बिहार कांग्रेस का हाल देख महाराष्‍ट्र में डरे शिवसेना के विधायक, ठाकरे से बगावत !

महाराष्‍ट्र में शिवसेना लगातार बीजेपी से गठबंधन तोड़ने की धमकी दे रही है। लेकिन, उद्धव ठाकरे की ये धमकी अब उन्‍हें ही भारी पड़ती नजर आ रही है।  

New Delhi Sep 21 : बिहार का हाल हर किसी ने देखा है। 2015 में जब यहां विधानसभा के चुनाव हुए तो जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस ने महागठबंधन कर सरकार बनाई थी। जेडीयू को 71 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। जबकि आरजेडी 80 सीटों पर चुनाव जीती थी। कांग्रेस के पास 27 विधायक थे। बीजेपी ने 53 सीटें हासिल कर विपक्ष में बैठना ही मुनासिब समझा था। लेकिन, भ्रष्‍टाचार के मुद्दे पर बीस महीने के भीतर ही बिहार का महागठबंधन टूट गया। जेडीयू 71 सीटों के साथ बीजेपी के पाले में चली गई और फिर से सरकार बना ली। महागठबंधन टूटने के बाद यहां पर सबसे ज्‍यादा दुगर्ति कांग्रेस के विधायकों की हुई। 27 विधायक होने के बाद भी उन्‍हें पूछने वाला कोई नहीं है। बिहार कांग्रेस का हर्ष महाराष्‍ट्र में शिवसेना के विधायकों को भी परेशान कर रहा है। शिवसेना के 25 ऐसे विधायक हैं जो नहीं चाहते हैं कि उद्धव ठाकरे की तानाशाही चले।

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अगर उद्धव ठाकरे महाराष्‍ट्र में बीजेपी के साथ अपना गठबंधन तोड़ने का फैसला लेते हैं तो शिवसेना के ये 25 विधायक भी बगावत के लिए तैयार बैठे हैं। दरअसल, अभी सोमवार को ही शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अपने घर मातोश्री में पार्टी के सभी विधायकों की मीटिंग बुलाई थी। लेकिन, 63 में 25 विधायक ऐसे थे जो उद्धव ठाकरे के फैसले से सहमत नहीं हैं। हालांकि अभी महाराष्‍ट्र में दोनों ही दलों का गठबंधन बरकरार है। लेकिन, गठबंधन की डोर इतनी कमजोर हो चुकी है कि किसी भी वक्‍त टूट सकती है। ये बात राज्‍य के मुख्‍यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को भी पता है। शायद यही वजह है कि वो कह चुके हैं क‍ि अगर राज्‍य में गठबंधन टूटता है तो वो मध्‍यावधि चुनाव के लिए तैयार हैं। लेकिन, इस मसले पर तो शिवसेना में ही बगावत शुरु हो गई है।

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शिवसेना के ये विधायक चाहते हैं कि महाराष्‍ट्र में गठबंधन ना टूटे। इन विधायकों को पता है कि अगर राज्‍य में मध्‍यावधि चुनाव हुए तो वो चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं हैं। अगर लड़ भी लिया तो चुनाव जीतना मुश्किल होगा। साल 2014 के विधानसभा चुनाव में यहां पर भारतीय जनता पार्टी ने 122 सीटों पर जीत हासिल की थी। जबकि शिवसेना के सिर्फ 63 विधायक ही चुनाव जीत पाए थे। 42 सीटें कांग्रेस के खाते में गई थीं। 41 सीटों पर एनसीपी ने जीत दर्ज की थी। अब जरा यहां का चुनावी गणित भी समझ लीजिए। महाराष्‍ट्र में विधानसभा की कुल 288 सीटें हैं। यानी सरकार बनाने के लिए किसी भी दल को बहुमत के लिए 145 विधायक चाहिए। बीजेपी के पास अभी 122 अपने विधायक हैं। बहुमत के लिए उसे सिर्फ 23 विधायकों की और जरुरत है। जबकि 25 शिवसेना में बगावत के लिए तैयार बैठेे हैं।

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25 का ये आंकड़ा 63 विधायकों में एक तिहाई से ज्‍यादा है। यानी अगर शिवसेना के संभावित बागी विधायक बीजेपी में शामिल भी होते हैं तो उन पर दल-बदल कानून के तहत भी कार्रवाई नहीं हो सकती है। शिवसेना की ओर से गठबंधन टूटने की सूरत में भी स्‍पष्‍ट तौर पर बीजेपी आसानी से सरकार बना सकती है। एक मिनट को अगर ये भी मान ले कि शिवसेना में कोई टूट नहीं होती है तो भी बीजेपी एनसीपी के साथ आसानी से सरकार का गठन कर सकती है। एनसीपी बीजेपी के साथ गठबंधन कर सकती है इस बात की संभावना खुद शिवसेना के मुखपत्र सामना में जताई जा चुकी है। अगर मध्‍यावधि चुनाव होते हैं तो भी बीजेपी को कोई नुकसान नहीं है। ऐसे में उद्धव ठाकरे की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। ये बात उन्‍हें भी सता रही होगी कि अगर कहीं गठबंधन टूट गया और बिना चुनाव के बीजेपी ने सरकार बना ली तो यकीनन शिवसेना का हाल बिहार कांग्रेस की तरह ही होगा।