राम मंदिर पर 132 साल से मिल रही है सिर्फ तारीख पे तारीख !
छह दिसंबर 1992 को राम मंदिर निर्माण के लिए विवादित जमीन पर बने बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिरा दिया गया था। तब से आज तक सिर्फ तारीखों का दौर ही चल रहा है।
New Delhi Aug 12 : राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवाद में उम्मीद की जा रही थी कि इस केस की सबसे अहम और सबसे बड़ी सुनवाई 11 अगस्त से शुरु हो जाएगी। लेकिन, ऐसा हो ना सका। इस मामले में जुड़े कागजात और दस्तावेज के ट्रांसलेशन के लिए कोर्ट ने तीन महीने का समय दे दिया है। जिसके बाद अब इस केस की अगली सुनवाई पांच दिसंबर को होगी। सुन्नी वक्फ बोर्ड कहता है कि इस विवाद से जुड़े मूल ऐतिहासिक दस्तावेज संस्कृत, पारसी, अरबी और उर्दू में हैं। जिनके ट्रांसलेशन का काम चल रहा है। 9000 पेज के दस्तावजे हैं और 90 हजार पन्नों में गवाहियां दर्ज हैं। वो भी संस्कृत, अरबी, फारसी और पाली भाषाओं में। जरा सोचिए जिन दस्तावेजों का ट्रांसलेशन अब तक नहीं हो पाया क्या तीन महीने में पूरा हो जाएगा। ऐसे में इस केस में फिर से क्या मिलेगा सिर्फ तारीख।
कई बार तो पता नहीं क्यों लगता है कि कानूनी पेंचदगियों में उलझाकर इस केस को वेबजह खींचने की कोशिश की जा रही है। ताकि हर वर्ग को पॉलिटिकल माइलेज मिलता रहे। एक तौर पर देखेंगे तो पता चलेगा कि 25 साल से इस केस में तारीख दर तारीख मिलती रही है। जबकि ये विवाद 1853 से चला रहा है। इस विवाद में सदियां खप गई हैं। लेकिन, सुलह का फार्मूला नहीं निकला है। उम्मीद की एक किरण जगी थी कि राम मंदिर केस में सुप्रीम कोर्ट में जल्दी सुनवाई होगी। लेकिन, सुन्नी वक्फ बोर्ड का पेंच यहां पर भी काम कर गया है। अयोध्या मामले में टाइटल विवाद पिछले करीब छह सालों से पेंडिंग है। इस केस में हाईकोर्ट का जो फैसला आया था। उसके बाद ही तमाम पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में SLP दायर कर दी थी।
नौ मई 2011 को सु्प्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी थी जिसमें विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटने की बात कही थी। तब से आज तक राम मंदिर मसले पर सिर्फ तारीखें मिलती आई हैं। दरसअल, यादगार कहानी शुरु होती है 1528 में जब अयोध्या में एक जगह पर मस्जिद का निर्माण किया गया था। जिसे लोग भगवान राम की जन्मभूमि मानते थे। ये मस्जिद मुग़ल सम्राट बाबर के वक्त में बनवाई गई थी। 1853 में ये विवाद गरमाया था। तब हिंदुओं ने आरोप लगाया था कि राम मंदिर को तोड़कर यहां मस्जिद बनाई गई। इस विवाद को लेकर 1853 में पहली बार हिंदू और मुसलमानों में हिंसा हुई थी। तब भारत में ब्रिटिश राज चलता था। उस वक्त भी तारीखें ही मिलती रहीं।
1853 की इस हिंसा के बाद ब्रिटिश सरकार ने यहां पर तारों की एक बाड़ लगा दी थी। इसके साथ ही विवादित जमीन में पुलिस की मौजूदगी में हिंदू और मुसलमानों को इबादत की इजाजत भी मिल गई थी। 1885 में पहली बार ये मामला कोर्ट की दहलीज में पहुंचा था। उस हिसाब से 132 साल हो गए हैं राम मंदिर के मसले में देश की अलग-अलग अदालतों में मुकदमा चलते हुए। लेकिन, मिलता क्या है। छोटी अदालत का फैसला और बड़ी अदालत की तारीख। इतना ही नहीं राम मंदिर पर तारीखों का ये खेल सियासी भी है। राममंदिर निर्माण की बात हमेशा से की जाती है। लेकिन, आज तक कभी भी तारीख नहीं बताई। अगर पूछो तो यहां भी मिलती है तो सिर्फ तारीख पर तारीख।