शर्म करो : बाबरी मस्जिद पर मुस्लिम धर्म गुरु का अपमान कर रहे हैं ओवैसी ?

जहां एक ओर राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवाद में कल्‍बे सादिक जैसे धर्मगुरुओं ने अच्‍छी पहल की है। वहीं ओवैसी सरीखे नेता इस विवाद को खत्‍म ही नहीं होने देना चाहते हैं।

New Delhi Aug 14 : अयोध्‍या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवाद में सदियां गुजर गई हैं। दशकों से हम सब इस झगड़े को देखते आ रहे हैं। शिया वक्‍फ बोर्ड और मुस्लिम धर्म गुरु कल्‍बे सादिक के बयान के बाद इस विवाद के शांतिपूर्ण तरीके से निपटने की उम्‍मीद की किरण जगी थी। लेकिन, ओवैसी सरीखे नेताओं ने उम्‍मीद की इस किरण से ही दोबारा से आग लगाने की कोशिश शुरु कर दी है। इस तरह के नेता कभी नहीं चाहते कि इस मसले का कोई शांतिपूर्ण हल निकले। क्‍योंकि अगर ऐसा हुआ तो इनकी राजनीतिक गुमटियां बंद हो जाएंगी। देश के हर मोहल्‍ले, हर शहर में इस तरह की राजनैतिक गुमटियां खुली पड़ी हैं। जहां पर हिंदु-मुसलमान, मंदिर-मस्जिद का कड़वा ‘बीड़ा’ बनाकर लोगों को खिलाया जा रहा है।

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अभी हाल ही में मुस्लिम धर्मगुरु कल्‍बे सादिक ने कहा था कि अगर अयोध्‍या में विवादित जमीन का फैसला मुसलमानों के पक्ष में आ जाए तो भी उन्‍हें इस जमीन को हिंदुओं को दे देना चाहिए। इससे पहले शिया वक्‍फ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर ये बात कह चुका है कि ये जमीन राम मंदिर के लिए हिंदुओं को दे दी जाए। हम कुछ ही दूरी पर मस्जिद बना लेंगे। इसके साथ ही शिया वक्‍फ बोर्ड ने ये भी कहा था कि इस मस्जिद पर उनका हक है। ना कि सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड का। उसने तो सिर्फ इस पर कब्‍जा किया हुआ था। वहीं अब एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी कहते हैं कि मुसलमान सिर्फ धर्मगुरु के कहने पर मस्जिद की जमीन को हिंदुओं को नहीं सौंप सकते हैं।

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एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी का तर्क है कि मस्जिदों का मालिक खुद खुदा होता है, इन्हें कोई भी किसी को भी नहीं दे सकता। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि अ‍गर ओवैसी सरीखे नेता अगर मुस्लिम धर्म गुरु की बात नहीं मानने को तैयार हैं तो किसकी बात मानेंगे, पंडित जी की ? क्‍या इस तरह का बयान देकर वो मुस्लिम धर्म गुरु का अपमान नहीं कर र‍हे हैं ? जनाब ओवैसी साहब कह घूम रहे हैं कि महज किसी मौलवी या मौलाना के कहने से हम ऐसा क्‍यों करें ? ओवैसी का कहना है कि मस्जिदों को संभालने का काम शिया वक्‍फ बोर्ड कर सकता है। सुन्नी वक्‍फ बोर्ड कर सकता है। इसके अलावा बरेलवी, सूफी, देवबंदी, सलाफी, बोहरी की ओर से भी हो सकता है। लेकिन, ये लोग मस्जिद के मालिक नहीं हैं। मस्जिद का मालिक अल्‍लाह है।

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ओवैसी साहब अगर मस्जिद का मालिक अल्‍लाह है तो फिर उसके बनाए बाशिंदों ने इस बखेड़ो को क्‍यों खड़ा किया है ? ना तो अल्‍लाह झगड़े की इजाजत देता है और ना ही भगवान ये कहते हैं कि मंदिर-मस्जिद के नाम पर खून खराबा करो। फिर इस पर झगड़ा क्‍यों करते हों। अयोध्‍या में राम मंदिर बनेगा या फिर मस्जिद इस पर अल्‍लाह की इजाजत लेकर कौन आएगा ? ओवैसी साहब ये ज्ञान सिर्फ धर्म गुरु ही दे सकता है, क्‍योंकि धर्म गुरु को ही अल्‍लाह का चुना हुआ नुमाइंदा माना जाता है। लेकिन, तुमने तो उसे भी दरकिनार कर दिया। क्‍योंकि इससे तुम्‍हारे कट्टरवाद की राजनीति नहीं चमकती। तुम्‍हारी दुकान नहीं चलती। ओवैसी साहब जाओ और एक काम करो या तो इस मसले पर अल्‍लाह की मर्जी लेकर आओ या फिर धर्म गुरु की बात मानो। लेकिन, देश का सांप्रदायिक माहौल मत खराब करो।