क्या स्टार्ट अप इंडिया भी बोगस निकला ?

आप मीडिया स्पेस देखिए, स्टार्ट अप के नाम पर कितने लोग फोटो खींचा रहे हैं। एक अफसर तो हीरो ही बन गए हैं। कोट के पाकेट में रूमाल डाले बिना तो वे बात नहीं करते।

New Delhi, Sep 25 : 23 सितंबर के इंडियन एक्सप्रेस में एक ख़बर है। जनवरी 2016 में यह स्लोगन लांच हुआ था स्टार्ट अप इंडिया। भारत सरकार ने नए उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए दस हज़ार करोड़ का फंड बनाने का एलान किया था। इसकी सबने सराहना की थी और यह वाकई अच्छा कदम था। क्या आपको पता है कि इस दस हज़ार करोड़ में से मात्र 62 स्टार्ट अप को मात्र 70 करोड़ का फंड दिया गया है।

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इंडियन एक्सप्रेस के अनिल ससी लिखते हैं कि इस योजना के तहत डिपार्टमेंट आफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी और प्रमोशन ने सिडबी संस्था को मात्र 600 करोड़ का फंड दिया है। इसमें से 62 स्टार्ट अप को मात्र 33.63 करोड़ ही मार्च 2017 तक वितरित किए गए हैं। सितंबर तक 69.5 करोड़ ही दिए गए हैं।
आप कहेंगे कि मंशा अच्छी थी। बिल्कुल अच्छी थी। मगर नतीजा क्या निकला? आप मीडिया स्पेस देखिए, स्टार्ट अप के नाम पर कितने लोग फोटो खींचा रहे हैं। एक अफसर तो हीरो ही बन गए हैं। कोट के पाकेट में रूमाल डाले बिना तो वे बात नहीं करते। बाकी एक्सप्रेस की रिपोर्ट आप ख़ुद भी पढ़ें।

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आज के बिजनेस स्टैडर्ड में पहली ख़बर यह है कि सरकार ब्याज़ दरें कम करने की बैटिंग करने जा रही है। सरकार बैटिंग ही कर रही है मगर रन नहीं बन रहा है। कहीं ये अंशुमन गायकवाड की तरह बल्लेबाज़ न निकले तो कई दिनों तक क्रीज़ पर रहते थे मगर रन नहीं बनाते थे। इस बल्लेबाज़ी का एक ही मक़सद है, क्रीज़ पर टिके रहने का सारा इंतज़ाम कर लो। सीबीआई आयकर लगाकर विपक्ष को ख़त्म कर दो और डरा दो। फिर कहलवाओं कि विपक्ष कहां है। जांच एजेंसियों को सत्ता पक्ष के भीतर से कोई मिलता ही नहीं है। वहां सारे साधु संत हैं।
आर्थिक स्थिति हमेशा एक समान नहीं रहती। बदलती भी है। अभी जो नहीं हो रहा है, वो तीन साल की नारेबाज़ी और विज्ञापनबाज़ी का नतीजा है। ये हम सबके लिए ठीक नहीं है। किसी सेक्टर से तो अच्छी ख़बर आए। कहां तो 9 फीसदी जीडीपी से कम के दावे नहीं होते थे, कहां अब बात आर्थिक पैकेज देकर अर्थव्यवस्था को धक्का देने की होने लगी है।

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इसीलिए कह रहा हूं कि किसी बड़े ईवेंट, भाषण या आस्था आहत वाले मुद्दों के लिए तैयार रहिए। बिना उसके कुछ नहीं होगा। जो बेरोज़गार हैं, pic- pm modiवो टीवी देखें और विज्ञापन तो ज़रूर देखें क्योंकि पिछली सरकार की तुलना में इस सरकार के विज्ञापन बहुत अच्छे होते हैं।

(NDTV से जुड़ें चर्चित वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)