जिस पार्टी के रणनीतिकार राहुल गांधी होंगे उसका हश्र क्‍या होगा ? कल्‍पना तो कीजिए !

कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं की सबसे बड़ी बीमारी ये है कि उन्‍होंने कभी कभी पार्टी और गांधी परिवार को अलग करके देखा ही नहीं। जानिए सियासत की सलतनत का सच।

New Delhi Aug 20 : बुरा मत मानिएगा लेकिन, सच बात हमेशा कड़वी होती है। कांग्रेस पार्टी के नेताओं को मेरी ये बात शूल की तरह चुभ सकती है। उनकी छाती को छलनी कर सकती है। लेकिन, ये सच है हर पार्टी की तरह कांग्रेस पार्टी में भी चाटुकार नेताओं की भरमार है। दूसरी पार्टी में भी चाटुकार नेता हैं जो बड़े नेताओं की चमचागिरी कर अपना हित साधते हैं। लेकिन, कांग्रेस पार्टी में ये चीज कुछ ज्‍यादा ही है। राहुल गांधी कुछ भी उलटा सीधा बोल देते हैं लेकिन, पार्टी के नेता हमेशा उनसे यही कहते हैं क‍ि “सर आपने कमाल कर दिया।” “आपके बयान ने बवाल मचा दिया।” चुनिंदा नेताओं की भीड़ उनके इर्द-गिर्द रहती है। जो हर वक्‍त उन्‍हें झाड़ के पेड़ पर चढ़ाते हैं। सोशल मीडिया के ‘पप्‍पू’ बिना जांच पड़ताल किए इस झाड़ के पेड़ पर चढ़ भी जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि कभी कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने इस दल को गांधी परिवार से अलग करके नहीं देखा है।

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अब कहा जा रहा है कि राहुल गांधी ने खुद ही पार्टी की प्‍लानिंग शुुरु कर दी है। 2019 की तैयारियां वो खुद ही कर रहे हैं। 2014 में भी उनका ही नाम आगे था। लेकिन, करारी हार के बाद ‘भैया जी’ को फजीहत से बचाने के लिए दूसरे नेता सामने आ गए थे। अब मणिशंकर अय्यर सरीखे नेता कहते हैं कि बीजेपी और संघ परिवार का विरोध करने के लिए राहुल गांधी सभी विरोधी दलों को एक मंच पर लाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके साथ ही वो राहुल गांधी के नेतृत्‍व में विश्‍वास भी जता रहे हैं। दरसअल, कांग्रेस पार्टी में दूसरा कोई नेता नजर ही नहीं आता जिसको पार्टी का अध्‍यक्ष बनाए जाने की मांग उठाई जा सके। हर कोई बस गांधी परिवार के सामने नतमस्‍तक है। यहां पर राजा की गद्दी रिजर्व है।   

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राहुल गांधी ने पिछले कुछ दिनों में अपनी रणनीति में थोड़ा बदलाव किया है। उन्‍होंने अपना फोकस सेंटर पीएम नरेंद्र मोदी से हटाकर संघ परिवार की ओर से सेट कर दिया है। इसीलिए राहुल आजकल संघ परिवार पर ज्‍यादा हमलावर नजर आ रहे हैं। राहुल गांधी का ये बदला अंदाज कांग्रेस के ‘चाटुकार’ नेताओं को बहुत पसंद आ रहा है। उन्‍हें राहुल बाबा के तारीफों के पुल बांधने की वजह जो मिल गई है। ऐसे नेताओं का मानना है क‍ि राहुल का ये तेवर और नई प्‍लानिंग यकीनन साल 2019 के लोकसभा चुनाव में रंग लाएगी। राहुल की ये सोच है कि अगर वो संघ की कट्टरता को देश की जनता के सामने अपने अंदाज में परोसेंगे तो उन्‍हें फायदा मिलेगा। नफरत की ये राजनीति उन्‍हें पीएम की कुर्सी तक पहुंचा सकती है।

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लेकिन, मेरा मानना कुछ और है। हो सकता है कि राहुल गांधी उन लोगों की नब्‍ज पकड़ने की कोशिश कर रहे हों जो संघ की विचारधारा से सहमत नहीं हैं। लेकिन, उन्‍हें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि देश में ऐसे भतेरे लोग हैं जिन्‍हें मु‍सलमानों की भी कट्टरता पसंद नहीं हैं। अगर राहुल गांधी ये सोच रखते हैं कि मदरसों में तिरंगा ना फहराना और राष्‍ट्रगान ना गाना भी देशभक्ति है तो ये बिलकुल गलत है। अगर राहुल गांधी को लगता है कि महात्‍मा गांधी की हत्‍या संघ की विचारधारा ने की थी तो आज केरल में जो कुछ हो रहा है उस पर वो खामोश क्‍यों हैं। कश्‍मीर के आतंकवाद पर उन्‍हें कौन सी देशभक्ति नजर आती है। कश्‍मीर का ये वो बीज है जो नेहरु परिवार का ही बोया हुआ है। राहुल गांधी जी अब वो वक्‍त लद गए हैं जब नेता अपनी बातों को जनता पर थोप दिया करते थे। पब्लिक अब सबकुछ देखती है उसके बाद फैसला करती है। उसे अखलाक भी दिखता है और केरल में कांग्रेस की बीफ पार्टी भी नजर आती है। उसे दलित की पिटाई भी दिखती है और कश्‍मीर में शहीद हो रहे सैनिक भी दिखते हैं। आप के लिए इन सब में भेद हो सकता है लेकिन, जनता के तराजू में तौला हर किसी को जा रहा है।