खुद को कानून से ऊपर क्‍यों समझते हैं केजरीवाल ?

दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्‍यपाल अनिल बैजल के बीच एक बार फिर जंग छिड़ गई है। अरविंद खुद को कानून से ऊपर समझते हैं। जानिए क्‍यों ?

New Delhi Oct 05 : एक बात में तो केजरीवाल की दाद देनी होगी कि वो खुद को कानून से ऊपर समझते हैं और पेश ऐसे आते हैं कि मानो जनता के लिए अपनी कुर्सी तक न्‍यौछावर कर देंगे। वो ऐसा दिखाते हैं कि जैसे जो भी कर रहे हैं जनता की खातिर ही कर रहे हैं। वैसे केजरीवाल साहब जनता ने आपको इसी बात के लिए दिल्‍ली का मुख्‍यमंत्री बनाया है। अब ये आपकी खुशकिस्‍मती है या फिर बदकिस्‍मती कि दिल्‍ली को पूर्ण राज्‍य का दर्जा हासिल नहीं है। ये बात आपको भी पता है। अगर आप जनता की भलाई ही करना चाहते हैं तो कानून के दायरे में रहकर भी काम कर सकते हैं। लेकिन, अगर सबकुछ जानते-बूझते हुए आप कानून को चुनौती देकर कोई काम करते हैं तो मतलब साफ है कि आप उसमें जनता से ज्‍यादा अपना राजनैतिक नफा-नुकसान देखते हैं।

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जैसा कि इन दिनों गेस्‍ट टीचर्स को परमानेंट करने के मामले में हो रहा है। पूरी दिल्‍ली एक बार फिर से ये बात जान चुकी है कि आपकी और उपराज्‍यपाल अनिल बैजल के बीच जंग छिड़ गई है। केजरीवाल साहब अगर अनिल बैजल संविधान की बात करते हैं तो आप इससे ऊपर जाकर इसे सियासी रंग देने की कोशिश क्‍यों करते हैं। एक छोटा सा उदाहरण है आपके लिए। अगर किसी एक व्‍यक्ति का किसी दूसरे व्‍यक्ति से झगड़ा होता है तो तय कर पाना मुश्किल होता है कि सही कौन है और गलत कौन। लेकिन, अगर एक ही व्‍यक्ति का हर किसी से झगड़ा होता है तो जनता भी ये जान जाती है कि खोट कहीं ना कहीं उसी व्‍यक्ति के भीतर है। तभी तो उसका झगड़ा हर किसी से हो रहा है। वो भी एक ही बात को लेकर। कानून को लेकर।

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केजरीवाल साहब जब आपको मालूम है कि 15 हजार गेस्‍ट टीचर्स को आप सिर्फ सरकार के दायरे में रहते हुए परमानेंट नहीं कर सकते हैं तो फिर सही तरह से कानूनी प्रक्रिया का पालन क्‍यों नहीें करते। ये मामला दिल्‍ली सरकार की विधायी शक्तियों से बाहर का है। इस मामले में आपको केंद्र की मदद लेनी ही होगी। लेकिन, अगर बिल पारित कर आप चाहेंगे कि संविधान को चुनौती दें तो ये मामला सिर्फ राजनैतिक कोयला बनकर ही रह जाएगा। जिस पर आप आसानी से अपनी रोटियां सेंक सकते हैं। लेकिन, कोयला ज्‍यादा गरम हो गया तो आपकी रोटी जल भी सकती है। आपके हाथ भी जल सकते हैं। जनता बहुत सयानी है। उसे भी संविधान का ज्ञान है। उसे भी पता है कि क्‍या सही तरीका है और क्‍या गलत तरीका।

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केजरीवाल की सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान बिल 2017 में शिक्षकों और गेस्‍ट टीचर्स की सेवाओं को नियमित करने का प्रस्ताव तैयार किया। दिल्‍ली सरकार की कैबिनेट ने इसे 27 सितंबर को पास भी कर दिया। विधानसभा की भी कार्यवाही पूरी हुई। लेकिन, इसके साथ साथ आपको ये भी तो पता है कि ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस ऑफ द गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली रूल्स-1993 में इस प्रस्ताव पर लॉ डिपार्टमेंट से सलाह लेना अनिवार्य है। लेकिन, आपने नहीं किया। ये बिल सर्विसेज से जुड़ा है। ‘गृह मंत्रालय’ की अधिसूचना के मुताबिक भी इस तरह की सेवाओं से संबंधित मामले दिल्ली की विधानसभा की विधायी क्षमता से बाहर हैं। फिर भी आप अड़े हुए हैं। कहते हैं कि बीजेपी इसमें रोड़े अटका रही है। अनिल बैजल स्‍पीड ब्रेकर का काम कर रहे हैं। केजरीवाल साहब कम से कम हमे ये लगता है कि अगर आप जनता के किसी फायदे के लिए पूरा कानून फॉलो करेंगे तो आपका ही पक्ष मजबूत होगा। नजीब जंग से भी इन्‍हीं बातों को लेकर आपकी जंग होती थी। क्‍योंकि आप शार्टकट अपनाते हैं। केजरीवाल साहब कानून आपके शार्टकट से नहीं चलता है और खुद को कानून से ऊपर भी मत समझिए।