सृजन के दुर्जनों में कुछ वैसे नेताओं के भी नाम आ रहे हैं जिनके दल की सरकार है !

वैसे सी.बी.आई. में जांच जाने से यह उम्मीद बंधी है कि सृजन घोटाले की जांच की गिरफ्त में अब बड़े-बड़े मगरमच्छ फंस सकते हैं।

New Delhi, Aug 21 : कई साल पहले का एक मार्मिक दृश्य ! रांची की निचली अदालत
का बरामदा। आयुक्त स्तर का एक आई.ए.एस. अफसर बरामदे की दीवार से पीठ सटाकर जमीन पर बैठा है।उसकी टांगें आगे की ओर फैली हुई हैं। गंदे और फटे कपड़े में है। रद्दी अखबार में भुजा रख कर धीरे -धीरे खा रहा है। एक पत्रकार ने जब उसका हाल पूछा तो वह रूआंसा हो गया। इतना ही कहा कि ‘मेरी तो दुनिया ही बदल गयी।’ इससे अधिक वह कुछ बोल नहीं सका। वह चारा घोटाला केस में तारीख पर आया था। चारा घोटाले का एक आरोपी था। बिहार सरकार के एक कमिश्नर की रोब-दाब का अंदाजा लगा लीजिए।

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वह पृष्ठभूमि और अब ताजा हाल-बेहाल ! उस घटना का विवरण एक पत्रिका में पढ़कर मुझे लगा था कि अब कम से कम बड़े अफसर कोई घोटाला करने से पहले सौ बार सोचेंगे। पर ऐसा नहीं हो सका। लालच जो न कराए ! उसके बाद भी एक पर एक घोटाले होते जा रहे हैं। सृजन घोटाला ताजा है। कारण यह है कि घोटालेबाज समझते हैं कि इसमें घाटा कम और मुनाफा अधिक है। क्यों न रिस्क लेकर देख लिया जाए ! क्या भ्रष्टाचारियों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान करने के बारे में अब भी हमारे हुक्मरान नहीं सोचेंगे ? सवाल है कि क्या शासन के विभिन्न संस्थानों के बड़े अफसरों की साठगांठ के बिना ताजा सृजन घोटाला संभव था ? क्या केंद्र और राज्य सरकारें अब भी ‘भ्रष्टाचार को घाटा अधिक और मुनाफा कम’ का सौदा नहीं बनाएगी ? यदि नहीं तो कभी चारा तो कभी सृजन घोटाले होते रहेंगे। नीतीश सरकार ने सृजन घोटाले की जांच का भार सी.बी.आई. को सौंप कर
अपनी ईमानदार मंशा का परिचय दिया है। पर इसके साथ यदि किसी तरह यह व्यवस्था भी हो जाए कि सी.बी.आई.जांच की निगरानी अदालत करे तो आम लोगों को उस जांच पर अधिक भरोसा होगा।

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वैसे सी.बी.आई. में जांच जाने से यह उम्मीद बंधी है कि सृजन घोटाले की जांच की गिरफ्त में अब बड़े-बड़े मगरमच्छ फंस सकते हैं। कई कारणों से उन्हें पकड़ना बिहार पुलिस के वश की बात थी भी नहीं।
वैसे भी सृजन के दुर्जन एक से अधिक राज्यों में फैले हुए हैं। उनके होश सी.बी.आई. ही ठिकाने ला सकेगी। यह भी संकेत हैं कि अब कुछ बड़े और बड़बोले नेताओं के भी पसीने छूटेंगे। बड़े अफसर नामक ऊंट भी पहाड़ के नीचे आ सकते हैं। यह आम धारणा है कि आई.ए.एस. अफसरों की सांठगांठ के बिना सृजन घोटाला जैसा घोटाला संभव ही नहीं था। अब तक मिली जानकारियों के अनुसार चारा घोटाला और हवाला घोटाले की तरह का ही है सृजन घोटाला।छोटे पैमाने पर या उनसे भी बड़े पैमाने पर ? सी.बी.आई. की जांच जब आगे बढ़ेगी तो इस सवाल का जवाब भी मिल जाएगा। केंद्र सरकार को चाहिए कि वह यह सुनिश्चित करे कि सी.बी.आई. सृजन घोटाले की जांच करने की बिहार सरकार की सिफारिश को अस्वीकार न करे। प्रधान मंत्री नरंेद्र मोदी अक्सर भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलते रहते हैं।
उम्मीद है कि श्री मोदी यह बात महसूस करेंगे कि बिहार जैसे गरीब प्रदेश के भ्रष्टाचारियों को उनके असली मुकाम तक पहुंचाना सर्वाधिक जरूरी है।

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इस घोटाले में बड़ी -बड़ी हस्तियों के शामिल होने की संभावना बलवती है। कल्पना कीजिए कि कुछ लोग करोड़ों रुपए लूट रहे हैं और प्रभावशाली लोगों के बीच उसमें से लाखों बांट रहे हैं। ऐसे में कितने अफसर, नेता और अन्य क्षेत्रों के प्रभावशाली लोग हैं जो पैसे ठुकरा देंगे ? नब्बे के दशक के जैन हवाला कांड में तो उन हवाला कारोबारी जैन बंधुओं ने विभिन्न दलों के अनेक अत्यंत बड़ेे नेताओं को लाखों -लाख रुपए यूं ही दे दिए थे । उन्होंने वे पैसे स्वीकार भी कर लिये थे ।यह और बात है कि उनमें से सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था सिर्फ शरद यादव ने।शरद ने कहा था कि कोई जैन आया था और मुझे 3 लाख रुपए दे गया। अरे भई, आपने उससे पूछा क्यों नहीं कि किस खुशी में ये पैसे दे रहे हो ?
पर आज राजनीति का स्तर ही ऐसा है कि इस तरह के आसान पैसों की ही बड़े -बड़े नेता प्रतीक्षा करते रहते हैं। याद रहे कि वही हवाला व्यापारी जैन बंधु कश्मीर के आतंकियों को भी विदेश से आए पैसे पहुंचाते थे।उसने नेताओं को पैसे इसलिए बांटे थे कि कश्मीरी आतंकियों को पैसे देते समय यदि कभी वह पकड़ा जाए तो ये नेता उसे छुड़वा लेंगेे।

सृजन घोटालाबाजों ने भी संरक्षक तैयार किए थे। इसीलिए यह घोटाला वर्षों तक निर्बाध चलता रहा और किसी का बाल बांका नहीं हुआ। सृजन महिला विकास सहयोग समिति नामक एन.जी.ओ. के संचालकों की हमेशा चांदी रही। क्योंकि उन्हें उच्चस्तरीय संरक्षण मिलता रहेगा। कम्युनिस्टों को छोड़ दें तो हवाला एक तरह से सर्वदलीय घोटाला था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सी.बी.आई.ने तो उस मामले की ठीक से जांच ही नहीं की। करती कैसे ? सत्ताधारी सहित विभिन्न दलों के इतने बड़े नेताओं को कैसे सजा दिलवाती ! चारा घोटाला भी बहुदलीय घोटाला रहा। उसकी सी.बी.आई. द्वारा ठीक से जांच हुई। क्योंकि जांच की निगरानी पटना हाई कोर्ट कर रहा था। देखना है कि सी.बी.आई.सृजन घोटाले की ईमानदारी से जांच कर पाती है या नहीं ? यदि अदालती निगरानी की व्यवस्था हो जाएगी तो सही जांच की गारंटी होगी। वैसे भी सही जांच की संभावना इसलिए भी है क्योंकि अब तक मिले संकेतों के अनुसार सृजन में उतने बड़े नेता नहीं फंसे हैं जितने हवाला और चारा घोटाले में फंसे थे।

वैसे कुछ लोग यह शक जरूर जाहिर कर रहे हैं कि पता नहीं जांच निष्पक्ष हो पाएगी या नहीं ! अदालती निगरानी हो पाएगी या नहीं ! यह शक इसलिए भी जाहिर किया जा रहा है क्योंकि सृजन के दुर्जनों में कुछ वैसे नेताओं के भी नाम आ रहे हैं जिनके दल की केंद्र में सरकार है। इस गरीब राज्य की जनता से वसूले गए टैक्स के पैसों को लूटा है सृजन के दुर्जनों ने। उन्हें ईश्वर तो माफ नहीं ही करेगा,सी.बी.आई.को भी चाहिए कि वह ठीक से जांच करे चाहे जो भी फंसता हो।चाहे अदालती निगरानी हो या नहीं। सी.बी.आई. के सामने यह अच्छा मौका है जब वह साबित कर सकती है कि वह अब ‘सरकारी तोता’ नहीं रही।

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)