मोदी जी, आपकी कृपा से 40 साल सेवा के बाद 1 हजार रुपये पेंशन पाने लगा हूं !

मोदी जी, हमारी बिरादरी पर नजरें इनायत कीजिए. आप जानते हैं कि किस कदर हमारे जैसे लोगों ने तथाकथित प्रगतिशीलों के हाथों गत चार दशकों के दौरान अपमान झेला है।

New Delhi, Sep 20 : यह आग्रह मैं देश के प्रधानमंत्री मोदी से ही नहीं काशी के सांसद से भी कर रहा हूं. सवा तीन बरस हो गए आपको बाबा विश्वनाथ के बतौर अधिकृत प्रहरी निर्वाचित हुए. इस दौरान आपका कई बार काशी आगमन हुआ. आपने अपने प्रवास में मीडिया से भी बात की. उनको रात्रि भोज पर भी आमंत्रित किया. लेकिन जिस मीडिया को आपने बुलाया वह वाकई बहुत ताकतवर जमात है जो सरकार में भी अपनी गहरी पैठ रखती है. सच तो यह कि मीडिया और संपादको के नाम पर या तो अखबार स्वामी या उनके मैनेजर ही आपकी दावत में शरीक हो सके. मगर हिंदी पत्रकारिता के शिखर पुरुष पं बाबू राव विष्णु राव पराड़कर की कर्मभूमि के पत्रकारों को कभी भी आपके साथ संवाद का कोई एक अवसर भी अभी तक नहीं मिला है.

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मीडियाकर्मी यानी हम श्रमजीवी पत्रकार कहीं से भी चौथा खंभा नहीं हैं. हम तो समाज का ऐसा सबसे कमजोर तबका हैं जो दूसरों के लिए भले ही पन्ने रंग देता हो मगर खुद के लिए बोल भी नहीं सकता. हम निरीह, बेबस और निस्सहाय पत्रकार बिरादरी ने आप पर टकटकी लगा रखी है कि एक बार अपने संसदीय क्षेत्र के पत्रकारों और गैर पत्रकारों की पीड़ा – वेदना से आप जरूर रूबरू होंगे. आपका 22 सितम्बर को काशी आगमन हो रहा है. अपने इस 22 घंटे के प्रवास में आप सिर्फ एक घंटा हमें दें. हमारा पराड़कर भवन आपकी मेजबानी के लिए प्रतीक्षारत है.

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आपको बताना चाहते हैं कि अखबारों में हम किस कदर नारकीय यंत्रणा भोग रहे हैं. जिस कर्मी को कम से तम एक लाख मिलना चाहिए था उसे पांच हजार भी नसीब नहीं हो रहा है और नगर के भूमाफिया के रूप में उनकी अलग पहचान बन चुकी है. आप विश्वास नहीं करेंगे कि पत्रकारों से यह लिखवा कर श्रम विभाग को भेज दिया जाता है कि हमे जरूरत से ज्यादा वेतन मिल रहा है, बढ़ी राशि नहीं चाहिए. क्या ऐसा संभव है ? लेकिन यही हो रहा है. दुनिया के सबसे ज्यादा बिक्री वाले अखबार का दावा करने वाला समूह हर वेतन आयोग के समय कोर्ट में गया कि हम बढ़ा वेतन नहीं दे सकते. आप कानूनों को बदलने में लगे हैं और कितने ही गैरजरूरी कानून हटाए भी जा चुके हैं. अब बारी श्रम विभाग की आनी चाहिए जो कर्मचारी हित के लिए नहीं मालिक हित के लिए काम करता है. मजीठिया वेतन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने 2011 मे ही अधिसूचना जारी कर दी थी मगर कोर्ट ओर सरकार दोनो को ठेंगे पर रखने वाले असीम बलशाली अखबार मालिकों की हठधर्मिता देखिए कि आज तक कर्मचारियों को भुगतान नहीं किया गया. उल्टे कितनों की नौकरी जरूर ले ली गयी.
हम पत्रकार चार दशक की सेवा के बाद जानते हैं कि आपकी कृपा से एक हजार सालाना पेंशन पाने लगे हैं जो पहले तीन अंको में हुआ करती थी. हिंदी के चार राष्ट्रीय अखबारों का खेल प्रभारी रह चुका यह नाचीज आपके सत्तसीन होने के पहले 35 वर्षों की सेवा के बावजूद मात्र 760 रुपये मासिक पेंशन पाता था जिसमें कोई चाय भी नहीं पी सकता.

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प्रभु हमारी बिरादरी पर नजरें इनायत कीजिए. आप जानते हैं कि किस कदर हमारे जैसे लोगों ने तथाकथित प्रगतिशीलों के हाथों गत चार दशकों के दौरान अपमान झेला है. हमें हाफ पैंटियर बोला जाता था. तब उनका सरकार में भी बोलबाला था. मगर आज हालात बदल चुके हैं और वे वामपंथी हाशिए पर हैं कम से कम मीडियाकर्मियों की जहां तक बात है. आज हम आपकी नीतियों के सिर्फ समर्थक हैं. हमें भक्त कहा जाता है. सोशल मीडिया पर जंग लड़ी जा रही है. आपके पक्ष में बहुत बड़ा तबका सामने आ चुका है. बस उसे बल आपसे ही मिल सकता है. एक बार इन मालिकों पर आपने नकेल कस दी तो देखिएगा कि आपकी विकासोन्मुख नीतियों के लिए हमारी बिरादरी किस कदर मुखर होकर सामने आने की कूव्वत रखती है.
एक बार पुन: आपसे करबद्ध प्रार्थना है कि हमारे पत्रकार संघ का आतिथ्य स्वीकार कर हमारी पीड़ा सुने. हमारे जैसे आपके आजीवन आभारी रहेंगे. इस संदर्भ मे संघ की ओर से औपचारिक निमंत्रण आपको भेजा जा चुका है.

(वरिष्ठ पत्रकार पद्मपति शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)