ममता बनर्जी को बहुत भारी पड़ेगा मोहर्रम के ‘मातम’ में ‘दुर्गा’ का अपमान !

पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी जिद पूरी कर ली है। लेकिन, उन्‍हें ये सांप्रदायिक राजनीति आने वाले दिनों में बहुत भारी पड़ सकती है।  

New Delhi Oct 01 : पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्‍यक्ष ममता बनर्जी ने राज्‍य में खुलकर सांप्रदायिक राजनीति का खेल शुरु कर दिया है। लेकिन, ये राजनीति उन्‍हें आने वाले दिनों में बहुत भारी पड़ सकती है। मोहर्रम के दिन उन्‍होंने दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन पर रोक लगा दी थी। लेकिन, बाद में कोलकाता हाईकोर्ट ने उन्‍हें कड़ी फटकार लगाते हुए उनके आदेश पर स्‍टे लगा दिया था। लेकिन, इसके बाद भी ममता बनर्जी ने प्रतिमाओं के विसर्जन पर नया पेंच फंसा दिया था। इसी पेंच के चलते रविवार को पश्चिम बंगाल में मुहर्रम के दिन दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन नहीं हो पाया। जाहिर है ऐसे में ममता बनर्जी को लग सकता है कि उन्‍होंने हिंदू संगठनों के साथ चल रही अपनी लड़ाई में जीत हासिल कर ली हो। लेकिन, ये उनकी गलतफहमी है।

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क्‍योंकि ये लड़ाई हिंदू संगठनों की नहीं बल्कि आस्‍था और धर्मनिरपेक्षता की है। ममता बनर्जी ने मुहर्रम के दिन दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन में पेंच फंसाकर हिंदू और मुसलमानों को अलग करने की कोशिश की है। जबकि एक नेता होने और एक राज्‍य की मुख्‍यमंत्री होने के नाते ममता बनर्जी का दायित्‍व और कर्तव्‍य था कि वो राज्‍य में बेहतर माहौल बनाते हुए दोनों ही धर्म की भावनाओं का सम्‍मान करतीं। लेकिन, अफसोस धर्मनिरपेक्ष राजनी‍ति की बात करने वाली ममता बनर्जी ने सांप्रदायिक चाल चली है। जिससे तमाम लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंच सकती है। अदालत ये पहले ही कह चुकी है कि क्‍या इससे पहले कभी हिंदु और मुसलमानों के त्‍यौहार और कार्यक्रम एक साथ नहीं पड़े। फिर इस बार ऐसा क्‍यों किया जा रहा है।

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क्‍या ममता बनर्जी की पुलिस मोहर्रम और प्रतिमा विसर्जन के अलग-अलग रूट नहीं तय कर सकती थी। कर सकती थी लेकिन, ऐसा नहीं किया गया। ममता बनर्जी ने हाईकोर्ट के आदेश की काट के तौर पर नई चाल चल दी थी। उनका कहना था कि मोहर्रम के दिन प्रतिमाओं के विसर्जन के लिए आयोजकों को पुलिस परमीशन लेनी होगी। लेकिन, पश्चिम बंगाल की पुलिस का कहना है कि शुक्रवार की सुबह तक उनके पास कोई आवेदन ही नहीं आया। जाहिर है अब अगर किसी ने पुलिस के पास प्रतिमा विसर्जन के लिए आवेदन किया भी होगा तो अब तक ये कई बहाने बनाए जा चुके होंगे। उन्‍हें दो अक्‍टूबर तक के लिए टाला जा चुका होगा। पुलिस के पास कहने को होगा कि इतने कम वक्‍त में हम कानून व्‍यवस्‍था को ध्‍यान में रखते हुए परमीशन नहीं दे सकते हैं।

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यानी पश्चिम बंगाल की पुलिस ममता बनर्जी के उसी आदेश पर अमल करेगी जिसमें उन्‍होंने दूर्गा पूजा समितियों से मुहर्रम के पवित्र महीने के 10वें दिन यानी एक अक्टूबर के अगले दिन प्रतिमाओं का विसर्जन न करने को कहा था। क्‍योंकि इसीदिन मुस्लिम समुदाय के लोग इमाम हुसैन की शहादत का शोक मनाते हैं। ये परंपरा मुहर्रम के पवित्र महीने का हिस्सा है, इसे इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना माना जाता है। बीजेपी और हिंदू संगठनों ने ममता बनर्जी पर अल्पसंख्यक समुदाय के तुष्टीकरण का आरोप लगाया है। अदालत में मात खाने के बाद ममता बनर्जी अपनी पुलिस परमीशन वाली चाल में कामयाब तो हो गईं हैं। लेकिन, इसका ये कतई मतलब नहीं है कि लोग उनकी इस चाल को समझेंगे। इसका हिसाब ममता बनर्जी को चुनावों में मिलेगा। तुष्‍टीकरण की इस राजनीति का जवाब उन्‍हें चुनावों में जरुर देना होगा।