औकात में आ रहा है पाकिस्‍तान लेकिन, दोगलों पर भरोसा करना ठीक नहीं

कश्‍मीर मसले को लेकर पाकिस्‍तान अब अपनी औकात में आता हुआ नजर आ रहा है। लेकिन, उस पर आंख मूंदकर कतई भरोसा नहीं किया जा सकता है।

New Delhi Sep 09 :कश्‍मीर में पाकिस्‍तान क्‍या कर रहा है और क्‍या करवाना चाहता है ये बात किसी से छिपी नहीं है। लेकिन, बीते कुछ दिनों से पाकिस्‍तान पर आतंकवाद को लेकर अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर भारी दवाब बना है। अमेरिका लगातार उसे लतिया ही रहा है वहीं दूसरी ओर ब्रिक्‍स सम्‍मेलन में भी पाकिस्‍तान की अंतरराष्‍ट्रीय फजीहत हो चुकी है। सिर्फ चीन ही है जो आतंकवाद के मसले पर अपने निजी स्‍वार्थों के खातिर पाक को पुचकार रहा है। बहरहाल, आतंकवाद और कश्‍मीर पर अंतरराष्‍ट्रीय दवाब के चलते पाक अब अपनी औकात में आता हुआ नजर आ रहा है। पहली बार पाक आर्मी के चीफ कमर जावेद बाजवा ने कश्‍मीर मुद्दे का समाधान राजनीतिक और कूटनीतिक स्‍तर पर निकाले जाने की वकालत की है।

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हालांकि पाकिस्‍तान के पुराने ट्रैक रिकॉर्ड को देखकर उसकी बातों पर यकीन करना बिलकुल वैसा ही होगा जैसे अपने पैरों पर कुल्‍हाड़ी मारना। पाक दोगला है ये बात भी हर किसी को पता है। वो मुंह पर कुछ कहता है और पीठ पीछे कुछ और ही करता है। अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस वक्‍त पाक आर्मी के चीफ कमर जावेद बाजवा इस्‍लामाबाद में बैठकर ये बयान दे रहे थे उस वक्‍त कश्‍मीर की सरहद पर पाक आर्मी भारतीय सेना के खिलाफ बारुद उगल रही थी। क्‍या इसी तरह की शांति वो कश्‍मीर में चाहता है। अगर वाकई पाकिस्‍तान की नियत में कश्‍मीर को लेकर खोट ना होती तो उसकी कथनी और करनी में कतई फर्क नहीं होता। वो जो कहता वो ही करता।

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लेकिन, पाक कहता कुछ और है और करता कुछ और है। ये पहला मौका है जब पाक के किसी जनरल ने कश्‍मीर में शांतिपूर्ण ढ़ंग से समाधान निकालने की वकालत की हो। लेकिन, इस तरह की वकालत का क्‍या मतलब बनता है कि एक ओर बयान निकले और दूसरी ओर गोली। अगर पाक चाहता है कि कश्‍मीर का शांतिपूर्ण समाधान निकले तो इसके लिए जरुरी है कि पाक आर्मी एलओसी पर सीजफायर का उल्‍लंघन बंद करे। आतंकियों की घुसपैठ को रोके। पाक अधिकृत कश्‍मीर में पल रहे आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करे। सिर्फ शांति की बात करने से समाधान नहीं निकलेगा। पाकिस्‍तान की गजब स्थिति है विदेश मंत्री ख्‍वाजा मोहम्‍मद आसिफ तक मानते हैं कि पाक में आतंकी संगठनों को पनाह मिली हुई है। लेकिन, करता कोई कुछ नहीं है।

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ख्‍वाजा मोहम्‍मद आसिफ पाक सरकार में शामिल हैं। कोई विपक्ष के नेता नहीं है। अगर वो ही आतंकवाद के खात्‍मे के लिए कदम नहीं उठाएंगे तो कौन उठाएगा। अगर पाकिस्‍तान कश्‍मीर में शांतिपूर्ण तरीके से समाधान चाहता है कि उसे अच्‍छे और बुरे आतंकवाद में फर्क करना बंद करना होगा। वो ये नहीं कह सकता है कि बलूचिस्‍तान का आतंकवाद बुरा है और पीओके का आतंकवाद आजादी की जंग है। आतंकवाद की सिर्फ एक परिभाषा है दशहतगर्दी और बेगुनाहों की हत्‍या। सच बात तो ये है कि आतंकवाद पर अपनी नाक बचाने के लिए ख्‍वाजा मोहम्‍मद आसिफ या कमर जावेद बाजवा कितनी ही बड़ी-बड़ी बातें क्‍यों ना कर लें। लेकिन, बेहतर शुरुआत तभी होगी तब पाक से आतंकवाद का खात्‍मा होगा।