आ गए आपके ‘अच्छे’ और महंगाई के ‘बुरे दिन’, दिवाली पर मिलेगा सस्ती दालों का तोहफा
देश की जनता को बहुत ही जल्द सस्ती दालों का तोहफा मिलने वाला है। दालों की महंगाई के दिन लदने वाले हैं। लेकिन, इससे सरकार थोड़ी बैचेन है।
New Delhi Oct 05 : हो सकता है कि आपको अपने कानों पर यकीन ना हो। आंखों पर विश्वास ना हो। लेकिन, ये बात सौ फीसदी सच है कि आने वाले दिनों में देश की जनता को सस्ती दालों का तोहफा मिलने वाला है। सस्ती दालों का नमूना आपको बाजार में दिखना भी शुरु हो गया है। जिस अरहर की दाल को आपने दो सौ रुपए किलो के भाव से खरीदा था वो दाल अब आपको फिर से पचास रुपए किलो के दाम से मिलेगी। सस्ती दालों का ये दिवाली धमाका साबित हो सकता है। वैसे बेशक आम जनता को सस्ती दालों का तोहफा मिलने वाला हो लेकिन, सरकार इस खबर से थोड़ी बैचेन नजर आ रही है। क्योंकि सस्ती दालों का ये तोहफा सरकार के लिए मुसीबत भी बन सकता है। कैसे जरा ये भी समझ लीजिए।
दरसअल, जिस वक्त देश में दालों के भाव ने दोहरा शतक मारा था उस वक्त सरकार ने देश के लोगों को सस्ती दाल मुहैया कराने के लिए इसका बफर स्टॉक बढ़ा दिया था। महीनों से दालों की कीमत में कोई असर नहीं आ रहा था। लेकिन, अब स्टॉक इतना ज्यादा हो गया है कि दाल की कीमतें बाजार में गिरती जा रही हैं। सरकार के पास भी स्टॉक भरा पड़ा है। वो भी ऊंचे दाम वाला स्टॉक। यही वजह है कि केंद्र सरकार दालों की कीमतों में आई एकाएक गिरावट से बैचेन हो गई है। इस वक्त सरकारी गोदामों में करीब 18 लाख टन दाल का स्टॉक पड़ा हुआ है। जिस अगर वक्त रहते नहीं निकाला गया तो वो खराब भी हो सकता है। सस्ती दालों को लेकर सरकार के सामने दो तरह की चुनौतियां हैं।
एक तो वो उसे महंगी दाल अब सस्ते दाम पर बाजार में उतारनी होगी। यानी ऐसी सूरत में सरकारी खजाने पर बोझ पड़ना तय है। दूसरा 18 लाख टन दाल के स्टॉक को वक्त रहते बाजार में उतारने की भी चुनौती सरकार के पास है। क्योंकि अभी खरीफ की फसल बाजार में आने के बाद ये स्टॉक और बढ़ जाएगा। इसके साथ ही सरकार की चिंताएं भी बढ़ जाएंगी। आम जनता को तो सस्ती दालों का तोहफा मिल जाएगा लेकिन, सरकार को घाटे के साथ-साथ दालों की बरबादी भी झेलनी पड़ सकती है। क्योंकि अगर एक ही दाल को एक या डेढ साल से ज्यादा स्टॉक किया गया तो उसका खराब होना तय है। जाे वो किसी भी काम नहीं आएगी। ऐसे में केंद्र सरकार इन दालों को राज्य सरकारों को भी बांट सकती है।
पीडीएस सिस्टम के तहत गरीबों में भी ये दाल बांटी जा सकती है। क्योंकि अगर वक्त रहते सरकार ने दाल के गोदामों को खाली नहीं किया तो उसके सामने खरीफ की नई फसल को स्टोर करने की भी चुनौती होगी। क्योंकि सरकार को किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर दालें खरीदनी ही होंगी। सीधे शब्दों में अगर आप समझना चाहते हैं तो मसला ये है कि आम जनता को तो सस्ती दालों की सौगात मिल जाएगी। लेकिन, सरकार को इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी। हालांकि जानकारी के मुताबिक सरकार ने अपने बफर स्टॉक को बाजार में उतारने और राज्यों में बांटने की रणनीति तैयार कर ली है। सरकारी राशन की दुकानों पर अब ये दालें बांटी जाएंगी। जुगाड़ बन गया तो दालों का निर्यात भी किया जा सकता है। ताकि सबका फायदा हो और अन्न बरबाद ना हो।