पेट्रोल सौ रुपये लीटर कर दीजिए, लेकिन पहले इन सवालों का जवाब तो दीजिए !

दुनिया का सबसे खुशहाल देश नॉर्वे सबसे महंगा पेट्रोल बेचता है, पेट्रोल की कीमतों को लगातार बढ़ाये रखना विकसित मुल्कों की स्ट्रेटेजी है ताकि कारों के इस्तेमाल को हतोत्साहित किया जा सके।

New Delhi, Sep 17 : हमारे नये केंद्रीय मंत्री अल्फोंसन कन्ननधम ने पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी पर बड़ा दिलचस्प बयान दिया है. वे कह रहे हैं, पेट्रोल कौन खरीद है? वही आदमी न, जिसके पास कार है, बाइक है. ऐसा व्यक्ति निश्चित रूप से भूख से मर नहीं रहा होता है. अगर वह पैसे दे सकता है, तो उसे देना पड़ेगा. हालांकि कन्ननधम पेट्रोलियम मंत्री नहीं हैं, मगर एक कुशल और सफल प्रशासक के उनके अनुभवों को देखते हुए हम उनके बयान को एक विवादित बयान कह कर खारिज नहीं कर सकते. जरूर, यह कहते वक्त उनकी कोई सोच रही होगी. मगर, क्या उन्हें मालूम है कि जमीन हालात क्या हैं?

Advertisement

यह ठीक है कि दुनिया का सबसे खुशहाल देश नॉर्वे सबसे महंगा पेट्रोल बेचता है, पेट्रोल की कीमतों को लगातार बढ़ाये रखना विकसित मुल्कों की स्ट्रेटेजी है ताकि कारों के इस्तेमाल को हतोत्साहित किया जा सके. मगर उससे पहले इन मुल्कों ने सार्वजनिक परिवहन की बेहतरीन व्यवस्था विकसित की है, जो अपने यहां के 90 फीसदी शहरों में अभी भी सपना है. इन मुल्कों में साइकिलिंग के लिये अलग ट्रैक हैं, अपने यहां सायकल चलाते हुए लोग कब कुचल दिए जाएं कहना मुश्किल है. यहां आज भी पेट्रोल इस्तेमाल करने वाले बाइकर्स अधिक हैं. लड़कियों के लिये स्कूटी के सहारे अपने परों को फैलाने का मौसम अभी शुरू हुआ है. इसलिये मंत्री जी, पेट्रोल को नॉर्वे की कीमत तक पहुंचाने से पहले नॉर्वे जैसा माहौल बनाइये. और पेट्रोल इस्तेमाल करने वाले कौन लोग हैं, उसका जायजा राजपथ की सड़कों से उतरकर लीजिये.

Advertisement

हमारे नये केंद्रीय मंत्री अल्फोंसन कन्ननधम ने पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी पर आज बड़ा दिलचस्प बयान दिया है. वे कह रहे हैं, पेट्रोल कौन खरीद है? वही आदमी न, जिसके पास कार है, बाइक है. ऐसा व्यक्ति निश्चित रूप से भूख से मर नहीं रहा होता है. अगर वह पैसे दे सकता है, तो उसे देना पड़ेगा. हालांकि कन्ननधम पेट्रोलियम मंत्री नहीं हैं, मगर एक कुशल और सफल प्रशासक के उनके अनुभवों को देखते हुए हम उनके बयान को एक विवादित बयान कह कर खारिज नहीं कर सकते. जरूर, यह कहते वक्त उनकी कोई सोच रही होगी. मगर, उसकी बात बाद में.

Advertisement

यह सच है कि पेट्रोल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं. खास कर दैनिक मूल्य समीक्षा के लागू होने के बाद. महंगाई के विरोध में आंदोलन चला कर सरकार में आयी भाजपा का यह कदम न सिर्फ विरोधियों बल्कि उनके समर्थकों को भी हैरान कर रहा है. ऐसा नहीं है कि पेट्रोल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत अधिक हों. वहां पेट्रोल काफी सस्ता है. यहां पेट्रोल की कीमतों को तरह-तरह के टैक्स लाद कर महंगा किया जा रहा है. कल पेट्रोलियम मंत्री ने पेट्रोल की वैश्विक कीमतों की सूची जारी कर इस गुस्से पर पानी डालने की कोशिश की तो उनका दांव उल्टा ही पड़ गया. क्योंकि लोगों ने उसी लिस्ट से अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भूटान और नेपाल में पेट्रोल की कीमतें साझा करनी शुरू कर दी, जो भारत में पेट्रोल की कीमत से काफी कम थीं. हालांकि इस बीच किसी ने उस सूची में यह देखने की जहमत नहीं उठायी कि आखिर वे कौन से देश हैं, जहां पेट्रोल की कीमतें कम हैं और वे कौन से देश हैं जहां पेट्रोल महंगा बिकता है. अगर वक्त मिले तो एक बार खुले दिल और शांत दिमाग से उस सूची को फिर से देखें.

उस सूची में ऐसे मुल्कों की संख्या 104 मुल्क ऐसे हैं जिनके यहां पेट्रोल की खुदरा कीमत भारत से कम है. मगर इन मुल्कों में मानव विकास सूचकांक की दृष्टि से बेहतर कहे जाने वाले यूरोप और अमेरिका के गिने-चुने, बमुश्किल एक या दो मुल्क हैं. मुझे स्विट्जरलैंड और अमेरिका के नाम ही दिखे. जितने संपन्न देश थे, उनका नाम भारत के बाद था. दिलचस्प है कि सबसे महंगा पेट्रोल बेचने वाले मुल्क का नाम नार्वे है, जिसे मानव विकास सूचकांक की दृष्टि से सबसे बेहतर राष्ट्र माना जाता है. जो पेट्रोलियम पदार्थों के निर्यातकों की सूची में पांचवें नंबर पर है. मगर वहां भारतीय मुद्रा के हिसाब से पेट्रोल की कीमत 130 रुपये से भी अधिक है. पता चला कि वहां की सरकार लगातार पेट्रोल की कीमतें बढ़ा रही हैं. अपना सारा पेट्रोल दूसरों को बेच रही हैं. पब्लिक खूब विरोध कर रही है, मगर सरकार मानने को तैयार नहीं है, क्योंकि वह पर्यावरण की दृष्टि से बेहतर दुनिया बनाने को कृतसंकल्पित है और लोगों को अपनी कार घर पर रखने के लिए विवश कर रही है.

इस सूची में दूसरा नाम हांगकांग का है, तीसरा आइसलैंड, चौथा नीदरलैंड, छठा डेनमार्क, सातवां ग्रीस, आठवां इटली, दसवां स्वीडन, बारहवां इजराइल. इन तमाम मुल्कों में पेट्रोल की खुदरा कीमत सौ रुपये प्रति लीटर से अधिक है. जाहिर है कि ये मुल्क अपनी छोटी सी आबादी को आसानी से बहुत सस्ता पेट्रोल उपलब्ध करा सकते हैं, मगर नहीं कराते. क्यों? ये जानबूझकर पेट्रोल को महंगा करने में जुटे हैं. वजह वही है. ये चाहते हैं कि लोग कारों का इस्तेमाल कम करें. पब्लिस ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करें. कार पूलिंग करें. साइकिलिंग करें, पैदल चलें. इससे उनकी सेहत भी बेहतर होगी और धरती की. यानी महंगा पेट्रोल बेचना विकसित देशों का नया ट्रेंड है.

मगर क्या अपना देश. मोदी जी की सरकार, इसी ट्रेंड को फॉलो कर रही है? क्या यहां की सरकार भी पर्यावरण की फिक्र में पेट्रोल महंगा किये जा रही है? यह कहना मुश्किल है. क्योंकि ऐसा करने से पहले सरकार को एक अभियान चला कर लोगों को बताना चाहिए था कि उसका यह मकसद है. उसे पूरे देश में सार्वजनिक परिवहन का बेहतर नेटवर्क खड़ा करना चाहिए था. उसे कार पूलिंग के अभियान को शुरू करना चाहिए था, जैसा केजरीवाल ने दिल्ली में ऑड-इवन योजना चला कर किया था. मगर सरकार ऐसा कुछ नहीं कर रही. वह सिर्फ कीमतों को बढ़ाये जा रही है और अपना खजाना भर रही है. और हम सब जानते हैं कि मौजूदा सरकार के खजाने पर पहला हक किनका है? उद्योगपतियों, व्यापारियों और ठेकेदारों का. मंत्रियों और राजनेताओं का. खजाना बढ़ेगा तो परियोजनाएं बनेंगी और फिर लूट का सिलसिला चलेगा.

मैं इस बात से आज की तारीख में पूरी तरह मुतमइन हूं कि पेट्रोल की कीमत को बढ़ा कर सौ रुपये लीटर कर देना चाहिए, मगर उससे पहले उस युवक को सस्ता और सुलभ परिवहन उपलब्ध कराना चाहिए जो रोज अपने फटफटिया पर दो क्विंटल दूध लाद कर शहर लाता है और रोजगार करता है. उस महिला शिक्षिका के लिए यातायात की सुविधा होनी चाहिए जो रोज पूर्णिया से चालीस किमी दूर जाकर स्कूल में बच्चों को पढाती हैं. उस सेल्समैन के लिए सुलभ परिवहन व्यवस्था चाहिए जो रोज अपनी बाइक पर सामान लाद कर दुकान-दुकान पहुंचाता है. यह सिर्फ कार चलाने वालों की बात नहीं है मंत्री जी. इस देश की बड़ी आबादी आज मोपड, स्कूटी, बाइक पर इसलिए चलती है, ताकि वह समय से अपने दफ्तर पहुंच सके. फील्ड जॉब कर सके. व्यापार कर सके. सौ रुपए या डेढ़ सौ रुपये लीटर पेट्रोल निश्चित रूप से उसके बजट पर असर डालेगा.

इसी वजह से अफगानिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, भूटान जैसे गरीब मुल्कों ने सब्सिडी के जरिये पेट्रोल की कीमतों को नियंत्रित कर रखा है. ताकि उसकी गरीब आबादी आगे बढ़ने के बेहतर साधनों का इस्तेमाल कर सके. आज स्कूटी की बिक्री बाइक की बिक्री संख्या को पार कर रही है, क्योंकि स्कूटी सिर्फ वाहन नहीं स्त्रियों से घर से बाहर अकेले घूमने का उपकरण है. वह बदलाव का प्रतीक बन गया है. इसे अभी मत रोकिए. पहले दिल्ली जैसा मेट्रो हर बड़े शहर में बन जाने दीजिये, हर छोटे शहर में सस्ती औऱ सुगम सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को आकार लेने दीजिये, फिर पेट्रोल की कीमत डेढ़ सौ रुपये लीटर भी कर लेंगे तो लोग इतना विरोध नहीं करेंगे.

(वरिष्ठ पत्रकार पुष्य मित्र के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)