अखिलेश यादव अहंकार छोड़ दें, अब वो सीएम नहीं हैं !

गत चुनाव में अखिलेश यादव के नेतृत्व को प्रदेश की जनता ने नकार दिया। उन्हें ना केवल एक असफल, अनुभवहीन CM माना बल्कि उनकी नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल उठा दिये।

New Delhi, Aug 22 : भ्रष्टाचार, अनाचार, अनैतिकता, जातिवाद व परिवारवाद की प्रतीक एक पार्टी, सपा के अपने Electoral इतिहास में वर्ष 1993 से 2017 के बीच हुए 6 चुनावों में से latest चुनाव अर्थात ‘अखिलेश यादव के नेतृत्व’ में वर्ष 2017 के चुनाव में सपा को सबसे कम अर्थात 403 में से केवल 47 सीटें ही प्राप्त हुई। जबकि इस पार्टी को उससे पहले ‘मुलायम सिंह के नेतृत्व’ में अर्थात वर्ष 2012 के चुनावों में 403 में से 224 सीट मिली थी और सपा सत्ता में आयी थी। जिसके बाद सपा के परिवारवादी इतिहास में एक काला पन्ना जुड़ा था जिसने एक पिता ने पुत्र मोह में अंधा होकर अपने ‘भ्रात-भक्त’ भाई शिवपाल सिंह यादव का हक़ छीन अपने एक औरंगजेबी, अनुभवहीन, ना….कारा पुत्र को CM की कुर्सी सौग़ात में दे दी थी। उसी पुत्र ने अपने ‘बूढ़े’ पिता को बार-बार अपमानित कर अंततः अध्यक्ष पद की कुर्सी से धकिया दिया।

Advertisement

पहले पाँच चुनावों में सपा का नेतृत्व मुलायम सिंह यादव के हाथ में था और अंतिम अर्थात हालिया चुनाव (2017) का नेतृत्व ‘अखिलेश यादव’ के हाथ में था और ऊपर से यह चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था अर्थात यदि सपा द्वारा यह चुनाव अकेले लड़ा जाता तो शायद सीटों की संख्या 10 का भी आंकड़ा भी नहीं छू पाती। आज जो प्रदेश की शिक्षा, चिकित्सा और सड़कों आदि का ख़स्ता हाल है, के लिए अखिलेश यादव के कार्यकाल का अखंड भ्रष्टाचार व अकर्मण्यता ही ज़िम्मेदार है।
इससे क्या सिद्ध होता है ?
गत चुनाव में अखिलेश यादव के नेतृत्व को प्रदेश की जनता ने नकार दिया। अर्थात अखिलेश को न केवल एक असफल, अनुभवहीन CM माना अपितु एक नेतृत्व क्षमता के अभाव वाला सपा अध्यक्ष माना।

Advertisement

अखिलेश यादव को न केवल प्रदेश के लोगों ने नकारा अपितु अपनी आधे से अधिक ‘यादव’ जाति व मुसलमानों ने भी नकार दिया। मुसलमानों की निष्ठा बाबरी मस्जिद को बचाने के नाम पर, कारसेवकों की हत्या कराने के कारण मुलायम सिंह के प्रति आज भी है। अखिलेश को मुसलमान ने आज भी स्वीकार नहीं किया है, कारण उनके दूसरे चाचा रामगोपाल यादव द्वारा, CBI के डर से, लगातार भाजपा की चमचागिरी करना है। यादव जाति ने भी अखिलेश यादव द्वारा अपने पिता मुलायम सिंह व चाचा शिवपाल सिंह यादव के प्रति कृतघ्नता को अच्छा नहीं माना। औरंगज़ेब ने भी यही किया था। यही कारण है कि MLC तक सपा से छोड़कर भाग रहे हैं, कारण अखिलेश के नेतृत्व पर उन्हें गम्भीर शंकायें है।

Advertisement

आप पूछेंगे कि इस संदर्भ का आज क्या महत्व है, है दोस्तों ! अभी हाल में योगी सरकार ने अखिलेश यादव को हिरासत में लिया था और मुचलका/ज़मानत पर छोड़ा था। ज़मानत क्यों दी गयी, क्योंकि अखिलेश यादव को जेल जाने का डर था, जेल के मच्छर व गरमी सहन करना अखिलेश यादव की फ़ितरत में नहीं है, AC में/ luxury की आदत है।
अब मैं यह नहीं लिखूंगा कि अखिलेश यादव ने जेल से बचने के लिए ज़मानत इसलिए भरी गयी क्योंकि अखिलेश को CM योगी के दीवान जी के ‘मुगदर’ का भी डर रहा होगा। क्योंकि पिछली बार जब मैंने ऐसा लिखा था तो कुछ सपाई चमचों/लफ़ंगों को यह बुरा लग गया था। अखिलेश यादव के कई क़रीबी लोग यह बताते रहते है कि कई बार उन्हें अखिलेश को याद दिलाना पड़ता है कि अब वह अहंकार छोड़ दे क्योंकि अब वह मुख्यमंत्री नहीं है, यही हाल रहा तो अखिलेश यादव जैसा ‘जातिवादी’ व्यक्ति पुनः उत्तर प्रदेश की सत्ता में नहीं लौट सकता।

नॉएडा के भ्रष्ट इंजीनियर यादव सिंह को सुप्रीम कोर्ट तक बचाना और अनिल यादव जैसे भ्रष्ट व अपराधी को लोकसेवा आयोग का अध्यक्ष बनाना, और बड़े घोटाले-गोमती बांध, पंजीरी, शराब, खनन, अवैध भर्तियां, लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे आदि अनेक गोरखधंधों का जनक व संरक्षक अखिलेश यादव ही तो थे। लोग कैसे आसानी से ये सब भुलाकर पुनः अखिलेश यादव को सत्ता सौंप देंगे। अखिलेश के साथ अब अधिकांशतः भ्रष्ट, दलाल टाइप के लोग ही बचे हैं।
अतः अखिलेश यादव के पास अब केवल तीन सीमित विकल्प हैं:
1. भ्रष्टाचार में एक जेल में जाओ, या
2. समर्पण करो और भाजपा में चले जाओ,या फिर
3. राजनीति छोड़कर अपने घर बैठो, बच्चे पालो।
क्या कहते है, आप ?

(रिटायर्ड आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)