हे प्रभु ! आप तो ऐसे ना थे, भारतीय रेल और यात्रियों को कौन बचाएगा ?
अगर इसी तरह लापरवाही के चलते ट्रेन हादसे होते रहे तो भारतीय रेल और रेल यात्रियों को कौन बचाएगा? ये सीधा सवाल रेल मंत्री सुरेश प्रभु से है।
New Delhi Aug 20 : सुरेश प्रभु जी नमस्कार, मैं दिल और दिमाग दोनों से ही आपके काम का बहुत सम्मान करता हूं। लेकिन, एक रेल यात्री होने के नाते मेरे सम्मान को ठेस पहुंची है। यकीन मानिए अब जब भी मैं भारतीय रेल में सफर करता हूं तो पता नहीं क्यों मन में हमेशा डर बना रहता है। डर इस बात का रहता है कि पता नहीं कल का सूरज देख पाऊंगा या नहीं। अगर मेरा कोई रिश्तेदार या फिर माता-पिता भी भारतीय रेल से मेरे पास आ रहे होते हैं या फिर कहीं जा रहे होते हैं तब भी दिल में डर बैठा रहता है। ये डर उस वक्त तक रहता है जब तक वो सुरक्षित अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच जाते हैं। भारतीय रेल में डर सिर्फ ट्रेन हादसों का ही नहीं रहता है, डर इस बात का भी रहता है कि पता नहीं कहीं कोई किसी को मामूली सी बात पर ट्रेन के नीचे ना फेंक दे। ट्रेन में डाका ना पड़ जाए। रेलगाड़ी में चाकूबाजी ना हो जाए। मेरे इस डर के लिए सुरेश प्रभु जी आप जिम्मेदार हैं।
मैं आपसे ना तो नैतिकता के नाम पर इस्तीफे की मांग कर रहा हूं और ना ही ये कह रहा हूं कि आप खुद ही अपनी कुर्सी छोड़ दें। क्योंकि अगर आप जाएंगे तो दूसरा आएगा। लेकिन, भारतीय रेल बदलेगी या नहीं ये किसी को नहीं पता। मैं भारतीय रेल के हादसों की कोई लंबी-चौड़ी फेहरिस्त ना तो आपको दिखाना चाहता हूं और ना ही इस मूड में हूं। लेकिन, यूपी के मुजफ्फरनगर में हुए उत्कल एक्सप्रेस हादसे के बाद आपको ये जरुर याद दिलाऊंगा कि सिर्फ यूपी में ही डेढ़ साल के भीतर ये पांचवां बड़ा हादसा है। 20 फरवरी 2017 को कालिन्दी एक्सप्रेस के 12 डिब्बे टुंडला में पटरी से उतर गए थे। 23 लोगों की मौत हो गई थी। 20 नवंबर 2016 को कानपुर के पास इंदौर-पटना एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। यहां लाशों का अंबार लग गया था। 121 लोगों की मौत हो गई थी।
20 मार्च 2015 को रायबरेली के बछरावां के पास देहरादून-वाराणसी एक्सप्रेस ट्रेन भी दुर्घटनाग्रस्त हुई थी। जिसमें 32 लोग मारे गए थे। इससे पहले 1 अक्टूबर 2014 को गोरखपुर में क्रासिंग पर दो ट्रेनों की आमने-सामने भिड़ंत हो गई थी। इस टक्कर में 14 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। हर रेल हादसों की तरह इस बार भी आपने उत्कल रेल हादसे में जांच कमेटी बिठा दी है। शाम तक रिपोर्ट मांग ली है। आप कुछ लोगों को सस्पेंड भी कर देंगे। जो हो सकता है कि कुछ साल बाद अपनी नौकरी से बहाल भी हो जाएं। लेकिन, यकीन मानिए अब भारतीय रेल के मुसाफिरों का डर इन सबसे निकलने वाला नहीं हैं। अफसोस भी होता है और खुशी भी होती है कि हमारे देश में बुलेट ट्रेन अब तक नहीं चली है।
सुरेश प्रभु जी कल्पना कीजिए अगर देश में बुलेट ट्रेन चल रही हो और इस तरह का हादसा हो जाए तो कितने लोग मरेंगे? कल्पनाओं का आंकड़ा सोच से परे हो सकता है। भारतीय रेल को सुरक्षित बनाने की जिम्मेदारी आपके कंधों पर हैं। आपको अपनी ये जिम्मेदारी निभानी होगी। रेल यात्रियों के दिलों में सुरक्षित यात्रा का माहौल पैदा करना होगा। ये तभी होगा तब जिम्मेदार लोगों को सबक मिलेगा। ट्रेन हादसों के दोषियों को सजा मिलेगी। भारतीय रेल के कर्मचारियों को ये बताना होगा कि “कुछ भी चलता है” के अंदाज में काम नहीं चलेगा। सुरेश प्रभु जी हमे आपसे बहुत उम्मीद हैं। हमें भी पता है कि सालों से बदहाल व्यवस्थाओं को सुधारने में वक्त लगेगा। लेकिन, आपके ही महकमे की क्रॉसिंग पर लिखा रहता है कि “दुर्घटना से देर भली”, “सावधानी हटी दुर्घटना घटी” फिर इस पर आपका ही मकहमा अमल क्यों नहीं करता।