एलफिन्स्टन रेलवे ब्रिज की त्रासदी : ये हादसा नहीं सरकारी हत्‍या है !

मुंबई के एलफिन्स्टन रेलवे ब्रिज पर जो कुछ भी हुआ वो बहुत ही दर्दनाक और विचलित करने वाला है। शायद रेलवे को सालों से इसी दिन का इंतजार था।

New Delhi Sep 29 : बेहद अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि सरकार की आंखे बड़े हादसों के बाद ही खुलती हैं। समस्‍याएं सरकारों के सामने होती हैं लेकिन, सरकारें इंतजार करती हैं कि कोई हादसा हो। फिर हम जागेंगे। मुंबई के एलफिन्स्टन रेलवे ब्रिज पर भी ऐसा ही कुछ हुआ। यहां से गुजरने वाले यात्री लगातार सोशल मीडिया पर सरकार को अलर्ट कर रहे थे उन्‍हें बता रहे थे ये ब्रिज कभी भी बड़े हादसे की वजह बन सकता है। लेकिन, रेलवे हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा। घंटों ट्विटर और फेसबुक पर पर्सनल चैटिंग करने वाले रेलवे के अफसरों को दो दिन पहले की वो पोस्‍ट नहीं दिखाई दी जिसमें हादसे की आशंका जताई गई थी। जबकि इस पोस्‍ट को रेलवे के सोशल नेटवर्किंग पर टैग किया गया था।

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हो सकता है कि रेलवे के अधिकारी ये दलील देते फिरे की दो दिन पहले की जिस पोस्‍ट को लेकर उन पर निशाना साधा जा रहा है उसमें वो इतने कम वक्‍त में क्‍या कर सकते हैं। लेकिन, बात सिर्फ दो दिन पहले की नहीं है। दो साल पुरानी भी है। जब एलफिन्स्टन रेलवे ब्रिज के खस्‍ताहालात को लेकर शिवसेना के दो सांसदों ने तत्‍कालीन रेलमंत्री सुरेश प्रभु को खत लिखा था। लेकिन, मंत्री जी ने उस वक्‍त ही कह दिया कि हमारे पास तो इसे चौड़ा करने के लिए पैसे ही नहीं हैं। अब 22 लोगों के मौत का जिम्‍मेदार किसे माना जाए ? रेलवे क्‍यों नहीं मानता है कि उससे इस मामले में भी दूसरे मामलों की तरह भारी चूक हुई है ? उसकी लापरवाही के चलते ही 22 लोगों की जिदंगी पैरों तले रौंद दी गई।

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दो दिन पहले ही मुंबई के एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन पर बने फुट ओवर ब्रिज को लेकर पत्रकार संतोष आघले ने सभी को आगाह किया था। एक पत्रकार दो दिन पहले ही आशंका जता सकता है लेकिन, जिम्‍मेदार रेलवे को ये सारी दिक्‍कतें नहीं दिखतीं। सभी ने 22 लोगों की मौत पर शोक जाहिर कर दिया लेकिन, इतने भर से काम नहीं चलेगा। क्‍योंकि ये हादसा कम और सरकारी हत्‍या ज्‍यादा है। एलफिन्स्टन रेलवे ब्रिज को लेकर शिवसेना के दो सांसदों ने साल 2015 और16 में इसे चौड़ा करने के लिए खत लिखा था। ये खत शिवसेना सांसद राहुल शिवाले और अरविंद सावंत ने रेल मंत्री को लिखे थे। तब जानते हैं आप कि सुरेश प्रभु ने क्‍या कहा था। उन्‍होंने कहा था कि ग्‍लोबल मार्केट में मंदी चल रही है। आपकी शिकायत तो सही है लेकिन, फंड की कमी है।

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मंत्री जी, क्‍या कभी रेलवे में सफर करने वाले एक भी व्‍यक्ति ने मंदी का हवाला देते हुए ट्रेन में बिना टिकट सफर किया है ? नहीं ना ? रेलवे की ओर ये जब-जब किराया बढ़ाया मुसाफिरों से उसे अदा किया है। मुंबई में हजारों लोग रोजाना एलफिन्स्टन रेलवे ब्रिज का इस्‍तेमाल करते हैं। वो यहां फोकट में घूमने नहीं आते हैं। रेल का भाड़ा अदा कर एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं। सरकार उन पर कोई एहसान नहीं करती है। फिर आप मुसाफिरों की नजर में ग्‍लोबल मंदी रेल यात्रियों की जान से ज्‍यादा जरुरी कैसे हो सकती है ? इस बात का जवाब ना तो पूर्व रेल मंत्री सुरेश प्रभु के पास होगा और ना ही मौजूदा रेल मंत्री पीयूष गोयल के पास होगा। इतना बड़ा होने के बाद ये ब्रिज ठीक भी होगा चौड़ा भी होगा। मृतकों को मुआवजा भी दिया जाएगा। लेकिन, जिन लोगों ने इस ‘सरकारी हत्‍या’ में अपनों को खो दिया है कि क्‍या वो कभी लौटकर वापस आ पाएंगे ? क्‍या अब ग्‍लोबल मंदी मुनाफे में बदल जाएगी ?