ब्रिक्‍स सम्‍मेलन : मोदी ने चीन को बता दिया किसे कहते हैं घर में घुसकर मारना

ब्रिक्‍स सम्‍मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वो दुनिया के सबसे मजबूत नेता ही नहीं बल्कि बड़े कूटनीतिज्ञ भी हैं।

New Delhi Sep 04 : चीन को 15 दिन के भीतर भारत का एक और अटैक झेलना पड़ा है। पहले डोकलाम मुद्दे पर उसे मुंह की खानी पड़ी और अब आतंकवाद पर ब्रिक्‍स सम्‍मेलन में चर्चा ना करने की प्‍लानिंग धराशायी हो गई। आतंकवाद पर ब्रिक्‍स सम्‍मेलन में अपनी बात मनवाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन को ये भी दिखा दिया है कि घर में घुसकर मारना किसे कहते हैं। ब्रिक्‍स सम्‍मेलन का आयोजन इस वक्‍त शियामेन में हो रहा है। जहां पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। जबकि चीन नहीं चाहता था कि ब्रिक्‍स समिट में आतंकवाद पर कोई चर्चा हो। चीन की इस मंशा को लेकर उस पर तमाम सवाल भी खड़े हो रहे थे कि जब पूरी दुनिया आतंकवाद से जूझ रही है तो फिर इससे भागने की क्‍या जरुरत है।

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ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही दवाब का असर था कि ब्रिक्‍स सम्‍मेलन के घोषणापत्र के 48 वे पैराग्राफ में आतंकवाद की निंदा की गई। सिर्फ निंदा ही नहीं की गई बल्कि दस आतंकी संगठनों का जिक्र भी किया गया। इसमें पाकिस्‍तान के आतंकी संगठन लश्‍कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्‍मद, हिजबुल मुजाहिद्दीन के अलावा दूसरे संगठनों के भी नाम शामिल हैं। घोषणा पत्र में साफ तौर पर कहा गया है कि सभी ब्रिक्‍स देश आतंकवाद के खिलाफ मिलकर जंग लड़ेंगे। मोदी के दवाब में बने इस घोषणापत्र में चीन और पाकिस्‍तान दोनों ही फंसते नजर आ रहे हैं। एक ओर पाकिस्‍तान है जो आतंकवाद को प्रयोजित करता है और इसका इस्‍तेमाल हिंदुस्‍तान और अफगानिस्‍तान के खिलाफ करता है।

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दूसरी ओर चीन है जो आतंकवाद प्रयोजित देश पाकिस्‍तान की पैरवी करता है। पूरी दुनिया जानती है कि जैश-ए-मोहम्‍मद आतंकी संगठन है। उसका मुखिया मौलाना मसूद अजहर भारत में कई आतंकी वारदातों को अंजाम दे चुका है। भारत मसूद अजहर पर यूनाइटेड नेशन से पाबंदी लगवाना चाहता है लेकिन, चीन हमेशा से पाकिस्‍तान के चक्‍कर में आतंक के इस सरगना को बचाने की कोशिश करता है। लेकिन, अब ब्रिक्‍स सम्‍मेलन के इस घोषणापत्र के जारी होने के बाद चीन मोदी की चाल में फंस गया है। चीन अब ना तो मसूद अहजर को बचा पाएगा और ना ही पाकिस्‍तानी आतंकवाद को। ब्रिक्‍स सम्‍मेलन के घोषणापत्र में चीन भी अब ये मान चुका है कि जैश-ए-मोहम्‍मद आतंकी संगठन है। जो दशहत फैला रहा है।

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अब भला अपने ही घोषणापत्र के खिलाफ वो भविष्‍य में कैसे मसूद अहजर को बचाने की कोशिश कर सकता है।  अगर चीन ने मसूद अहजर को बचाने की कोशिश की तो वो अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर आतंकवाद को लेकर उनका चेहरा बेनकाब होगा। अगर नहीं की तो भारत की जीत तय है। यानी चीन के सामने एक ओर पहाड़ है तो दूसरी ओर खाईं। ब्रिक्‍स सम्‍मेलन के मंच पर और उसके घोषणापत्र में तालिबान, आईएसआईएस, अल-कायदा, ईस्टर्न तुर्कीस्तान इस्लामिक मूवमेंट, इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उजबेक्सितान, हक्कानी नेटवर्क, जैश-ए-मोहम्मद, टीटीपी, हिज्बुल-उत-तहरीर और, लश्कर-ए-तैयबा के नाम का जिक्र भारत के लिए बड़ी जीत है और पाकिस्‍तान की या कहें आतंकवाद की बड़ी हार है। अब चीन का दोगलापन इस मसले पर नहीं चल पाएगा।