सीएम कुमारस्वामी बोले, ये सरकार चलेगी, इस पर मुझे क्या प्रदेश की जनता को भी भरोसा नहीं है

राजनैतिक बरसात शुरू हो गयी है। ये फूलेंगे अंकुरेंगे लेकिन तीन महीने की बरसात के बाद खुखड़ी जैसा इनका हाल होगा ।

New Delhi, May 24 : 1990 के आसपास की बात है। धुर्वा मैदान में ईसाई धर्म गुरु का दावा करने वाले एक ढोंगी ने भीड़ इकट्ठा किया और लोगो को बताने लगा कि उनके हिसाब से प्रार्थना करने पर लंगड़े को पैर , अंधे को आंख ,लुलहे को हाथ और गरीब को धन हासिल हो जाता है।संक्षेप में इसे होनोलुइया कहा जाता था। शायद यह ढोंग अभी भी चलता होगा। तब मैं दैनिक आज में काम करता था। हमारे वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र सिंह ने इसपर खबर बनाई और हेडिंग दिया — खुद को ईसा मसीह साबित करना चाहते हैं कुछ ढोंगी ।

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अगले दिन अंधेरा होते ही होनोलुइया के समर्थकों ने आज अखबार के दफ्तर में ईंट पत्थरो से हमला कर दिया । लेकिन आज अखबार के पत्रकार और कर्मचारी खुद ही रंगदार हुआ करते थे ।एकता भी जबर की थी। हमलोगों ने डंडा लेकर उन्हें खदेड़ा तो वे भाग गए ।लेकिन एक संघर्षरत पत्रकार (सुविधा के लिए उसका काल्पनिक नाम ‘ बिगना ‘ रख देता हूँ ) को पत्थर उठाये देखा तो मुझे अचरज हुआ ।पत्रकारिता की पढ़ाई में वह मुझसे एक साल जूनियर था। वह नौकरी के लिए कई बार आज अखबार के मैनेजर से मिला था लेकिन बात ही नही बन रही थी । मैने उसके हाथ मे पत्थर देखा तो पूछ ही लिया कि क्या उसने भी होनोलुइया जॉइन कर लिया है? उसने कहा ,क्या कहे भाई आपका संपादक और मैनेजर भाव ही नही दे रहा है इसलिए गुस्सा था ।मैंने देखा कि ये पत्थर फेंके रहे हैं तो सोचा कि क्यों नही अपना गुस्सा भी उतार लूँ।

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दरअसल इस तरह के कुंठित प्राणी बहुतायत में हैं ।घर से पिटकर आएंगे और रास्ते मे कोई पाकेटमार पकड़ में आ जाये तो उसकी कुटाई ऐसे करेंगे मानो उसका ही जेब कतर लिया गया हो। इनके लिए ही कहा गया है – ‘ परमुंडे फलाहार ” यानी दूसरे के भरोसे केवल फल खाके उपवास करने का टंटा करनेवाले । कर्नाटक में शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने आए विपक्षी नेताओं का हुजूम कुछ ऐसा ही था। मोदी के रोड रोलर से कुचले और जनता में खारिज किये गए एक दर्जन नेता परेता इकट्ठा होकर झूमर खेल रहे थे। बड़े दिनों के बाद डेढ़ दो दरजन नेताओ को ऐसे मंच में चढ़ने के सौभाग्य जो मिला था। बहुत से नेता उस संघर्षरत पत्रकार ‘ बिगना ‘ जैसे थे जिनका खुन्नस मोदी से था जिसकी भरपाई करने वह बंगलोर के मंच पर जमा हुए थे। दिलचस्प तो यह कि यह कोई वैचारिक मंच नही बल्कि मौकाई मंच भर था। आपस में ही खून बहा देने का जज्बा रखने वाले नेताओं को अगल बगल के दुश्मन नही बल्कि सामने मोदी दिखाई दे रहे थे।

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वामपंथियों का नाश करने वाली ममता बनर्जी के बाएं सीताराम येचुरी थे तो कांग्रेस को बंगाल में छिन्न भिन्न करने वाली इसी नेता के दाहिनी ओर सोनिया गांधी थी। गैर काँग्रेसवाद का दक्षिण में परचम लहरानेवाले नायडू के कंधा से कंधा मिलाये हुए राहुल गांधी खड़े थे। मायावती का चीरहरण करने की कोशिश करने वाले सपा नेता अखिलेश यादव बुआ से हाथ मिलाये हुए खड़े थे। विदेशी महिला का नेतृत्व कहकर बगावत करने वाले शरद पवार सोनिया से कदम ताल मिला रहे थे । कांग्रेसी फैसलों से कई बार दगा चुके एक्सीडेंटल पी एम देवगौड़ा मंच पर खुशी से दोहरा हुए जा रहे थे। अपने झारखंड से भी हेमंत सोरेन गए थे । फोटो में उनका चश्मा और पजामा ही दिख पा रहा था। जेडीएस के नेता उन्हें बार बार धकियाकर पीछे कर रहे थे लेकिन वे ठहरे संघर्षरत पत्रकार ‘ बिगना ‘ का जज्बा लिए हुए। डटे रहे। कोई बता रहा था कि मौके पर बाबूलाल मरांडी भी पत्थर फेंकने गए थे लेकिन फोटो में उनका जूता तक नही दिखा। महापुरुष केजरीवाल भी फोटो में जगह नही बना पाए जबकि लालू पुत्र तेजस्वी भी अपना तेजस्वी चेहरा चमकाने में विफल रहे। राजनैतिक बरसात शुरू हो गयी है। ये फूलेंगे अंकुरेंगे लेकिन तीन महीने की बरसात के बाद खुखड़ी जैसा इनका हाल होगा । एक दूसरे के खिलाफ तीर कमान तान देंगे और हाथ मे रखा पत्थर एक दूसरे पर बरसाने लगेंगे। यह मैं नही कह रहा हूँ मंच पर फुफकारते नेता और पूरे बारात का केंद्र बिंदु रहे कुमारस्वामी भी कह रहे हैं। गैर भक्त लोग नही मानेंगे इसलिए फ़ोटो चेंप रहा हूँ । देखिएगा इसी फोटो से कई बिगना आनेवाले दिनों में दिखाई पड़ेंगे । फोटो इसीलिए डाला ताकि सनद रहे।

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)