‘शहादत 1971 में, नौकरी 2017 में, शर्म करें 43 साल सरकार चलाने वाले’
देश के लिए शहीद हुए हरियाणा के जवानों के परिवारों को नौकरी का हक हासिल करने के लिए 2014 में मनोहर लाल जी की सरकार बनने का इंतज़ार करना पड़ा।
New Delhi, Aug 21: कोई सैनिक जब देश की रक्षा में शहीद होता है तो उस देश के नागरिक उस परिवार का कर्ज़ कभी नहीं चुका सकते। जिम्मेदारी के तौर पर शहीद के परिवार का ध्यान रखना हर सरकार का काम होता है। लेकिन हमारे हरियाणा की पिछली सरकारें इस मामले में जिस हद तक विफल रही हैं, वह हैरान करने वाला है। आप चौंक जाएंगे यह जानकर कि भाजपा की मनोहर सरकार ने अब तक 114 ऐसे शहीदों के परिजनों को सहायतास्वरूप सरकारी नौकरी दी है जिन्होंने देश के लिए प्राण दिए, और इन 114 में से 110 जवान अक्तूबर 2014 से पहले यानी मनोहर लाल जी के मुख्यमंत्री बनने से पहले देश पर कुर्बानी दे चुके थे। यह आंकड़ा इसलिए और ज्यादा विस्मयकारी और शर्मनाक हो जाता है कि 1971 में शहीद हुए कुछ जवानों के परिवारों तक को जॉब मौजूदा भाजपा सरकार ने दी है। 43 साल तक हरियाणा की सरकारें क्या करती रही और उन शहीदों को सम्मान क्यों नहीं दे पाई जिनकी बदौलत आज हम खुली हवा में सांस लेते हैं ?
हरियाणा के पिछले मुख्यमंत्रियों ने इस बात की वाहवाही हर जगह ली है कि 2 प्रतिशत आबादी के बावजूद देश की सेना में 10 फीसदी सैनिक हमारे हरियाणा से हैं। यह कहकर गर्व से सीना चौड़ा करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और उनकी सरकारें शहीदों को सरकारी सहायता और जॉब देने की फाइलों को लेकर आंखे मूंदे बैठे रहे। तभी तो 1971, 1986, 1987, 1988, 1989, 1990, 1991, 1992, 1993, 1994, 1995, 1996, 1997, 1998, 1999, 2000, 2001, 2002, 2003, 2004, 2005, 2006, 2007, 2008, 2009, 2010, 2011, 2012, 2013 में शहीद हुए हरियाणा के जवानों के परिवारों को नौकरी का हक हासिल करने के लिए 2014 में मनोहर लाल जी की सरकार बनने का इंतज़ार करना पड़ा। यह सच्चाई सिर्फ हैरानी भरी नहीं, बल्कि शर्मनाक है। जिन सरकारों के भरोसे हमारे जवान सीमा पर जान हथेली पर रखकर अपनी ड्यूटी करते हैं, वे इस कदर गैरजिम्मेदार होंगी, ऐसा ख्याल भी उनके जहन में उस वक्त नहीं आता होगा जब वे जान पर खेल रहे होते हैं।
यह भाजपा की राष्ट्रवादी सोच वाली मनोहर सरकार ही है जिसने 22 अप्रैल 1971 को न्यौछावर होने वाले भिवानी के खरक कलां गांव के शहीद महासिंह के परिजन को 43 साल बाद जॉब दी है और हरियाणा के माटी से देश के काम आने वाले अब तक के आखिरी लाल कुरुक्षेत्र के अन्ठेड़ी गांव के मन्दीप सिंह के परिजन को भी सरकारी नौकरी दी है जो 28 अक्टूबर 2016 को शहीद हुए थे। इन दोनों तारीखों के बीच भी 112 ऐसे और शहीद परिवार थे जो अपने किसी सदस्य के लिए सरकारी जॉब का इंतज़ार कर रहे थे जिसे मनोहर सरकार ने खत्म किया है। यही नहीं, भाजपा की लोकप्रिय हरियाणा सरकार ने देश पर जान कुर्बान करने वाले जवानों के परिवारों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता राशि भी 20 लाख रूपये से बढ़ाकर 50 लाख रूपये कर दी है।
ना हम इस रकम में बढ़ोतरी का श्रेय लेना चाहते और ना ही जॉब देकर हम शहीदों का कर्ज़ उतार सकते, लेकिन यह सवाल हम जरूर पूछना चाहते हैं कि इन चार दशकों में बने मुख्यमंत्री और उनकी सरकारें शहीद परिवारों के साथ इतना बड़ा अन्याय कैसे करके गई। कुछ परिवार ऐसे हो सकते हैं जहां शहीद के किसी परिजन को नौकरी लायक आयु प्राप्त करने में कुछ वर्ष लग गए हों लेकिन दर्जनों मामलों में 20, 30 और 43 साल की देरी बहुत बड़ा सवाल खड़ा करती है। किसी भी नागरिक को सम्मानपूर्वक या मुआवजे के तौर पर जॉब देते समय पिछली सरकारे खूब ढिंढोरा पीटती थी लेकिन मनोहर सरकार ने पिछले ढाई साल में चुपचाप 114 शहीद परिवारों को जॉब दे दी मगर आज भी सरकार की तरफ से कहीं इनका जिक्र नहीं, हम बस विनम्रतापूर्वक देश के जवानों और शहीदों को इस महान देश की रक्षा के लिए करबद्ध नमन ही करते है। हम श्रेय आज भी नहीं चाहते, बस पिछली सरकारों से सवाल पूछते हैं कि शहीदों का ऐसा अपमान क्यों किया ?