तीन तलाक से आजादी, हिंदुस्तान की न्यायपालिका का ऐतिहासिक दिन !

तीन तलाक की कुप्रथा पर आखिरकार हिंदुस्तान ने जीत हासिल कर ली। 22 अगस्त का दिन भारत की न्यायपालिका के लिए ऐतिहासिक रहा।

New Delhi, Aug 22 : देश की न्यायपालिका में सबसे बड़े अधिकारों में से एक अधिकार है समानता का अधिकार। ये वो अधिकार है जिस पर हर किसी का हर है। लेकिन मुस्लिम महिलाओं के लिए ये हक कही गुम हो गया था। एक आवाज उठी तो देशभर में बवाल मच गया। जी हां हम बात कर रहे हैं तीन तलाक की। एक ऐसी प्रथा जिससे हर मुस्लिम महिला छुटकारा पाना चाहती थी। लेकिन देश की राजनीति में इस मुद्दे को इस तरह उछाला गया था कि मुस्लिम महिलाओं का जीना दुश्वार हो गया था। आखिर वो वक्त आ ही गया जब सुप्रीम कोर्ट ने इस विवादित मुद्दे पर अपना आखिरी फैसला सुना दिया। देश की सबसे बड़ी अदालत ने ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक करार दिया है।

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सुप्रीम कोर्ट के 5 में से तीन जजों ने इसे गलत करार दिया। हालांकि जस्टिस नजीर और सीजेआई खेहर इसके पक्ष में थे लेकिन तीन जजों ने उनकी राय का विरोध किया। संविधान का अनुच्छेद 14 हर देशवासी को समानता का अधिकार देता है। आपको बता दें कि दुनिया में कई मुस्लिम देश ऐसे भी हैं, जहां ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक करार दिया जा चुका है। ऐसे में कोर्ट ने पूछा कि जब मुस्लिम मुल्कों में ही इस प्रथा को खत्म किया जा चुका है तो भारत इससे आजाद क्यों नहीं होता। कोर्ट का कहना है कि देश की संसद को इस बारे में एक कानून तैयार करना चाहिए। सबसे पहले चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने अपना फैसला पढ़ा।

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उन्होंने कहा कि ये समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है। उन्होंने कहा कि ये 1000 सालों से चली आ रही प्रथा है। इसके बाद जस्टिस नजीर ने कहा कि ट्रिपल तलाक धार्मिक प्रैक्टिस है, इसलिए कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए। इस बीच दोनों ही जजों ने माना कि ये पाप है। लेकिन अभी 5 जजों की बेंच में से दो जजों ने अपना फैसला सुनाया था। बाकी तीन जजों ने इस फैसले का विरोध किया और अपना फैसला सुना दिया। ये वो ऐतिहासिक फैसला था जिस दौरान कोर्टरूम नंबर 1 पूरी तरह से खचाखच भरा था। देखा जाता है कि कोर्ट रूप के दरवाजे किसी फैसले के वक्त बंद कर दिए जाते हैं लेकिन इस बार दरवाजे खुले थे और देश को इस फैसले का इंतजार था।

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5 अलग अलग समुदाय से ताल्लुक रखने वाले जजों ने एक समुदाय की प्रथा पर बड़ा फैसला लिया है। पीड़ितों में एक के वकील रामजेठमलानी ने कहा कि ये प्रथा एक घृणित प्रथा है और महिलाओं को ये समानता का अधिकार नहीं देता। उधर ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से कहा गया कि 3 तलाक इस्लाम का मूल हिस्सा ना तो था और ना ही कभी हो सकेगा। इससे पहले देश भर की महिलाएं केंद्र सरकार से अपील कर चुकी थी कि इस प्रथा को हर हाल में खत्म कर दिया जाए। इसके बाद केंद्र सरकार ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और आखिरकार तीन तलाक पर ऐतिहासिक फैसला देश के सामने है।