जाति जाती नहीं ‘ढ़पोरशंखी’ राजनीति से !

कोई भी जाति बुरी नहीं, सबको अपनी-अपनी जातियों पर गर्व होना चाहिए लेकिन किसी दूसरी से नफ़रत नहीं।

New Delhi, Aug 23 : जे. पी. ने कहा था कि ‘जाति भारत में एक महत्वपूर्ण दल (बनकर रह गयीं) है’, इसका मतलब कि इस देश में सभी स्वार्थी राजनीतिक दलों को जातियां एक बने-बनाए संगठन के रूप में मिल जाती हैं, कुछ करना नहीं पड़ता। आप सोच रहे होंगे कि मैंने ये संदर्भ क्यों छेड़ा, इसकी हालिया क्या प्रासंगिकता है ? कल एक युवा ने मुझे फ़ोन किया था और पूछा था कि ‘क्या आप किसी जाति विशेष से द्वेष रखते है? आपने लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष अनिल यादव के विरुद्ध आंदोलन चलाया और अब आप अखिलेश यादव का विरोध कर रहे हैं’। मेरा उत्तर शायद मेरे निम्न अभिकथन में मिल जाएगा।

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मेरी समझ से सभी जातियों में बड़े-बड़े सदपुरूष, कवि, लेखक, व बुद्धिजीवी हुए हैं, तो मैं क्या, कोई भी भला किसी जाति को किसी अन्य जाति से कमतर कैसे आंक सकता है ? कोई भी जाति बुरी नहीं, सबको अपनी-अपनी जातियों पर गर्व होना चाहिए लेकिन किसी दूसरी से नफ़रत नहीं। जातियों का अस्तित्व सारी दुनिया में किसी न किसी रूप में एक यथार्थ है। यदि जातियों का उपयोग सामाजिक भाईचारे के समवर्धन व राष्ट्रीय एकता व देश प्रेम को बढ़ाने में हो तो किसी को कोई आपत्ति हो ही नहीं सकती। लेकिन यदि जातियों का दुरुपयोग राजनीतिक स्वार्थ पूर्ति व प्रतिभा को दरकिनार कर, किसी योग्य का हक़ छिनकर कोई नेता अपनी कास्ट और उसमें भी अपने परिवार को दे देता है, तो विरोध होना स्वभाविक है। यही पैमाना राजनीतिक स्वार्थ के लिए किसी धर्म विशेष के दुरुपयोग व धर्माधरित लाभ लेने व देने का भी है।

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मुझमें इतनी तो समझ है कि जहां अपने धर्म व जाति का सम्मान करना कोई बुरी बात नहीं, साथ ही दूसरी कास्ट या धर्म का अपमान करना उचित नहीं। चाहे नेता हो या अधिकारी जब आप न्याय की कुर्सी पर बैठते हैं, तब उसकी कोई जाति नहीं होनी चाहिए। मैं अपने सेवाकाल में कई अहम् जिम्मेदार पदों पर रहा हूँ, किसी ने मुझ पर किसी कास्ट या धर्म के आधार पर भेदभाव का कभी कोई आरोप तो नहीं लगाया। हाँ, यदि मेरी जाति के लोग मुझसे प्रेम करते हैं, सम्मान देते हैं तो इसमें मेरा क्या दोष है। क्या मैं उनका इसलिए तिरस्कार कर दूं कि वे मेरी जाति के है 6? कोई ऐसा दिखावा करता है तो यह ढोंग करना होगा।

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दोस्तों ! मैं सभी जातियों व धर्मों का समान सम्मान करता हूँ, लेकिन दिखावे के किए किसी का अतिरिक्त सम्मान/तुष्टिकरण या किसी अन्य का असम्मान नहीं करता। धिक्कार तो उन नेताओं को करना चाहिए जो प्रदेश व देश स्तर पर पद तो बड़े-बड़े पा गए लेकिन ‘दिल व दिमाग़’ से रहे हमेशा एक ‘जाति विशेष’ के नेता भर, न्याय की कुर्सी पर बैठकर भी कभी अपनी ‘जाति’ से बाहर नहीं निकल पाए । अब यहां किसी विशेष व्यक्ति या व्यक्तियों नाम लेना उचित नहीं है। नहीं तो कुछ सिर फिरे गाली गलोंच पर उतारू हो जाएंगे।
जय हिंद-जय भारत।

(रिटायर्ड आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)