इन महिलाओं को सलाम, जिन्होंने करा दिया असंवैधानिक ट्रिपल तलाक का संवैधानिक ‘हलाला’
ट्रिपल तलाक पर सुप्रीम का ऐतिहासिक फैसला आ चुका है। सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक को असंवैधानिक करार दे चुकी है। जानिए महिलाओं के इस जंग की पूरी कहानी।
New Delhi Aug 22 : ट्रिपल तलाक पर कानूनी लड़ाई खत्म हो चुकी है। तीन तलाक पर शरीयत का ज्ञान बांचने वाले विद्वान मुसलमानों की जुबान पर ताला लटक चुका है। हर वक्त बुर्के में कैद रहने वाली मुस्लिम महिलाओं की जुबान खुल चुकी है। अब हिंदुस्तान में तलाक, तलाक, तलाक नहीं सुनाई देगा। ट्रिपल तलाक का खौफ मुस्लिम महिलाओं के दिलों से निकल चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार देते हुए इस पर रोक लगा दी है। साथ ही केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि वो इस मामले पर कानून लेकर आए। ताकि मुस्लिम महिलाओं को इससे संरक्षण मिल सकें। ये उन पांच मुस्लिम के महिलाओं के संघर्ष की जीत है जिन्होंने इस्लामिक कट्टरता के खिलाफ खड़े होकर ट्रिपल तलाक के विरुद्ध आवाज उठाई।
इस ऐतिहासिक फैसले की धुरी बनी इन पांचों महिलाओं के नाम देश को जानने चाहिए। इसमें सबसे अहम नाम है उत्तराखंड की सायरा बानो का। जो सबसे पहले इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची थीं। इसके अलावा आफरीन रहमान, गुलशन परवीन, इशरत जहां और अतिया साबरी के संघर्ष को भी पूरा हिंदुस्तान याद रखेगा। ये वो मुस्लिम महिलाएं थीं जिनके शौहरों ने कभी स्पीड पोस्ट से तीन तलाक दिया तो किसी ने स्टांप पेपर पर ट्रिपल तलाक लिखकर छुटकारा पाना चाहा। सायरा बानो मूल रुप से उत्तराखंड के काशीपुर की रहने वाली हैं। जिन्होंने पिछली साल सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर ट्रिपल तलाक और हलाला को संवैधानिक चुनौती दी थी। सायरा बानो ने बहुप्रथा को भी गलत बताया था।
सायरा बानो ने ट्रिपल तलाक और हलाला पर वो हिम्मत दिखाई जो हिम्मत आज तक देश की राजनैतिक पार्टियां नहीं दिखा पाई थीं। सायरा बानो का कहना था कि तीन तलाक संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का हनन है। सायरा बानो ने कुमायूं यूनिवर्सिटी से समाजशास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल की हुई है। 2001 में उनकी शादी हुई थी। 15 साल बाद उनके शौहर ने उन्हें तीन तलाक देकर छोड़ दिया। शौहर को अपने बेटा बेटी पर भी तरस नहीं आया। इसी के बाद सायरा बानो ने कानूनी लड़ाई शुरु की। सायरा बानो की ही तरह आफरीन रहमान भी तीन तलाक की पीडि़त हैं। जिनके शौहर ने स्पीड पोस्ट के जरिए इंदौर की रहने वाली 25 साल की अाफरीन को तलाकनामा भेज दिया था। आफरीन ने भी सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका लगाई थी।
यूपी के सहारनपुर की रहने वाली अतिया साबरी के शौहर ने तो चंद कागज के टुकड़ों पर ही ट्रिपल तलाक लिखकर अतिया की शादीशुदा जिदंगी की किताब को बंद कर दिया था। अतिया साबरी की तरह यूपी के ही रामपुर की रहने वाली गुलशन परवीन के भी पति ने सिर्फ दस रुपए के स्टांप पेपर पर तलाक, तलाक, तलाक लिखकर उसे अपनी जिदंगी से बेदखल कर दिया था। अतिया साबरी और गुलशन परवीन की तरह पश्चिम बंगाल के हावड़ा की रहने वाली इशरत जहां से भी ट्रिपल तलाक को संवैधानिक चुनौती दी थी। इशरत जहां के शौहर ने दुबई से फोन कर तीन तलाक का फरमान सुनाया था। लेकिन, अब पूरा देश इन पांच महिलाओं की कानूनी जंग को देख रहा है। इनके हौसले और हिम्मत को सलाम कर रहा है। पूरी कौम और मजहब के खिलाफ जाना आसान नहीं है। वो भी वहां पर जहां शरीयत की कट्टरता का चाबुक हर वक्त चलता हो।