर के बीच सीजेआई रे ने आखिरकार फैसला न्यापालिका की स्वत्रंत्रता के पक्ष में लिया और 12 नवंबर 1975 को 13 जजों के बेंच को निरस्त कर दिया गया । इस तरह केशवानंद भारती बनाम स्टेट ऑफ केरला केस मे लिया गया कॉन्स्टिट्यूशन बेंच का फैसला सुरक्षित हो पाया।

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न्यापालिका और संविधान की मूल भावना के खिलाफ उसके बाद इंदिरा जी के दौर में ही कई सर्जिकल स्ट्राइक हुए, मसलन 39 वां संविधान संशोधन जिसके जरिये पीएम और लोकसभा स्पीकर के चुनाव को न्यायिक समीक्षा से बाहर रखने की कुचेष्ठा और सबसे बड़ा आघात इमरजेंसी थोपी गयी और संवैधानिक अधिकारों की धज्जियां उड़ा दी गईं।
इतिहास के यह ऐसे पन्ने है जिसे कांग्रेस अध्यक्ष श्री राहुल गांधी जी को जरूर पलटना चाइये ताकि देश की सबसे पुरानी पार्टी के उठाये गए कदम शिफर साबित ना हो, बचकाना ना लगे!

(टीवी पत्रकार मधुरेन्द्र कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)