कश्मीर में असर दिखा रहा है मोदी का ‘गुस्सा’, आर्मी के CASO से लावारिस हुआ ‘लश्कर’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कश्मीर नीति रंग लाती हुई नजर आ रही है। आतंकियों के खिलाफ मोदी सरकार ने आर्मी को यहां खुली छूट दे रखी है।
New Delhi Sep 20 : कश्मीर में बेशक अब तक पूरी तरह शांति स्थापित ना हुई हो लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीति यहां पर रंग लाती हुई नजर आ रही है। मोदी सरकार घाटी में मौजूद आतंकी संगठनों के खात्मे का संकल्प ले चुकी है। इंडियन आर्मी को आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए खुली छूट दी जा चुकी है। इसी छूट का नतीजा है कि इस साल घाटी में सबसे ज्यादा आतंकी एनकाउंटर में मारे जा चुके हैं। सुरक्षा बलों के CASO (Cordon and Search Operations) का खौफ अब आतंकी संगठनों में साफ तौर पर दिखने लगा है। स्थिति है कि अबू इस्माइल के एनकाउंटर के बाद अब घाटी में कोई भी लश्कर-ए-तैयबा की कमान संभालने को तैयार नहीं है। हाफिज सईद को कश्मीर के लिए एक भी कमांडर नहीं मिल रहा है।
हर आतंकी के जेहन में इस बात का डर बैठ गया है कि लश्कर की कमान संभालते ही सुरक्षाबलों के जवान उसे मार गिराएंगे। ये बात हवा हवाई नहीं है। इस बात का खुलासा खुद जम्मू-कश्मीर के डीजीपी एसपी वैद्य ने किया है। एसपी वैद्य का कहना है कि अबू इस्माइल के मारे जाने के बाद से लश्कर-ए-तैयबा में कश्मीर कमांडर की पोस्ट के लिए वेकेंसी है। लेकिन, अब तक एक भी आतंकी ने इस पोस्ट के लिए अप्लाई नहीं किया है। हालांकि ऐसा नहीं है कि इंडियन आर्मी कश्मीर में मौजूद आतंकी या फिर भटके हुए युवाओं को सुधरने का कोई मौका नहीं दे रही है। इंडियन आर्मी और जम्मू-कश्मीर की पुलिस की ओर से ऐसे युवाओं से लगातार मुख्यधारा में शामिल होने की अपील की जा रही है कि जिन्होंने पाकिस्तान और अलगाववादी नेताओं के बहकावे में आकर आतंक का रास्ता अख्तियार कर लिया था।
मोदी सरकार की कश्मीर नीति अभी दो प्रमुख रास्तों पर चल रही है। दोनों ही रास्ते समानंतर चल रहे हैं। एक ओर घाटी में खुफिया नेटवर्क मजबूत कर आतंकियों के खिलाफ CASO (Cordon and Search Operations) शुरू किया जा रहा है वहीं दूसरी ओर ये भी पता लगाया जा रहा है कि किस घर का युवा आतंकी संगठनों से जा मिला है। ऐसे युवाओं के मां-बाप और पत्नी बच्चों से अपील की जा रही है कि वो अपने चहेते को समझाएं। अच्छे बुरे का फर्क बताएं। आतंक का रास्ता उन्हें सिर्फ मौत के मुहाने पर ले जाएगा। जबकि अगर वो हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होते हैं तो बेहतर जिदंगी जीने के कई सुनहरे मौके मिलेंगे। ये बात लोगों की समझ में भी आ रही है। कई मामलों में आतंकियों ने सुरक्षाबलों के सामने समर्पण भी किया है।
जम्मू-कश्मीर की पुलिस अपने इस विशेष अभियान के तहत साठ से ज्यादा युवाओं को आतंकवाद के रास्ते पर जाने से बचा चुकी है। ऐसे युवाओं की काउंसलिंग की जा रही है। ताकि वो अपने दूसरे साथियों को भी समझा सकें। वहीं दूसरी ओर हार्डकोर आतंकी संगठनों और आतंकियों में मोदी सरकार का खौफ अब बैठ चुका है। ऐसे आतंकियों को पता है देर-सवेर वो भी मारे जाएंगे। लेकिन, कश्मीर में मौजूद पाकिस्तानी आतंकियों की अपनी मजबूरी है। खुफिया विभाग के लोग बताते हैं कि पाकिस्तान से आए आतंकी अगर कश्मीर में जिंदा पकड़े जाते हैं या फिर वो सुरक्षाबलों के सामने सरेंडर करते हैं तो पाक में उनके परिवार की सुरक्षा खतरे में पड़ती है। इसलिए उनके पास फौज से लड़ने और मरने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता। फिर भी वो जीना चाहते हैं। शायद यही वजह है कि कश्मीर में आज लश्कर का कोई भी कमांडर नहीं बनना चाहता है।