विचारों का जवाब विचार है न कि हत्या !
जिस कायर ने भी हत्या की, उसे जल्द पकड़ कर उसे उसके असली मुकाम तक पहुंचाया ही जाना चाहिए। विचारों का जवाब विचार है न कि हत्या ।
New Delhi, Sep 09 : गौरी लंकेश के पिता पी.लंकेश ने बिना विज्ञापन की पत्रिका निकालने का प्रयोग किया था और उसमें वे सफल भी रहे। गौरी लंकेश की हाल में बंगलुरू में हत्या कर दी गयी।
हत्या घोर निदंनीय है।जिस कायर ने भी हत्या की, उसे जल्द पकड़ कर उसे उसके असली मुकाम तक पहुंचाया ही जाना चाहिए। विचारों का जवाब विचार है न कि हत्या । फिलहाल गौरी के यशस्वी पिता के बारे में कुछ बातें।
कट्टर लोहियावादी पी. लंकेश का जन्म 1935 में कर्नाटका के एक गांव में हुआ था।
सन 2000 में उनका निधन हो गया।पी.लंकेश शिक्षक,कवि,लेखक,संपादक ,फिल्मकार और नाटककार थे।
कन्नड़ दैनिक ‘प्रजावाणी’ में पहले वह काॅलम लिखते थे। संपादक से मतभेद के कारण जब काॅलम बंद हो गया तो उन्होंने अपनी साप्ताहिक पत्रिका ‘लंकेश पत्रिके’ शुरू की।
उन्होंने 15 हजार रुपए की पंूजी से पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया। पहले अंक के लिए उन्होंने 13 हजार रुपए का विज्ञापन लिया था। बाद में भी कुछ अंकों में विज्ञापन छपे। पर उन्हें विज्ञापनदाताओं का संपादकीय नीति पर किसी तरह का दबाव मंजूर नहीं था। इसीलिए उन्होंने बाद में विज्ञापन छापना बंद कर दिया।
इस साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन पी.लंकेश के संपादकत्व में जून, 1980 में शुरू हुआ। 1980 के ‘गांधी अंक’ में उन्होंने अपनी पत्रिका में छापा कि विज्ञापनों के लिए हमारी पत्रिका में जगह नहीं है।हम पाठकों के सहयोग से ही इसे चलाएंगे।
1984 में साप्ताहिक ‘द वीक’ में पी.लंकेश के बारे में छपी एक रपट के अनुसार पत्रिका का सर्कुलेशन बढ़कर एक लाख हो गया। आठ पेज से बढ़ाकर इसे 20 पेज कर दिया गया। पत्रिका मुनाफे में रही। इस पत्रिका ने कर्नाटका में राजनीति व समाज पर असर डाला था।
सन 2000 में पी.लंकेश के निधन तक पत्रिका चली।
बाद में उनकी पुत्री गौरी अलग और पुत्र अलग नामों से अलग -अलग पत्रिका निकालने लगे। गौरी की हत्या के साथ ही लंकेश पत्रिका की चर्चा एक बार फिर देश भर में हुई।