आस्था और राजनीति का आपराधिक गठजोड़ !

राम रहीम : समझ में नहीं आता कि अध्यात्म गलत है कि “पिता जी की माफी” देने की उदारता, या फिर राजनेताओं और अधिकारियों का “ब्रह्मज्ञान”।

New Delhi, Aug 28 : डेरा सच्चा सौदा के मुखिया बाबा राम रहीम के खिलाफ बलात्कार के मामले में फैसला आने के मात्र २४ घंटे पहले हरियाणा के शिक्षा मंत्री राम बिलास शर्मा ने मीडिया को बताया “जाब्ता फौजदारी (सी आर पी सी) की धारा १४४ डेरा के अनुयाइयों पर लागू नहीं होती. वे तो हमारी सरकार के अतिथि हैं जिनके लिए भोजन-पानी की व्यवस्था हमारा दायित्य है. ये तो इतने शांतिप्रिय लोग हैं कि ये एक पत्ता भी नहीं तोड़ सकते ”. मंत्री ने सन २०१४ में हुए विधान-सभा चुनाव में जीत के बाद मंत्री पद की शपथ में कहा था “मैं भारत के संविधान में सच्ची श्रद्धा व निष्ठा रखूंगा”. १५६ साल पुरानी इस धारा में “किसी भी व्यक्ति” (अर्थात किसी को छूट नहीं) लिखा है. राज्य सरकार इस केंद्र के कानून में कोई संशोधन नहीं कर सकती. इस मंत्री सहित राज्य के तीन मंत्रियों ने डेरा को कुल एक करोड रुपये का अनुदान दिया है जिसमें इस मंत्री द्वारा पिछले माह दिया गया ५० लाख का अनुदान भी शामिल है. प्रजातंत्र का दुर्भाग्य यह है कि अदालत द्वारा बाबा को बलात्कारी करार देने के कोर्ट के फैसले से गुस्साये लाखों “शांतिप्रिय अनुयाइयों” द्वारा की गयी हिंसा रोकने में असफलता के आरोप में पंचकुला के पुलिस उपाधीक्षक को निलंबित किया गया.

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बताया जाता है कि जब विधान सभा का चुनाव हो रहा था तो उस दौरान भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं ने बाहों पर टैटू बनवाये इस आधुनिक बाबा से मदद मांगी और बाबा ने सार्वजनिकरूप से आशीर्वाद के रूप में समर्थन की घोषणा की. इसके पहले कांग्रेस और इनेलो रात के अँधेरे में यह सब करती थी और बाबा भी गुपचुप रूप से अनुयाइयों को आदेश देते थे. यह २०१४ के चुनाव में पहली बार हुआ कि किसी राजनीतिक दल ने सार्वजानिक रूप से इस डेरा से मदद माँगी और बलात्कार और हत्या के आरोपी इस मॉडर्न बाबा ने उतने हीं सार्वजनिकरूप से मदद का ऐलान भी किया. इसके बाद पार्टी के एक केन्द्रीय नेता के साथ ४४ पार्टी प्रत्याशी बाबा के यहाँ मदद के मदद की औपचारिक याचना के लिये गए. जीतने वाले ४४ प्रत्याशियों में १९ बाबा के मदद के बगैर शायद न जीत पाते लिहाज़ा ये सभी सार्वजानिक रूप से बाबा के यहाँ सजदा करने जाने लगे. इनमें पार्टी के राज्य इकाई के अध्यक्ष भी हैं. मंत्रियों में होड़ लगी कि कौन कितना अनुदान दे सकता है. इसकी परिणति मंत्री के इस बयान से हुई कि बाबा के अनुयाई पर दफा १४४ लागू हीं नहीं होती. जाहिर है यह दफा निष्प्रभ रही और लाखों लोग (अनुयाइ) पंचकुला में हिंसा का तांडव कर सके. उन्हें मालूम था बाबा के हाथ कितने लम्बे हैं. देश के ३६ वी आई पी लोगों में राम रहीम भी है जिसे “जेड” केटेगरी की सुरक्षा हमारे –आपके पैसों से दी गयी है और हमारे आप के पैसों से हीं बाबा अपनी प्राइवेट आर्मी भी रखता है.

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बाबा जब अपनी गुफा में किसी साध्वी” से बलात्कार करता था और वह विरोध करती थी तो बाबा इसी “लम्बे हाथ” से डराता था. यह बात उस साध्वी ने अदालत को बताई. जाहिर है अगर मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री बाबा के यहाँ जा कर सजदा करेंगे तो उस बाबा को यह बात बताने की ज़रुरत भी नहीं है. राज्य और जिले का प्रशासन घास खाए नहीं बैठा रहता है उसे मालूम है नए माहौल में कानून के नहीं बाबा के हाथ लम्बे हैं और उन हाथों की पहुँच ऊपर याने दिल्ली तक है. आरोप लगाने की हिम्मत ( या हिमाक़त ) करने वाली यह साध्वी क्यों नहीं समझ पाई इस बात को जो बड़े बड़े आई ए एस और आई पी एस हीं नहीं मंत्री और मुख्यमंत्री सरकार बदलने के २४ घंटों में हीं समझ गए?

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लेकिन इस साध्वी को वह “ब्रह्मज्ञान” नहीं था जो अन्य को था. लिहाज़ा उसने सन २००२ में प्रधानमंत्री और हाई कोर्ट को एक गुमनाम चिट्ठी लिख कर बाबा द्वारा बलात्कार की बात लिखी. हाई कोर्ट ने संज्ञान लिया और पहले जिला जज से जांच कराई जिसमें बाबा की इन हरकतों की तरफ काफी संकेत थे. हाई कोर्ट ने इस रिपोर्ट के बाद सी बी आई जांच के आदेश दिए. हाई कोर्ट को मालूम था कि राज्य सरकार के लोगों का “ब्रह्मज्ञानं” कैसा है जो वोट के लालच में दफा १४४ को भी पुनर्परिभाषित कर देता है.
लेकिन इन ब्रह्मज्ञानियों के प्रभाव के कारण (जिसमें कांग्रेस और इनेलो के सरकारें थीं) अगले पांच साल याने सन २००७ तक सी बी आई को केस में जांच करने से रोक रखा था. लेकिन अदालत का फिर दबाव आया और तब सी बी आई के जिस अधिकारी को यह केस दिया गया वह भी साध्वी की तरह “ब्रह्मज्ञान” में कमज़ोर था. इस अधिकारी एम् नारायणन का (जो अब रिटायर्ड हो चुके हैं) कहना था कि जैसे हीं यह केस मुझे सौंपा गया मेरे एक अधिकारी मेरे पास आ कर बोले “यह केस तुम्हें इसलिए दिया जा रहा कि तुम क्लोज़र रिपोर्ट लगा दो (अर्थात बाबा को क्लीनचिट). यही दबाव कई ऊपर के अफसरों और राजनेताओं की तरफ से भी आया। अधिकारी ईमानदार था लिहाजा ब्रह्मज्ञान की कमी थी. उसने अगले दो सालों में जबरदस्त छानबीन करके इस केस को अंजाम तक पहुँचाया. इस बीच बाबा पर इस बात का भी मुकदमा चलने लगा कि इसके गुर्गों ने अपने मैनेजर को जो गवाह था मरवा दिया है.

बाबा के बलात्कार की शिकार दो आरोपी महिला भक्तों ने अदालत में अपने बयान में कहा कि “बाबा के गुफे की खुफिया दुनिया में औरतें (भक्तिन) हीं सुरक्षा गार्ड होती हैं और बाबा के बलात्कार को उस दुनिया में “पिता जी की माफी” कही जाती है. याने जिस औरत से अमुक दिन बलात्कार करना होता था उस दिन उस औरत से कहा जाता था कि आज तुम्हे “पिता जी की माफी मिलेगी”. इस आरोपी साध्वी के साथ तीन दिन “पिता जी की माफी” चलती रही और चलते-चलते बाबा ने अपने प्रभावी लम्बे हाथ की धमकी भी दी और साथ हीं अपने को भगवान् बताया. याने आरोपी को लालच और डर दिया गया कि पिता जी की माफी लेती रहो और पिताजी रुपी भगवान् तुम्हे इस माफी के साथ कहाँ से कहाँ पहुंचा देंगे नहीं. कुछ भक्तों और भक्तिनों को शायद यह ब्रह्ज्ञान भा गया. यह अलग बात है कि इस ५० वर्षीय मॉडर्न जीवन और फिल्म बनाने के शौक़ीन बाबा ने अदालत में आरोप को निराधार बताते हुए कहा कि वह नपुंसक है हालांकि वह शादी –शुदा है और उसकी दो बेटियां हैं.
डेरा सच्चा सौदा के वेबसाइट पर इस संगठन को “आध्यात्मिक” बताया गया है.

समझ में नहीं आता कि अध्यात्म गलत है कि “पिता जी की माफी” देने की उदारता; या फिर राजनेताओं और अधिकारियों का “ब्रह्मज्ञान” या फिर उन दो साध्वियों सहित सी बी आई जांच अधिकारी की बगावत जिसने “माफी” के घिनौना क्रृत्य के खिलाफ आवाज़ उठाई और फिर जांच में हकीकत बताई या या फिर हाई कोर्ट जज जिसने जाँच के आदेश दिये और सी बी आई कोर्ट जिसने बाबा को बलात्कारी करार दिया या अंत में वे लाखों भक्त जो आज भी सत्य को न समझ कर हिंसा के जरिया जाने –अनजाने में “पिता जी की माफी” प्रक्रिया को बहाल रख कर अपनी हीं परिवार के बेटियों और पत्नियों को उस कामुक गुफे की आग में झोंकना चाहते हैं.

(वरिष्ठ पत्रकार एन के सिंह के ब्लॉग से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)