गौरी लंकेश : फिर घायल हुई अभिव्यक्ति की आजादी !

गौरी लंकेश : कोई कैसे इतनी सम्वेदनशील और सहज महिला से इतनी घृणा कर सकता हैं? कही कोई निज़ी रंजिश का मामला तो नही था?

New Delhi, Sep 08 : गौरी लंकेश की जबसे उनकी कायराना हत्या की खबर आई तबसे बार बार यह सवाल पूछ रहा हूं। किसी मौत पर हमारी प्रातिक्रिया इस पर निर्भर करती है कि हम मृतक से कितना नज़दीकी महसूस करते हैं। यह जरूरी नही के हम मृतक को जानते हो। जिस सड़क से हम रोज़ गुज़रते है, जिस ट्रैन से हम रोज़ सफर करते है, उस पर होने वाला हादसे हमे गहराई से छूता है। “इसकी जगह मैं हो सकता था”। यह विचार किसी दूर के हादसे को हमारे बहूत नज़दीक खड़ा कर देता हैं।

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शायद इसलिए गौरी लंकेश की हत्या की खबर ने ज़्यादा गहरा असर किया। मै उनसे कई बार मिला था हालांकि अंतरंग मित्रता का दावा नही कर सकता। पिछले साल मैंगलोर में अंतिम मुलाक़ात हुई थी। गांधी जयंती पर राष्ट्रीय सोहरव को समर्पित एक संमेलन में हम एक साथ थे। सोच रहा था जब इस महीने मैंगलोर जाऊंगा तब उनसे फिर मुलाक़ात होगी इसलिए उनकी हत्या का समाचार ज़्यादा विचलित करने वाला था।
जाहिर हैं ऐसी खबर मिलते ही मन चारों दिशाओं मैं दौड़ता हैं। कोई कैसे इतनी सम्वेदनशील और सहेज महिला से इतनी घृणा कर सकता हैं? कही कोई निज़ी रंजिश का मामला तो नही था? कही इसका संबंध उनके विरुद्ध बीजेपी नेताओं द्वारा अदालत मैं मानहानि के मुकदमे से तो नहीं है? इन प्रशनो का पक्का उत्तर देना हमारे बस में नही है। यू भी हत्या के मामलों को अखबार के पन्नो या टीवी स्टूडियो की चर्चा मैं निपटा देना कोई समझदारी का काम नही है। हत्या के सुराग इखट्टा करना, आरोपियों की शिनाख्त करना और उन्हें सजा दिलाना पुलिस का काम है।

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हम एक बड़े सवाल पर सार्थक चर्चा कर सकते है। किसी भी हत्या के तीन तरह के गुन्हेगार होते है- वो जिनके हाथो से हत्या होती है, वो जो हत्या की साजिश रचते है और वो जो हत्या का माहौल बनाते हैं। पहले और दूसरे गुनहगारों की शिनाख्त करना पुलिस का काम है। लेकिन अगर तेसरे तरह के घुनेगार की पहचान हम नही करे तो हम अपना फर्ज निभाने में चूक करेंगे। अगर इस सवाल पर चुप रहेंगे तो आगें और हत्यौ का रास्ता साफ करेंगें। गोरी लंकेश सिर्फ एक व्यक्ति नही एक विचार है। उनकी हत्या जिसने भी की हो उसके पीछे एक व्यवस्था थी एक विचार था। हत्यारे व्यक्ति की शिनाख्त जब भी हो ,लेकिन हत्यारे विचार और व्यवस्था की शिनाख्त हमें ही करनी हैं।
गौरी लंकेश एक पत्रकार थी। कन्नड़ मैं छपने वाले एक समाचार पत्र ” लंकेश पत्रिके” की संपादक थी। इस अनूठे पत्र की शुरुआत उनके पिताजी पी लंकेश ने सन्न 1980 मैं की थी। लंकेश पत्रिके कोई समनये या व्यावसायिक समाचार पत्र नही है। शुरू से ही इस पत्र ने अंदिलंकारी तेवर के साथ पत्रकारिता की। सत्ता पृथिस्तान को बेनकाब करना और हाशिये की आवाज़ को बुलंद करने इस पत्रकारिता का उद्देश्य रहा है। लंकेश पत्रिके न प्रदेश और देश मैं संप्रदायक्त के खिलाफ जैम कर आवाज़ उठाई। इस के चलते बीजेपी और आरएसएस के लोगों से उनका खुला टकराव चलता रहता था। बीजेपी के स्तनिये नेताओ ने उनके खिलाफ मानहानि का मुक़तमआ किया था और अदालत मैं जीत हासील करि थी। उस मामले की अपील हाई कोर्ट मे लंबित थी। गोरी राज्ये भर मैं संप्रदायता के विरोध अभियान चला रही थी और उन्हें अपने आप को हिंदूवादी बताने वाले संघटनों से धमकियां मिलती रहती थी। अपने अंतिम इंटरव्यू मै उन्होंने कहा कि अब हत्या की धमकियां मिलना आम बात हो गयी हैं। जाहिर है ऐसे में यह सोचना सुभविक है कि इस हत्या के पीछे कही न कही हिन्दू धर्म के नाम पर दबंगई करने वाले विचार और व्यवस्था की भूमिका है।

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यह वारदात कोई अकेली घटना नही है इसे पहले महाराष्ट्र मै प्रोफेसर दाभोलकर और श्री पनसारे और कर्नाटक मैं प्रोफेसर कुलबर्गी की हत्या हो चुकी है। वे सब राजनीतिक कार्येकर्ता या पत्रकार नही थे । वो तो सिर्फ विज्ञान और तर्कशीलता के समर्थन मैं अभियान चला रहे थे। उन्हें भी हिंदुत्व के ठेकेदारों से चुनौती मिली। उनकी हत्या के दोषियों को आज भी सज़ा नही मिली है। पहली नज़र मैं गोरी लंकेश की हत्या भी इसी घड़ी का अंग प्रतीत होती है, कर्नाटक की कांग्रेस सरकार का दायत्व बनता है की वह इस पक्ष की पूरी जांच करवाएं।

लेकिन गोरी लंकेश केवल पत्रकार नही थी। वे कर्नाटक की एक अनूठी वैचारिक परंपरा की वारिस थी। कर्नाटक के बाहर के लोग इस परम्परा से उतने परिचित नही है। दरअसल कर्नाटक के साहित्यकारो पर राम मनोहर लोहिये के विचोरो का गहरा प्रभाव पड़ा था। उनसे प्रेणना लेकर शिमोगा शहर के तीन लेखको- उ र अनंतमूर्ति, पूर्णचन्द्र तेजस्वी और पी लंकेश- कन्नड़ साहित्य मैं एक नई धारा का सूत्रपात किया। इनके लेखन मै जाती व्यवस्था का विरोद, औरत के साथ गेर बराबरी का प्रतिकार,और किसान आंदोलन के साथ सहकार मुखर था। इस “नवये परंपरा” ने कन्नड़ साहित्य पर गहरी छाप छोड़ी। उनके बाद देवनूर महादेव,सिध्लिंगया और दी र नागराज सरीखे लेखको ने इस परंपरा को जिन्दा रखा। लंकेश पत्रिके इस विरासत की वाहक रही है

यह पृष्टभूमि गौरी लंकेश की हत्या को समझने के लिए प्रासंगिक है। अगर लंकेश पत्रिके अंग्रेज़ी मैं निकलती तो उनके विरोधियों को कोई फर्क नही पड़ता। लेकिन लंकेश पत्रिके जो सामान्य की भाषा मे छपती थी, उनके मुहावरे मैं लिखी जाती थी और हिन्दू संस्कृति के प्रतीकों का खुलकर प्रयोग करती थी। कर्नाटक मे बरावहीँ सदी के महान समाज सुधारक बसवण्णा के समय से ही हिन्दू समाज की गैर बराबरी और कुरीतियों के विरूद्ध संघर्ष की लंबी परंपरा रही है। यह परम्परा हिंदुत्व के ठेकेदारों को बोहत विचलित करती है। उनके लिए अंग्रेज़दा सेक्युलर बुद्धिजीवियो का मज़ाक उड़ान आसान है। लेकिन हमारी अपनी सांस्कृतिक परम्परों मैं रची बसी ऐसी पत्रकार के तीखे सवालो का जवाब देना कही ज़्यादा मुश्किल है। हिन्दू संप्रदायतावडिओ को नेहरू की हत्या मैं दिलचस्पी नही थी,उनके लिए गांधी की हत्या करना ज़रूरी था। कही न कही गोरी लंकेश के हत्या के सुराग भी यही छुपे है। उसकी हत्या उन ताकतों के लिए ज़रूरी थी जो हिंदू धर्म की सांस्कृतिक विरासत पर राजनीतिक कब्ज़ा करना चाहते है लेकिन हिन्दू धर्म और संस्कृति की सच्ची विरासत का सामना करने से डरते है।

शरद मास आरम्भ हिने से कुछ ही दिन पहले ” गौरी लंकेश ” की हत्या मैं एक और घेरा संकेत छिपा है। गोरी माँ दुर्गा का ही एक और नाम है, वही दुर्गा जो काली के नाम से भी जानी जाती है। यह महीना माँ दुर्गा के घर आगमन और वापिस लौटने का समय है। नवरात्रि और दुर्गा पूजा से पहले गोरी की हत्या कही एक घबराहट दिखता है। उधर लंकेश यानी रावण भगवान शिव के भक्त के रूप मे पुजे जाते है। देश भर मै एक तरह का हिन्दू धर्म चलाने वाले इस बात को पचा नही पाते के इसी देश मे शिव भक्त रावण की पूजा भी करते है। गोरी यानी दुर्गा अपने दूसरे रूप मै पार्वती है, शिव की संगनी कही ऐसा तो नही के शिव और पार्वती के इस संगम और नारी शक्ति से घबराई हुई व्यवस्था का गोरी लंकेश की हत्या मे हाथ हो ।

(स्वराज इंडिया के संयोजक योगेन्द्र यादव के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)