RSS तो ठीक है, लेकिन राजा जी और आम्बेडकर के बारे में क्या कहेंगी सोनिया जी ?

RSS तो एक गैर राजनीतिक संगठन रहा है, वह भारत छोड़ो अंदोलन में शामिल नहीं था तो बात समझ में आती है। पर राजा जी और आम्बेडकर के बारे में क्या कहेंगी सोनिया जी ?

New Delhi, Aug 10 : सोनिया गांधी ने लोक सभा में 9 अगस्त को ठीक ही कहा कि भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ऐसे संगठन भी थे जिनका भारत छोड़ो आंदोलन में कोई योगदान नहीं था।
सोनिया जी का इशारा आर.एस.एस.की ओर था।
पर सोनिया जी कुछ अन्य बातेें भूल गयीं।
आजादी के बाद जब केंद्र में सरकार बनने लगी तो जवाहर लाल नेहरू ने तो इस बात का ध्यान नहीं रखा था कि 1942 के आंदोलन में किसका योगदान था और किसका नहीं था !

Advertisement

नेहरू मंत्रिमंडल में डा.बी.आर.आम्बेडकर भी शामिल किए गए थे जिन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन का कड़ा विरोध किया था। उस समय वे वायसराय काउंसिल के सदस्य भी थे। यानी आप संघ की आलोचना कुछ दूसरी बातों के लिए भले कर सकती हैं, पर 1942 के आंदोलन को लेकर नहीं।
पर जब कोई नेता या दल किसी खास संगठन के प्रति पूर्वाग्रह से पीडि़त हो और उस संगठन की आलोचना से उसका वोट बैंक मजबूत हो रहा हो तो नेता और दल विवेक से काम नहीं लेते। पर वे नहीं जानते कि आम लोगों पर इसका उल्टा असर भी पड़ता है।
वहां न्यूटन का एक सिद्धांत लागू हो जाता है।
वही नहीं, राज गोपालाचारी देश के गवर्नर जनरल बनाये गये थे।
जबकि भारत छोड़ो आंदोलन के विरोध में राजा जी ने कांग्रेस से इस्तीफा तक दे दिया था।
उसी राजा जी को नेहरू जी देश का प्रथम राष्ट्रपति बनवाना चाहते थेे। सरदार पटेल ने यदि तब कड़ा विरोध नहीं किया होता तो वे बन भी गये होते ।

Advertisement

आर.एस.एस. तो एक गैर राजनीतिक संगठन रहा है। वह भारत छोड़ो अंदोलन में शामिल नहीं था तो बात समझ में आती है। पर राजा जी और आम्बेडकर के बारे में क्या कहेंगी सोनिया जी ?
दरअसल सोनिया जी और कांग्रेस के पास संघ के लिए अलग पैमाना है और राजा जी तथा आम्बेडकर जैसे लोगों के लिए अलग।
इस देश में सक्रिय विभिन्न रंगों के अतिवादियों के लिए भी कांग्रेस तथा कुछ अन्य तथाकथित सेक्युलर दलों का ऐसा ही एकतरफा रवैया रहता है। इसी तरह के दोहरे मापदंड के कारण कांग्रेस के लोक सभा में अब सिर्फ 44 सदस्य हैं। कुछ अन्य दल भी कुम्हला रहे हैं। ऐसे ही दोहरे मापदंडों के जरिए ये दल भाजपा को परोक्ष रूप से मदद पहुंचाते रहे हैं।
सांप्रदायिक मामलों को लेकर कांग्रेस नेतृत्व को चाहिए कि वह ए.के एंटोनी समिति की रपट एक बार फिर पढ़ ले।

Advertisement

2014 के लोस चुनाव में पराजय के बाद खुद कांग्रेस ने कारणों की जांच का भार कांग्रेस के सबसे ईमानदार नेता एंटोनी को सौंपी थी।
एंटोनी रपट में कहा गया है कि एकतरफा और असंतुलित धर्म निरपेक्षता की नीति चलाने के कारण भी कांग्रेस की पराजय हुई।

यदि कांग्रेस अब से भी उस रपट पर अमल करे ,खुद में संतुलन लाए तो देश को एक मजबूत विपक्ष मिलने की संभावना बनेगी।अन्यथा कांग्रेस दुबलाती ही चली जाएगी।जबकि लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए मजबूत प्रतिपक्ष जरूरी है।
ताजा राज्य सभा चुनाव में अहमद पटेल की जीत पर इतराने से कांग्रेस का काम नहीं चलेगा। क्योंकि वह तकनीकी जीत है न कि उसमें जन समर्थन की कोई झलक है।

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)